Wednesday, 29 February 2012

वादा है

ब्लागर  साथियों  आज का दिन कुछ खास है जैसे मायके में माँ एवम ससुराल में सास है .बूझो तो जाने ..धन्यवाद .........

जिन्दगी के मेले में
कहीं आगे बढ़ी
कहीं पिछड़ गई
रंजो -गम तो बहुत हुआ
जब कारवां से बिछड़ गई ......

कुछ छीन गया
कुछ छुट गया
 जब-जब जैसा रुख मिला
जीवन को वैसे मोड़ दिया
कभी मिला नहीं
कभी छोड़ दिया 
ऐ  जिन्दगी  सच बतलाऊं ?
तुझसे कोई गिला नहीं .......

जब -जब मौका मिलता है
इतराती इठलाती हूँ
दुनिया चाहे कुछ भी समझे
हंसती और हँसाती हूँ ......

यादों की इक दुनिया में
जब भी घुमने जाती हूँ
बिछड़ गये जो संगी -साथी
उनसे भी बतियाती हूँ ......
सारो .वंदना .पूनम  .आशा
पूटु.प्रियशिला.के संग अक्सर
सुलझाया करते थे मिलकर
अनसुलझी पहेलियाँ
जीवन के इस मेले में
खो गईं बालपन की सारी सहेलियाँ
हुडदंग मचा बिना वजह
किया करते थे हम दंगल
कैसे भूल सकती मै तुमको
हरिपुर (झारखण्ड ) के जंगल ?

 बनकर कोयल जहाँ मै ....
कुहू -कुहू कह गाती थी
नैनों में गहरे राज छुपाये
कोयल को उकसाती थी
तभी सुनाई पडती थी सबको
कोयल की मीठी बोली
भूल जाऊं कैसे मै ?
सखियों संग खेली होली ?
जीवन के दोराहे पर ....मै ....
हो गई अकेली ....
दुखी न होऊं मै ...ऐसा ...मन ..मेरा ...
मुझसे कहता है ....
वही तेज चला करते हैं  जो ....
अकेल ही चला करते हैं ...
खुश हूँ मै अपनी धुन में
मगन अकेली चलती हूँ
गम नहीं उसके लिए
जो मुझको है मिला नहीं
ऐ जिन्दगी सच बतलाऊं ?
तुझसे कोई गिला नहीं ......

पाकुडिया (झारखण्ड ) के पहाड़ी पर
पिकनिक जब हम मनाते थे
कच्ची-जली पूड़ियों को भी
स्वाद ले -ले खाते थे ....
शीला.सुशीला .मुन्नी सारो औ
राज दी सभी को
नदिया के पार कराती थी
ख़ुशी मिले सभी साथी को
इसलिए नैया मै बन जाती थी........

जीवन की इस नदिया में
भंवर में डगमगा रही मेरी नैया
संकेत ,ईशा हैं पतवार मेरे
संजय हैं मेरे खेवैया  
साहिल बनकर मै ही अब भी
नैया को पार लगाती हूँ
रोना हो तो जीभर रोती
खुश हो फिर मैं गाती हूँ ......

छीन गया जो जीवन में
चाहे  से भी मिला नहीं
पीछे मुडकर नहीं देखती
दिल भी मेरा जला नहीं
ऐ जिन्दगी ..सच बतलाऊं ?
तुझसे कोई गिला नहीं ......

कहीं आघात तो कहीं प्रतिघात
कहीं मान तो कहीं अपमान 
कहीं आस तो कहीं निराश
कहीं मिलन तो कहीं विरह
कहीं उल्लास तो कहीं गम है
नाम इसीका  जीवन है
जो भी मिलता है मुझको
साथ लिए बढती जाउंगी
वादा है ..............तुझसे ......ऐ  जिन्दगी ........
हर पल साथ निभाउंगी
संघर्षमयी जीवन की बातें हैं
बालपन की लीला ये नहीं
ऐ जिन्दगी सच बतलाऊं ?
तुझसे कोई गिला नहीं ......


चलिए मैं ही बता देती हूँ ...आज १ मार्च को मेरा जन्मदिन है.

