Thursday, 29 December 2011

मैंने मौत को देखा है

ब्लोगर्स साथियों  आप सबको नव वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामना....
आइये आज मै आप सबको अपने जीवन का वो अनुभव बताउं जिसे पूरा हुए सात साल हो गये |
२९ दिसंबर २००४ को मेरे ब्रेस्ट केंसर का आपरेशन हुआ था ........उस अनुभव को आप सबसे शेयर
करने का आज मौका मिला है | वैसे भगवान की कृपा से मै  स्वस्थ्य हूँ और आगे भी भगवान की ही
मर्जी |



आज भी मेरे मन मस्तिष्क पर
आश्चर्य एवम भय मिश्रित रेखा है
जबसे मैंने अपने आसपास
मंडराते मौत को देखा है !

मरने से नही डरती हूँ
खुद के गम को हरती हूँ
लम्बी आहें भरती हूँ
झरनों जैसी झरती हूँ
पल पल खुद से लडती हूँ
खुद को देती रहरहकर
विश्वास भरा दिलासा
नही है मकडजाल मेरा
न ही है कोई धोखा
जीना कुछ कुछ सीख गई हूँ
जबसे मौत को देखा है |

मौत को सामने देख कर मै ...........
ठिठक गई थी..... मेरी सांसे ........
मेरी जिन्दगी...... थम सी गई थी
मुझे यूँ घबराया देख
वो मेरे सामने आई ........
मेरे सहमे हुए दिल को
प्यार से सहलाया औ ...समझाया ...
जीवन औ मौत तो
जन्म -जन्मों के मीत हैं
समझ लूँगी इन बातों को
सचमुच जिस दिन
उस दिन होगी मेरी जीत
जन्म औ मृत्यु है ऐसे
जैसे पी संग प्रीत |

मैंने मौत की आँखों में झांकते हुए कहा .......
महानुभाव! मै आपको अच्छी तरह जानती हूँ
आपके आने के कारणों को
अच्छी तरह पहचानती हूँ
आपकी वजह से मैंने बड़े से बड़ा .....
दुःख सहा है पर ........
याद करें क्या  मैंने  ?
कभी आपको उलाहना दिया है ?
अपनों के मौत की पीड़ा
क्या होती है ......
मौत होने के कारण
क्या आपने इसे कभी सहा है ?
मै मौत से नही डरती
आपको देखकर लम्बी आहें
नही भरती ......
डरती हूँ तो सिर्फ औ सिर्फ .....
अपनों से बिछुड़ने  की पीड़ा से
ये सोचकर की मेरे बाद
मेरे बच्चो का क्या होगा ?
जो सपने मैंने उनके लिए बुने हैं
उन सपनों का क्या होगा ?
मौत बड़े प्यार से मेरे पास आई
आँसू भरे दो नैनों को
आँसुओ से मुक्त कराया औ कहा...........
मै भी इतनी निर्दय नही हूँ ....
दुःख तो मुझे भी होता है
जब साथ किसी अपनों का छूटता है
पर !मै अपने दिल का दर्द
किसे बताउं ........
अपनी जिम्मेदारियों से कैसे
भाग जाऊ?
मै जानती हूँ
माया मोह के  बंधन को तोड़ने में
वक्त तो लगता है .....
अधूरे सपनों को मंझधार में छोड़ने में
दर्द तो होता है |

मैने मौत से आग्रह किया ........
गर आप मेरे दुःख से दुखी हैं
तो  .......मेरे ऊपर एक  एहसान  कीजिये
ज्यादा नही पर इतना वक्त दीजिये
जिससे मै अपने अधूरे काम निबटा सकूँ
उसके बाद आप जब भी आयें मै .....
ख़ुशी-ख़ुशी आपके साथ जा सकूँ
पलक भर के लिए उसने मुझे देखा
फिर मन ही मन कुछ बोली औ कहा .......
जिजीविषा  औ विजिगीषा की पहचान हो तुम निशा ......
आशा औ विश्वास की खान हो तुम निशा
मै तुम्हारी नही तुम्हारे विश्वास की कद्र करती हूँ
अपने आधे अधूरे कार्य को पूरा कर सको
मै तुम्हे इतना वक्त देती हूँ ......
मौत से मिले इस उधार  वक्त की
कीमत मै जान गई हूँ
जीना किसको कहते हैं
इसको कुछ -कुछ जान गई हूँ |


Friday, 23 December 2011

अपनापन

अपना कभी  अपनों  से
रूठ नही सकता
नींद  औ सपनों का रिश्ता
टूट नही सकता ........


