Tuesday, 24 May 2011

तुम्हारी बारी


तेरे गम को साझा किया मैने,
अब तक न हिम्मत हारी है
आज अभी अब दुखी हूँ मैं भी
अब तुम्हारी बारी है।


          १

मेरे उर ने पढे हैं
 तेरे नैनों की की सब भाषा
सागर तेरे पास है फिर भी
तुम क्यों बैठे प्यासा ?
मीठा पानी,खारा पानी
या सब एक जैसा ?
साल नही महीना नही
एक पल मुझ पर भारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



         २

मानव के इस जंगल में
इंसां ढूँढना मुश्किल है
वो मानव जो दिल नही
दिमाग के वश में रहता है
संबंध नही समझते जो सिर्फ
अपना मकसद साधता है
मंजिल तेरी यहीं कही है ?
या कही और की तैयारी है ?
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



         ३
समझ न पाता मानव क्यों जो
बात बहुत पुरानी है
दिमाग के बिना चले भी जिंदगी पर
दिल के बिना बेमानी है
आज नही है कल नही था
पर एक दिन ऐसा आयेगा
साथ में चलनेवाला साथी
पल-पल में पछतायेगा

बहुत मिलेंगे साथी तुमको
पर नही मिलेगा मेरे जैसा
फूल बहुत सारे खिलेंगे
नही खिलेगा मेरे जैसा

विस्तृत नभ से वसुन्धरा तक
मन से मन की दूरी होगी
भूल नही सकोगे मुझको
यह तेरी मजबुरी होगी
भूल नही सकती मैं उनको
यह मेरी लाचारी है
मैंने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



         ४
जाने क्या रिश्ता है तुमसे
जाने क्या नाता है
छा जाये दिल में एकबार तो
कभी नही जाता है
तुम भी अपनाओ मुझको
तुम भी मुझको चाहो
बदले की ऐसी भावना मैंने
कभी नही चाही है
पर! तेरी दुनियाँ की हर चीज
लगती मुझको प्यारी है
मैंने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



        ५
तेरी एक झलक मात्र से
मेरा मन मयूर खिल जाता है
जैसे वीराने में जाकर
पागल प्रेमी गाता है
बदली भरे अंबर में जैसे
इंन्द्रधनुष छा जाता है
आसमान की छाती पर
बादल जैसे लहराता है
तेरा मेरा साथ है ऐसे जैसे
रंग और पिचकारी है।
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



       ६
तेरे पास आकर मैं
 दर्द में भी मुस्कुरा लेती हूँ
बेझिझक अपने दिल की बात
तुमको बता देती हूँ
मेरे सूने मन प्रागंन के
तुम राही अलबेले हो
दिल दुखानेवाली बातों से भी
मेरे दुख हर लेते हो
जैसे माँ के दुख को हरता
बच्चे की किलकारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।


        ७
तेरी खुशी से खुश होती हूँ
तेरे दुख से दुखी होती हूँ
मेरे सपने,मेरी खुशियाँ
मेरा जीवन,मेरा तन-मन
किया है तुमको अर्पण
मजबूरी नही,बंधन नही
ये है प्यार भरा समर्पण
मेरी दुनियाँ सिमटी है तुममें ऐसे
जैसे आग में चिंगारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।

   ८
तेरे सारे गम को हर लूँ
खुशियों से तेरा जीवन भर दूँ
ये बीडा मैने उठाया है
तुझमें खोकर मेरे साथी
मैने अपना अस्तित्व भी मिटाया है
दीवानों की दुनियाँ की
हर बात होती न्यारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।


 ९
मैने नही कहा था तुमको
मेरी दुनिया मे तुम आओ
आ ही गये हो गर अब तो
नही कहूँगी तुमको जाओ
तेरे इस आने जाने से मैं
बैठी भरमाई हूँ
सही गलत के अंतर्दन्द में
बेचैनी का क्रम जारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है


     १०
जिन्दगी ने मुझको जो भी दिया
सहर्ष उसे अपनाया है
हर नाते रिश्ते
खुशी औ गम को
दिल से मैने लगाया है
समझ न लेना भूले से भी
वो एक अबला नारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।











Monday, 23 May 2011

फिर क्यों ?


