हँसना चाहती है ......
अपने गम को सहगामी बना
जख्मों को सहलाती है ...
सहलाने के दर्दमय क्रम में
सांस लेना भूल जाती है ...
किस गम को हल्का समझे ..
कभी समझ न पाती है ...
खुद से लड़े या दुनिया से
करती रहती ये तैयारी
हार नहीं माना जिसने ....
कहलाती वही ना .....री .....