एक दूसरे का साथ
विश्वास से चलता है 
बेगानों की दुनिया में  भला  कहाँ ?
अपनापन  मिलता है ..........



दुःख  मुझको  देकर  सोचो  भला .........
तुमने क्या पाया ?
उतना ही तुम भी दुखी हुए
जितना  मुझको तडपाया........



लाख कोशिश  करे पतझड़
बहारें  फिर भी आय़ेगी
उदासी भरे पल हो या ........
खुशियों भरी  शामें
जब -जब साँझ  ढलेगी
तुम्हें मेरी याद सताएगी ...........

लाख गम हो मुकद्दर  में निशा के ......
वो फिर भी खिलखिलाएगी .....
वो फिर भी खिलखिलाएगी ........

Friday, 25 November 2011

फुरसत के लम्हे


सोचा था मैंने-------
सच्चाई को शब्दों की
जरुरत नहीं होती-----
पता नही था----
चुप रहनेवालों को
दुनिया चोर समझती है।




गम इस बात का नहीं------
बिना किसी गुनाह के
उसने इलज़ाम लगाया मुझपे-----
गम इस बात का है
मेंने झूठ को सच के साये में
पलने दिया।


वो नहीं समझ पायेंगे कभी-------
मेंने ऐसा क्यों किया ?
सदियों चल सकती थी सायेमें   उसके----
फिर भी कुछ लम्हों को  क्यों जिया ?????????


Friday, 11 November 2011

कैसे कहूँ ?


आदर्श,मर्यादा,समर्पण,ईमानदारी औ
नित नये-नये प्रयोग की ज़मीं पे
मन मेरा है जीता
यही मेरा जीवन है औ
यही है गीता।
इन मूल्यों को अपनाकर
क्या-क्या मैने पाया
पाने के क्रम में
कैसे कहूँ ?
क्या-क्या मैने खोया।
खोने के गहरे ज़ख्मों को
कैसे ? किसको ? दिखलाऊँ
इन रिस्ते ज़ख्मों पर कैसे?
मरहम मैं लगवाऊँ ?
नैनों को हँसते सबने देखा
दिल की पीडा किसने जानी ?
सदियों से चली आ रही
खोने औ पाने की ये करुण कहानी।
छोटी-छोटी इन बातों से
अमावस की काली रातों से
ना घबराना प्यारे तुम
हमेशा याद रखना
दुःख के गहन अंधेरों में
द्विविधा की बोझिल पहरों में
हर इंसान हमेशा अकेला हीं
खडा रहता है
इन बाधाओं को पार कर जो
अपना परचम लहराता है
आनेवाले पल का वही
सिकन्दर कहलाता है
वही सिकन्दर कहलाता है।

Friday, 4 November 2011

सच कहूँ ?

तुम्हारी एक खामोश नज़र ने 
मुझे दिखा दिये
तुम्हारे बरसों से धारण किये हुये
धेर्य को 
तुम्हारी प्रतीक्षा करने की शक्ति को 
सलाम है तुम्हारी इस भक्ति को
जिसने पत्थर को पिघला दिया 
जो दिन मुझे नही देखना था
वो दिन भी दिखला दिया
जो सहन नहीं कर सकती थी
उसे सहना सिखा दिया
जो बहना मुश्किल था
उसे निर्झर बना बहा दिया़ 
अनवरत अहर्निश,सच कहूँ ?
लिखे गये ये शब्द , मेरी उक्ति नही 
बल्कि तेरी ही अभिव्यक्ति है
महसुस  हो गया है 
मुझे कि प्यार में कितना दम होता है
कितना भी व्यक्त करो ये हमेशा कम होता है।