एक तितली थी बडी सयानी
करती रहती थी मनमानी
इच्छा से वो खाती थी
इच्छा से लहराती थी
पता नही था उसे एक दिन
छोड के अपना बाग-बगीचा
छोड के अपना गली-गलीचा
नये बाग में जाना होगा
वहाँ के बंधन,वहाँ की रीतियाँ
सब को उसे अपनाना होगा।

पली थी स्वछंद माहौल में
मिला था जितना प्यार जीवन में
सभी छिन गये उससे ऐसे
बाग उजड गयें हो जैसे
मिल गया उसको नया ठिकाना
दुनियाँ यही जानती है पर
असलियत क्या है ?
ये सिर्फ तितलीरानी ही जानती है
दर्द भरे दिल के गर्द को
अपने अनकहे दर्द को।

उडते-उडते थक जाती है पर
बाग नही आता कैसे सहे
इस व्यथा को जो
सहा नही जाता
धूप में चलते राही के
पीडा की  पहचान कैसे होगी
माँ की ममता पिता का वात्सल्य
बहन का प्यार,भाई के लाड से
वंचित,बिटिया की जान कैसे होगी
दो-दो घर के रहते भी
बेघर होने की पीडा की
बखान कैसे होगी?

माँ,इस घर में भी है
पर, उसमें ममता की कमी है
ममत्व के छाँह की कमी से
उसके आँखों में नमी है
स्नेह पगे मन को पल-पल
रोना पडता है
प्रशंसा के बदले यहाँ
कँटीला ताना मिलता है
पिता का वात्सल्य नही
बर्फ की कठोरता मिलती है
पति का साथ नही
गम बेशुमार मिलता है
बहन का प्यार नही
अवहेलनाओं की बौछार मिलती है
भाई कालाड नही
साजिशों की भरमार होती है
दम घुटता रहता तितली का
दुखों की बरसात होती है।    



कैसे करे अभिव्यक्त दुखों को
और कहे माँ-तेरी बिटिया यहाँ
खून के आँसू रोती है
हर दिन,हर पल अपने
अरमानों को धोती है
कहना चाहे ये बतिया पर
कह नही पाती है कि-
बेटों की तरह बेटियाँ भी
माँ-जाई होती है
फिर क्यों ?फिर क्यों?
बेटियाँ,पराई होती है?

पर जीवन का यही सत्य है
तितलीरानी इसे जानती है
नये घर को, नये सपने को
फिर से सँवारना जानती है
मिलेंगी उसको खुशियाँ
ऐसा उसने ठान लिया है
अपनी कमजोरियों को उसने
ताकत अपनी बनायी है
फिर से स्वछंद बाग में
उडने की चाहत उसने जगायी है।

सच तो,यही है कि
प्रकृति पर अपना जोर नही है
पर-जान ले सारी दुनियाँ
कि- बेटियाँ कोमल है
कमजोर नही है।



















Saturday, 21 May 2011

विषपान




अहिल्या-सहगामिनी होने के नाते
पति की इच्छा का सम्मान करना
तुम्हारा धर्म था
पर उनमें आये
अनायास परिवर्तन को
पहचानना भी तो
तुम्हारा कर्म था
कठपुतली न बन
अपने विवेक का
किया होता उपयोग
अपने आसपास
घटी घटनाओं का
रखा होता ध्यान
तो असली-नकली
सही-गलत की
शीघ्र हो जाती पहचान
गौतम ऋषि की कुटिया
न पडी होती यूँ सुनसान औ विरान
 न हीं पत्थर की प्रतिमा बन
पल-पल करना पडता
व्यथा और ग्लानी का
पति से वियोग का
असहनीय अपमान का
सदियों तक विषपान।

यूँ न गँवाया होता


गाँधारी-अगर तुमने अपने बच्चों के
लालन-पालन में  पति का
हाथ बँटाया होता तो
अपने सौ पुत्रों के साथ
कौरव वंश को यूँ न
गँवाया होता ।
माना कि तुम महारानी थी
कुंती की जेठानी थी
पर नारी होने के नाते
नारी के मन के दर्द को
समझा होता
तो अपने सौ पुत्रों के साथ
कौरव वंश को यूँ न गँवाया होता।
धृतराष्ट्र तो अँधे थे
पुत्र-मोह में बँधे थे
पति की आखें बनकर
पत्नि धर्म निभाया होता
तो अपने सौ पुत्रों के साथ
कौरव वंश को यूँ न गँवाया होता।
कर पाती खुद को बदले की भावना से मुक्त
शकुनि को टेढी चाल चलने से रोका होता
तो अपने सौ पुत्रों के साथ अपने भाई
और कौरव वंश को यूँ न गँवाया होता।