        
 

Thursday, 23 February 2012

खामोश नजर



जीवन के इक मोड पर
अच्छा हुआ तुम मिल गये
कुछ कह लिया
कुछ सुन लिया
बोझ हल्का कर लिया
यूँ ही साथ चलते चलते
कुछ रास्ता भी कट गया
पहचान क्या है मेरी
पहचान क्या है तेरी
तुम खुद ही गढो
जानना ही चाहते हो
तो मेरी आँखों में  पढो। 
जा  के मिलूँ समन्दर में
मैं भी इक कालिन्दी हूँ
पर मर्यादा के सीमाओं में बँधी हूँ
भावनाओं को व्यक्त करना ही
प्यार नही होता
कुछ पाने के लिये कुछ देना भी
प्यार नही होता
प्यार भरे दिलों में
मिलने की बेकरारी होती है
एक खामोश नजर
प्यार के अनगिनत शब्दों पर
भारी होता है
प्यार कैसा है तेरा
प्यार कैसा है मेरा
बिना समझे ही बढो
सामझना ही चाहते हो तो
मेरी आँखों में पढो।

 तेरी यादों की परछाई में
दिन रात भटकती रहती हूँ
सोते जगते उठते बैठते
बस यही दुआ किया करती हूँ
मिले तुम्हे सफलता हर पल
खुशियाँ कदमपोशी करे
जगह जगह खिल जाये कलियाँ
जहाँ जहाँ तेरे कदम पडे
प्यार कैसा है तेरा
प्यार कैसा है मेरा
बिना परखे ही बढो
परखना ही चाहते हो तो
मेरी आँखों में पढो।     





Tuesday, 14 February 2012

घूम आओ




जीवन की एकरसता से गर
मुक्ति पाना हो
उत्साह और उमंग को
जीवन का अंग बनाना हो
जोश किसको कहते है औ
कैसा है गंगा का बंधनयुक्त
उन्मुक्त मस्त विहार
देखना चाहते हो तो
घूम आओ हरिद्वार।

गंगा की इठलाती,लहराती औ बलखाती
जल की तरंगें हमें
जीने का राह दिखाती है
जीना किसको कहते हैं
बिना बोले सिखलाती है
दिल औ दिमाग दोनों को
ठंढक पहुँचाये ऐसी
करिश्माई है इसकी फुहार
महसुस करना चाहते हो तो,
घूम आओ हरिद्वार।



उच्श्रंखलता को दूर करने के लिये
जीवन को एक दिशा देने के लिये
थोडा बंधन जरूरी है
अपनी सीमाओं में रहने की
आदत कमजोरी नही
मजबूती की निशानी है
थोडी सी चंचलता
बहुत सारा प्यार समेटे रहती हरपल
खुद में पवित्र गंगा की धार
पाना है इसे तो।
घूम आओ हरिद्वार।


गंत्वय के प्रति ललक
मंजिल को पाने का अरमान
राह की बाधाओं को नकार
सागर से मिलने को बेकरार
हर सुख-दु;ख,मान-अपमान को
अपनाने के लिये तैयार
देखना है निर्भय विचरती गंगा का निखार तो,
घूम आओ हरिद्वार।



डगमगाते कदमों से
शाम को घर कैसे लौटता है
सुबह का भुला
देखना है तो जाओ
देख आओ लक्ष्मणझूला
श्रृंगार किसे कहते हैं और
कैसे हैं प्रकृति के विविध वेश
देखना ही है तो जाओ
घूम आओ ऋषिकेश।




Thursday, 9 February 2012

घर





छोटा सा इक घर हो
प्यारा सा परिवार
परम-आनंद की ज्योती हो
न हो वहाँ आग
प्यार सिर्फ प्यार का
जलता रहे चिराग।

Tuesday, 7 February 2012

मेरी ख्वाहिश



मेरे दिल में तुम्हारे लिये प्यार था
तुमने उसे व्यापार समझा
मैंने तुम्हारी प्रशंसा की
तुमने उपहास समझा
सोचा था-खुशियों को साझा करने से
अपनेपन का एहसास बढ जायेगा
गम साझा करेंगे तो ये आधा हो जायेगा
पर पता नहीं कैसे ? कब ?क्यों ?
तुमने मकडी के जाले बुन डाले
मेरे स्नेह,अपनापन और आत्मीयता के
सारे अर्थ बदल डाले
दिल के दुःखमय उदगारों को
भग्न ह्रदय से कैसे मैं कहूँ?
सहा नहीं जाता जो गम
उसे कैसे मैं सहूँ।


मेरे दुःख को तुमने नही
मैने ही बडा कर दिया
अपनेपन की चाहत ने
आज मुझे इस मोड पर
 खडा कर दिया
 जहाँ एक तरफ तुम हो
दूसरी तरफ है
अनजानी सी डगर
सधे कदमों से मैं उस
पथ पर कदम बढा रही हूँ मगर
मुझे पता है जिस दिन
तुन नैराश्य औ असुरक्षा के
 घेरे  से बाहर आओगे
अपने साथ मुझे खडा न पाओगे
उसी क्षण से मुझे पाने के लिये
बेताव हो जाओगे।