Sunday, 23 October 2011

दीये की बाती

अमावस  की निशा के तम को हरने 
उसके अनकहे जख्म को भरने 
दीवाली दीपों  की जोत को संग लेकर आई है 
वैरी बन बैठा पवन पुरवाई है ......
पर दीये की जोत भी भला कभी 
इन बाधाओं से घबराई है ?
करें हम इस मूलमंत्र को आत्मसात 
होगी सर्वदा हमारे जीवन में 
खुशियो की बरसात ........
ईर्ष्या , द्वेष ,अहंकार ,औ 
बदले की भावना की आहुति देकर 
हम नेह के दीप जलाएं 
छोटे से इस जीवन में 
आनंद का उजास फैलाएं 
वैर-भाव को भूलकर 
एक उन्मुक्त  आकाश बनाएं 
जितना संभव होता हमसे 
उतना ही हम पर फैलाएं .........
दिल के अंतस में बोयें बीज
उमंग औ उल्लास का 
स्नेह औ सहयोग का 
श्रद्धा औ विश्वास का 
अनुकूलन औ समायोजन का 
उगेंगे जिससे हमेशा 
पौध सदा नवीन 
खिलखिलाएगी दिल के साथ 
मन की भी जमीन ........
 शुतुरमुर्ग बन
रेत में गर्दन छिपाने से 
काम नही चलेगा .......
निर्दोष निष्प्पाप दिल को 
ठेस पहुचाने का कर्ज  चुकाना होगा 
बनकर दिये की बाती 
बन्धु तुमको आना होगा ......
गर बन्धु हो तो ?
आना ही होगा .....
कभी नही भूलें हम 
श्रदा है तो संयम भी मिलेगा 
दिल से पूजा है तो 
दर्शन अवश्य ही  होगा 
भक्ति मन में प्रबल हो तो ?
आश्रय अवश्य मिलेगा .......
दीवाली में हर दिल का 
दीया अवश्य जलेगा ...... अवश्य जलेगा .......



Thursday, 20 October 2011

मुर्गा बोला

मुर्गा बोला ....
कुकड़ू कु 
हुआ सबेरा जागो तुम 
दुनियां  जागी 
मुनियाँ जागी 
जाग रहा है 
घर सारा 
मुर्गी रानी 
मान भी जाओ 
तुम बिन मेरा 
कौन सहारा ?




मुर्गी बोली ........

खुद को दयनीय  बताकर 
दिल मेरा हर लेते हो ?
चाँद सितारे मेरे दामन में भरोगे .......
कहकर मुझे सब्जबाग दिखलाते हो ..........
छल करने की ये अनोखी अदा 
किस छलिये से सीखी है ?
देखी होंगी बहुत सारी पर ........
मुझ सी नही देखी होगी 
नही चाहिये चाँद सितारे 
नही महल न हरकारा 
मुर्गे राजा मुझको चाहिए 
केवल औ केवल साथ तुम्हारा .

Tuesday, 18 October 2011

एक मुलाकात


सुबह का समय था
दिवाकर सात घोडों के रथ पे
होके सवार
अपनी प्रिया से मिलकर
आ रहा था
पवन हौले-हौले पेड की डालियों औ
पत्तों को प्यार से सहला रहा था
समाँ मनभावन था अचानक-
मेरी आँखें उसकी आँखों से मिली
उसने मुझको देखा
मैनें उसको देखा
मैं आगे बढी
उसने पीछे से  मारा झपट्टा
औ पकड लिया मेरा दुपट्टा
मैं पीछे मुडी उसे डाँटा
वो भागा पर-------
पुनः आगे आकर
मेरे रास्ते को रोका
औ मेरी आँखों में झाँका
उसकी आँखों में झाँकते हुये
महसुस हुआ
उसका प्यार बडा ही सच्चा था क्योंकि वो---------
आदमी नहीं बंदर का बच्चा था।

Thursday, 6 October 2011

प्रतिच्छाया

झूठ मैं कह नहीं सकती
सच्चाई तुम सुन नही सकते
विश्वास से भरे सतरंगी सपने
बुन नही सकते।
गलती है तुम्हारी या फिर ?
दिल तुम्हारा किसी अपनों ने ही
भरमाया है
आश औ विश्वास से बुने
संबंधों को
बार-बार चटकाया है ?
शायद यही वजह है कि
तुम्हें किसी का एतबार नहीं
तुम्हारे अपनों ने शायद
तुम्हे बहुत सताया है
दुःख है कि तुमने
ये कभी नहीं बताया है।
पता चल गया है मुझे कि
तुम्हारी  सोच के पीछे
तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नकारात्मक  प्रतिच्छाया  है।