Thursday, 19 May 2011

मैं


               १

हवा हूँ, मैं बहूँगी!
लाख, कोशिश करे कोई
बहना नहीं छौडूँगी
जब-जब जहाँ-जहाँ जाना है
जाकर रहूँगी
बहना मेरा काम है
बहती रहूँगी।
             २
ज्वाला हूँ, मैं जलूँगी
जितने भी अरमान हैं मेरे 
पूरा करके रहूँगी
न गलत किया है
न गलत करने दूँगी
भले ही कोशिश करे कोई
खुद को बुझने न दूँगी।         

            ३
धरती हूँ मैँ सहूँगी
दिल में भले दर्द हो
पर जुबाँ से नही कहूँगी
लहलहाती आई हूँ
लहलहाती रहूँगी।  
  
         ४
नदी हूँ मैं अनवरत
आगे बढती जाऊँगी
राह की बाधाओं से
कभी नही घबराऊँगी
आगे बढती आई हूँ
आगे बढती जाऊँगी।







दीवाली

असत्य पर सत्य का
प्रकाश का अँधकार पर
अच्छाई का बुराई पर
विजय प्रतीक है
दीवाली
दीपों की कतार से
देती हमें संदेश दीवाली
संभव सब कुछ हो सकता है
गर नीयत हो साफ
तुम्हारा
बँधे रहे हम स्नेह-डोर से
मूल-मंत्र है भाईचारा।

Wednesday, 18 May 2011

मैंने देखा है

मैंने देखा है
हँसतों को रोते हुए
मैंने देखा है
जिन्दों को मरते हुए
बहुत दुखदाई है
पल-पल का मरना
पर इस बात से भला क्या डरना!

अकेले आये हैं
अकेले है जाना
साथ तो किसी का है
केवल बहाना
नदी अकेली चलती है
पता नही गंतव्य कहाँ है ?
पथ में काँटे लाख बिछे हो
ओ राही तुम गम मत करना
पडे वक्त अगर कभी तो ?


हिम्मत से समझौता करना
मैंने देखा है
तारों को टूटते हुये
मैंने देखा है
तरुवर को सूखते हुये
चाहे कितने तारे टूटे
व्योम नही घबराता
खडा तना वह
मही के ऊपर
मन ही मन मुस्काता
पतझड के जाते ही
जब आयंगे मौसम
बहार के
नव पल्लव प्रसून खिलेंगे
हरियाली भी होगी
कृत संकल्प हो
बढो बटोही
तेरी ही जय होगी।

Monday, 16 May 2011

मौन


आसमान में छिडी लडाई
चंदा और तारों में
तारे बोले-सुन चंदा तुम
व्यर्थ क्यों इतराते हो ?
रोज-रोज तुम रुप बदलते
कुछ दिन तुम छिप जाते हो
छिपना मेरी हार नही है
छिपना मेरी जीत है
सब दिन होत न एक समान
ये जीवन की रीत है
 गर तुम पालन करते इसका
कभी नही झल्लाते
व्यर्थ नही अभिमानी बनते
यूँ ही टूट न जाते
क्रोध वैर से नाता जोडूँ
मुझको नही मंजूर है
शीतलता प्रदान करुँ
खुशी मुझमें भरपूर है
चंदा की चांदनी को
ताना मारे कौन
जबाव नही सूझा तारों को
साध लिया सबने ही मौन।