तुम्हारे पास होगा मेरे लिये केवल
अपनापन औ प्यार पर
तब तक इतनी देर हो चुकी होगी
कि टुट जायेगी मेरी उम्मीद की डोर
और मैं चली जाऊँगी उस ओर
जहाँ से मेरा लौटना नामुमकिन होगा
और तुम्हारा मेरे पास आना होगा असंभव।

हो सके तो उस दिन
अपने द्वारा बुने मकडी के जाले
को साफ कर देना
दिल की गहराईयों से मुझे
माफ कर देना
जाते-जाते एक बात बताते जाऊँ
ख्वाहिश है मेरी
कभी किसी मोड पर गर
मैं तुमसे टकराऊँ
तो तुम्हे हँसते खिलखिलाते ही पाऊँ।

तुमने मेरे लिये क्या सोचा
ये गम नही है
गम सिर्फ इस बात का है
कि मेरे कारण तुमने अव्यक्त
दु;ख सहे
समझ गई मैं सारी बातें
बिना तुम्हारे कहे
वादा करती हूँ तुमसे
अब वो बात नही दुहराऊँगी
खुश रहो तुम हमेशा
इसीलिये तुम्हारी दुनिया से
दूर चली जाऊँगी ।

तुम्हारे साथ बिताया हर पल
मेरे लिये बहुत अच्छा था
पर विश्वास करो
बनावटी नही था कही भी
हरेक व्यवहार मेरा सच्चा था ।

ज़िदगी के झंझावातों से
अपनों के दिये आघातों से
होंठों की हँसी और चंचलता
कुछ देर के लिये खो सकती है पर
किसी की मूलप्रकृति नही सो सकती
अपना स्वभाव बदलकर मैं जी नही सकती
चुपचाप रहकर गम के आँसू पी नही सकती ।

कभी अच्छा कभी बुरा
ये समय का फेरा है
जैसी जिसकी सोच होती
वैसा उसका घेरा है ।

सब को वही-वही करना है
जो प्रकृति करवाती आई है
सुख-दःख,सही-गलत
सभी कर्मों का करती वो भरपाई है
आज रात है अगर तो
कल सबेरा भी होगा
डगर भले अंजान हो पर
कोई न कोई सहारा होगा
समझौता नही कर सकती मैं
मेरा चरित्र मेरे साँसों की कुंजी है
मोल नही है जिसका
वो अनमोल पुंजी है ।

गर मिल जाओ उस राह पे कभी तो
मुझे देखकर आह न भरना
अपनापन औ स्नेह देने की
मुझको कोई चाह न करना
जानती हूँ तुम्हे ज़िद मुझे
मनाने की होगी
पर समय फिर कुचक्र रचेगा
और मुझे जाने की जल्दी होगी ।
पुरानी रचना एक बार फिर से ..........

Thursday, 2 February 2012

तुम्हारी बारी

              ३
समझ न पाता मानव क्यों जो
बात बहुत पुरानी है
दिमाग के बिना चले भी जिंदगी पर
दिल के बिना बेमानी है
आज नही है कल नही था
पर एक दिन ऐसा आयेगा
साथ में चलनेवाला साथी
पल-पल में पछतायेगा

बहुत मिलेंगे साथी तुमको
पर नही मिलेगा मेरे जैसा
फूल बहुत सारे खिलेंगे
नही खिलेगा मेरे जैसा

विस्तृत नभ से वसुन्धरा तक
मन से मन की दूरी होगी
भूल नही सकोगे मुझको
यह तेरी मजबुरी होगी
भूल नही सकती मैं उनको
यह मेरी लाचारी है
मैंने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



         ४
जाने क्या रिश्ता है तुमसे
जाने क्या नाता है
छा जाये दिल में एकबार तो
कभी नही जाता है
तुम भी अपनाओ मुझको
तुम भी मुझको चाहो
बदले की ऐसी भावना मैंने
कभी नही चाही है
पर! तेरी दुनियाँ की हर चीज
लगती मुझको प्यारी है
मैंने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



        ५
तेरी एक झलक मात्र से
मेरा मन मयूर खिल जाता है
जैसे वीराने में जाकर
पागल प्रेमी गाता है
बदली भरे अंबर में जैसे
इंन्द्रधनुष छा जाता है
आसमान की छाती पर
बादल जैसे लहराता है
तेरा मेरा साथ है ऐसे जैसे
रंग और पिचकारी है।
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



       ६
तेरे पास आकर मैं
 दर्द में भी मुस्कुरा लेती हूँ
बेझिझक अपने दिल की बात
तुमको बता देती हूँ
मेरे सूने मन प्रागंन के
तुम राही अलबेले हो
दिल दुखानेवाली बातों से भी
मेरे दुख हर लेते हो
जैसे माँ के दुख को हरता
बच्चे की किलकारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है.