Monday, 26 September 2011

अर्पण



दिल में चिर जुदाई की पीडा
दिमाग में यादों की बदली छाई है
आज सभी घनीभूत होकर
फिर से बरसने आई है।
नैनों के नीर
दिल के पीर
श्रद्धा औ स्नेह से बनाये गये खीर
बाबुल मैं अर्पण करती हूँ
अपने सारे मृदृल भावों का
इस पावन दिवस पर
तर्पण करती हूँ।
बडे ही सुखमय दिन थै वो
स्वर्ग था तेरी बाँहों में
दिल सुकून से भरा रहता था
तेरी ममता की छाँहों में
आवागमन के साधन नही हैं
पर-दम है मेरे भावों में
बिना टिकट के बिना पते के
ये पहूँच जायेंगे
तेरे गाँवों में।

Sunday, 25 September 2011

बिटिया


निशा अपने रौ में चली जा रही थी
अपनी भावनाओं में बही जा रही थी
पीछे से दौडते-हाँपते
चाँद-तारों औ-
दसों दिशाओं ने -
आवाज लगाई- रुको,सुनो-
हमारा फैसला करके जाओ
बताओ-हम सब में
सबसे सुन्दर-सबसे अच्छा औ
सबसे चंचल कौन है ?
निशा कुछ देर के लिये रुकी
उनकी ओर झुकी और बोली
सुनो दोस्तों-गर तुम मुझसे
फैसला करवाना ही चाहते हो
मेरा राज मुझसे उगलवाना ही चाहते हो तो सुनो-
तुम सबने अपना नाम तो बताया पर-
इसमें एक नाम जोडना भूल गये
बेशक, तुम सभी अच्छे,सुन्दर औ चंचल हो पर-
बुरा मत मानना यारों
अभी प्रथम नही आने की
तुम्हारी बारी है क्योंकि-
सबसे अच्छी,सबसे सुन्दर औ
सबसे चंचल बिटिया हमारी है
जिसने दी है मेरे जीवन को
एक अपूर्व दिशा
वो है मेरे दिल की धडकन
मेरी बिटिया ईशा
कुछ देर के लिये सभी सकपकाये पर-
भावनाओं के प्रबल वेग को
रोक नही पाये कहा-
हम सभी गर्वमिश्रित झोकों में झूल गये
अपने को याद रक्खा
पर -अपनी बिटिया को कैसे भूल गये
सच ही तो है
बिटिया माँ-बाप के जीवन की
धारा होती है
उनके आँखों में बसनेवाली
सुनहरी तारा होती है।
डाँटर्स डे पर सारी बेटियों के लिये समर्पित है मेरी ये रचना।

Wednesday, 21 September 2011

पूँजी


धन चला जाये तो जाने दो
दुःख का कडवा घूँट नही पीना
स्वास्थ्य जरुरी है सीखो
मुस्कुरा के जीना
चरित्र जीवन की पूँजी है
इसे कभी नही गँवाना
पहले गलती करके
पीछे पड ना जाये पछताना
मृगतृष्णा के जाल में फँसकर
अपने सम्मान को नही खोना
आज-अभी-क्षणिक -सुख के लिये
आनेवाले कल को दाँव ? पर
नही लगाना
रोते हुये जग में आये हैं
हँसते हुये जग से जाना।

Friday, 16 September 2011

लोग


सही बातों का गलत मतलब लगा लेते हैं लोग
गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं लोग
अपने हिस्से की खुशी लेकर भी संतुष्ट नहीं
दूसरों के हिस्से की खुशी झपट लेते हैं लोग
संबंध नही निभाना हो गर तो ?
संबंधों पे प्रश्नचिन्ह लगा देते है लोग
खुद को आका साबित करने के लिये
बेगुनाहों और मासुमों का कत्ल करवा देते हैं लोग ।

Wednesday, 14 September 2011

हिन्दी दिवस


हिन्दी तन हो
हिन्दी मन हो
हिन्दी मान हो
हिन्दी सम्मान हो
हिन्दी में व्यक्त करें
हम अपनी सारी भावनायें
आज हिन्दी दिवस पर
आपको मेरी तरफ से भी
ढेर सारी शुभकामनायें।

Saturday, 10 September 2011

कीमत


जो होता है
अच्छा होता है
जो खोता है
वही रोता है
जो खोयेगा ही नही तो ?
रोने की कीमत समझेगा कैसे ?
जो टूटेगा ही नही तो ?
जुडने की कीमत समझेगा कैसे
उदासी की जब नही पडी तो ?
मुस्कान की कीमत क्या वो समझे ?
दिल से नही जुडा है जो
अपनेपन की कीमत क्या वो समझे ?
मान नही मिला हो जिसको
अपमान की कीमत क्या वो समझे ?