प्रतिरोध


द्रोपदी-अगर तुमने शुरु से ही
अन्याय का प्रतिरोध किया होता
तो जो-जो तुम्हारे साथ हुआ
वो न हुआ होता
नारी थीं तुम ममतामयी,स्नेहमयी औ-
त्यागमयी,कोई वस्तु नही
जो पाँच भागों में बाँट दी गयीं
क्यों-क्यों-क्यों ?
तुमने ऐसा क्यों सहा ?
भले ही गलत था,दुर्योधन पर-
ऐसा क्यों कहा कि "अंधे का बेटा अंधा ही होता है"
जो जैसा बोता है वो वैसा ही काटता है
प्रकृति के न्याय में ऐसा ही होता है
दुर्योधन अगर दोषी है तो दोष तुंम्हारा भी कम नही
बडों का अपमान करना ये हमारा धर्म नही
हाँ-दोषी को उनकी गलतियों का आईना दिखाना भी जरुरी है
पर बुरे के साथ बुरा बन जाना ये कैसी मजबूरी है
कौरव तो पर्याय था झूठ और फरेब का
पर क्या ? पाँडवों के हमेशा उचित व्यवहार थे
किसी के उकसाने पर जो मर्यादा को भूल जाता है
निर्जीव वस्तुओं के समान पत्नि की जुए में
बाजी लगाता है
माँ के वचन की आड ले जो
नारी की अस्मिता पर प्रश्न-चिन्ह लगाता है
वो क्या ? कौरव से अलग पंक्ति में खडा रह पाता है?
वो,तो कौरव से भी बडा अपराधी है
जो उसे अपराध करने के नये-नये तरीके
आजमाने का नुस्खा देता हैअपनी विन्रमता की आड ले जो
अपराधों को बढावा देता है
अन्याय करना और अन्याय सहना दोनों
ही अपराध है
कौरव अगर अपराधी है
तो पांडव भी दूध का धुला नही है
और सबसे बडी बात तो यह है कि
असली बात सबके समझ में आती है
कि पाँच पतियों की टुकडी भी
द्रोपदी को नही बचा पाती है
उसकी लाज बची उसकी
खुद की भक्ति और शक्ति से
काश-तुमने शुरु में ही लिया होता
इसका सहारा तो इतनी भरी सभा में
न रहती यूँ लाचार और बेसहारा।

Sunday, 15 May 2011

लालसा


सीता अगर अपनी लालसा पर
लगाम लगाया होता
स्वर्ण-मृग की सुन्दरता पर मोहित
होकर उसे पाने का जिद नही किया होता
तो अपने पति का साथ
यूँ न खोया होता
जो है अपने पास गर
उसी में संतोष किया होता
तो रावण की कुदृष्टि का
शिकार न बन पातीं
अगर किया होता लक्छणरेखा का सम्मन
तो दुष्ट रावण कभी न कर पाता
इतना अपमान
न हीं दुनियाँ के विषैले-व्यंग
झेलने होते
तुमसे तुम्हारा घर,पति औ-
लव-कुश से उसके पिता न जूदा होते।

Friday, 13 May 2011

घर


छोटा सा इक घर हो
प्यारा सा परिवार
परम-आनंद की ज्योती हो
न हो वहाँ आग
प्यार सिर्फ प्यार का
जलता रहे चिराग।

Tuesday, 10 May 2011

संदेश


सुबह सबेरे काम पे निकले
शाम को ही घर आती है
डाली-डाली पर चहक-चहक कर
माँ-चिडियाँ क्या गाती है
लगे रहो अविरल श्रम में
मस्त रहो जीवन क्रम में
नही किसी से कोई आस हो
नही किसी से वैर-भाव हो
हर गम,हर दु;ख से परे
रहने का संदेश हमें सुनाती
डाली-डाली पर चहक-चहक कर
बेटा-चिडियाँ जीना हमैं सिखाती है।

मेरी आँखों मे


तेरी यादों की परछाई में
दिन रात भटकती रहती हूँ
सोते जगते उठते बैठते
बस यही दुआ किया करती हूँ
मिले तुम्हे सफलता हर पल
खुशियाँ कदमपोशी करे
जगह जगह खिल जाये कलियाँ
जहाँ जहाँ तेरे कदम पडे
प्यार कैसा है तेरा
प्यार कैसा है मेरा
बिना परखे ही बढो
परखना ही चाहते हो तो
मेरी आँखों में पढो।      

खामोश नजर


जीवन के इक मोड पर
अच्छा हुआ तुम मिल गये
कुछ कह लिया
कुछ सुन लिया
बोझ हल्का कर लिया
यूँ ही साथ चलते चलते
कुछ रास्ता भी कट गया
पहचान क्या है मेरी
पहचान क्या है तेरी
तुम खुद ही गढो
जानना ही चाहते हो
तो मेरी आँखों में  पढो। 
जा  के मिलूँ समन्दर में
मैं भी इक कालिन्दी हूँ
पर मर्यादा के सीमाओं में बँधी हूँ
भावनाओं को व्यक्त करना ही
प्यार नही होता
कुछ पाने के लिये कुछ देना भी
प्यार नही होता
प्यार भरे दिलों में
मिलने की बेकरारी होती है
एक खामोश नजर
प्यार के अनगिनत शब्दों पर
भारी होता है
प्यार कैसा है तेरा
प्यार कैसा है मेरा
बिना समझे ही बढो
सामझना ही चाहते हो तो
मेरी आँखों में पढो।

