मेरे साथ एक अजीब सी बात हो गई
कहीं जा रही थी कि ---अचानक----
मेरी----जिंदगी से मुलाक़ात हो गई
मेरी नज़रों में खुद के लिए बेगानापन देख
वो --तिलमिलाई
संयम को परे हटाकर
जोर से चिल्लाई --
अजीब अहमक इंसान हो तुम निशा
उसके दिल में मेरे लिए था
केवल और केवल गुस्सा
तुम्हारी विचित्र हरकतें कभी-कभी बन जाती है मेरे लिए
एक पहेली ----
क्यों बेगानापन दिखला रही हो जबकि
हम हैं एक-दूसरे की सहेली
सहेली और तुम ?
मैं भी कहाँ अपने पर नियंत्रण रख पाई औ --
मान-मनौवल को परे हटाकर
धीरे से गुर्राई
सहेली होने के नाते तुम
कब ?कहाँ?और कैसे ?
मेरे दुःख को बाँटती हो ?
बहुत हीं कमजोर इंसान हो तुम --जो--
विधाता के इशारे पे नाचती हो
दोस्त कहकर दुश्मनों सा व्यवहार करती हो
सँभलने का मौक़ा दिए बिना
पीछे से वार करती हो ?
जब से होश सम्भाला
रूप देखा तुम्हारा बड़ा अनोखा
एक पल विश्वास दिला
दूसरे हीं पल तुम दे देती हो धोखा
तुम्हारॆ इस व्यवहार से
आ गई मैं तंग
टूटे विश्वास के साथ बोलो
कैसे चलूँ मैं संग ?
खैर ! चलने का नाम हीं है जिंदगी
पर भूले से भी ना सोचना
करुँगी तेरी बंदगी
तुम अगर मजबूर हो तो
मैं भी मगरूर हूँ
तुझे औरों पे होगा पर मुझे--
खुद पे गुरुर है ---
तेरा काम तुम करो
मेरा मैं करुँगी
जब भी मौका आएगा मैं तुमसे क्या ?
खुद से भी लडूंगी---