Monday, 9 May 2011

आखिरी सफर


ओ राही
तुम रुको नही
ओ राही
तुम झूको नही
रूकना तेरा काम नही है
झूकना तेरा काम नही है
सूरज की लाली को देखो
अंबर की थाली को देखो
मरूभूमि की हरियाली को देखो
झरनों की प्रखर धार को देखो
बारिश की बौछार को देखो
मिल जायेगी हिम्मत तुमको
मिल जायेगी राहत तुमको
कौन किसे कब रोक सका है
नियत अच्छी है गर तेरी
मिल जायेगी मंजिल मेरी
गम न कर कोई साथ नही
गम न कर कुछ हाथ नही
एक दिन ऐसा आयेगा
सब तुमको मिल जायेगा
दिल तेरा खिल जायेगा
बाधाओं से डरो नही
धैर्य का दामन छोडो नही
ओ राही तुम चलो वहीं
जहाँ सबेरा खडा है तेरा
वहींआखिरी सफर   है मेरा।

तो मानूँ?


हँसते को सभी रुलाते हैं
रोते को हँसाओ तो जानूँ
दुश्मनी सभी फैलाते हैं
तुम सुलह कराओ तो मानूँ
रोशनी में सभी को दिखता है
अँधेरे मे देखो तो जानूँ
है राह कठिन सच्चाई की
इस राह पे चलो तो मानूँ
मानव जीवन है संघर्षों का संगम
तुम संघर्ष में चमको तो जानूँ
है निशा सघनतन मालूम है
तुम साथ बिताओ तो मानूँ ?

दर्द का रिश्ता


दर्द उसी को होता है
जो अपनों को खोता है
न अपनी नींद सोता है
न अपनी नींद जगता है
तुम्हे पता नही
ये मेरे हमराज
मगर दर्द का रिश्ता
बडा ही जानलेवा होता है   ।

अच्छा लगता है

       १
बाधाओं से लडकर जीना
गम के आँसू का बह जाना
नये सिरे से जीवन जीना
अच्छा लगता है।
          २
 उन्हें चिढाकर पुनः मनाना
हर पल उनके साथ ही रहना
उनसे दिल की बातें करना
अच्छा लगता है।  
                ३
उनको सारी खुशियाँ देना
उनके गम को साझा करना
अपनी धुन में आगे बढना
अच्छा लगता है।
       ४
दिल से दिल की बातें सुनना
बिना कहे सब कुछ
कह देना
अच्छा लगता है।

Saturday, 7 May 2011

कोई मंजिल दूर नहीं

कोई मंजिल दूर नहीं
दिल में ठान लिया है गर तो
कोई मंजिल दूर नही है
है अडा हुआ इंसान अगर तो
कोई मुश्किल बडी नही
मिल जाये राह मे निशा कहीं तो
घबराने की बात नही
समझो गम जानेवाला है
खुशी अभी आनेवाली है
घनी अँधेरी रैन के बाद ही
स्वर्णिम सबेरा होता है
जैसे पथरीले चट्टानों के नीचे
मीठे पानी का सोता होता है
कर्म करे इंसान अगर तो
कभी नही वो खोता है
मीठे फल के बीज बोने पर
मीठा ही फल होता है

अलविदा

जीवन पथ पर चलते चलते कौन कहाँ मिल जायेंगे
दिल के भावों को जगा कर
पुनः कहीं छिप जायेंगे
मिलन विरह की अमिट कहानी
सुन लो आलिरानी
पल पल छन छन
याद आयेंगी
बीती हुई कहानी
 फलीभूत हो सच्ची साधना
और उपासना तेरी
मंजिलकेंद्र मिल तुमको
यही शुभकामना मेरी
जीवन के उस दिवा निशा में
यादों के स्वर्णिम स्वर्गों में करना ना
मुझे जुदा अलविदा अलविदा अलविदा