Friday, 9 September 2011

उसकी यादें



मेरी बिखरी-बिखरी सी यादें
मुझे छोडकर तुम
कहीं और चली जाओ
मेरे लौहखंड से बने
इरादों को यूँ कमजोर न बनाओ
दुनियाँ से जाने के पहले
बहुत कार्य है निबटाने को
क्या मैं हीं हूँ इकलौती ?
अपना अस्तित्व मिटाने को ?
जब कोई मेरी परवाह नहीं करता ?
तो ? मैं क्यों करुँ किसी की परवाह ?
क्यों निकालूँ किसी के लिये
दिल से कोई आह ?
अच्छा होगा


बेदर्दों से दूर रहकर
मैं अकेली ही चलती चली जाऊँ
अपनी मर्जी से रोऊँ या गाऊँ
तुमको तो पता है ?
आत्मा तक पहुँचने का
दिल है एकमात्र रास्ता
पर ? जो दिल से नहीं जुडा है
उसका मुझसे क्या वास्ता ?
अच्छा यही होगा
तुम मुझे उसकी याद न दिलाओ
जैसे उसने भूला दिया मुझे
वैसे मुझसे उसकी यादें भी ले जाओ ।


Monday, 5 September 2011

माँ


माँ-मैं खग थी
तुम थीं मेरी दोनों डैने
तुम जैसी माँ पाकर
जीत लिया जग मैने
बिना मिले तुम चलीं गईं
मजबूरियों पर रोती हूँ
सपनों में आकर मिल लेती हो
जब भी मैं दुःखी होती हूँ
साथ तुम्हारा छूटा जबसे
द;खों के झोकों में
झूल गई
तेरे बिन माँ मैं अपने
घर का रास्ता भूल गई।

गुरु


गुरु केन्द्र है ग्यान का
करे व्यक्तित्व निर्माण
गुरु की महिमा का न कोई
कर सकता बखान
गुरु है तो राष्ट्र है
गुरु बिना सब सुन
गुरु बिना न मुक्ति मिले
इन्हें सोच-समझकर चुन।

प्यार क्या होता है?


कल पर विश्वास नही होता तो ?
आज नही होता
प्यार कभी दूरियों का
मोहताज़ नही होता
किसने जाना ? किसने समझा ?
प्यार क्या होता है ? बिना दिये कुछ ?
मिले हमेशा प्यार वही होता है।
नेह का नाता उम्र भर साथ निभाता है
देह का नाता हमेशा धोखा दे जाता है
वासना,व्यभिचार औ रिश्तों के व्यापार से
झूठ, फरेब औ बनावटी व्यवहार से
मुक्त होता है प्यार।
प्यार की कोई परिभाषा ?
कोई सीमा नही होती
ये दिल का चैन औ
नैनों की है ज्योति।

Thursday, 1 September 2011

ऐसी खुशियाँ कब माँगी थी ?


जीना-मरना एक समान हो
रोने-गाने में भेद नही हो
जीवन का मँझधार जहाँ हो
डुबी नाव पतवार नही हो
माँझी भी अड-अडकर जहाँ पर
बनते हों अभिमानी
सच बता दो मुझको भगवन
ऐसी खुशियाँ कब माँगी थी ?

जीवन का अस्तित्व मिटाया
अरमानों का गला दबाया
बनी समर्पण की ही छाया
तब सुख का दिन था ये  आया
सुखमय भरे दिनों मे भला
बन बैठा कौन वरदानी ?
वर देने के बदले डँस रहा सुख को
ऐसी खुशियाँ कब माँगी  थी ?


पीर बन गया पर्वत अब तो
बरगद सी व्याथायें
सिसक- सिसक कर मन भी
अब तो ,कहता करुण कथायें
भूलना चाहूँ भूल न पाऊँ
किसकी है ? मनमानी
एक पल अब तो एक युग लगता
ऐसी खुशियाँ कब माँगी थी ?


दुख के दिन हैं कट जायेंगे
गम के बादल छँट  जायेंगे
दूर करुँगी दुःख-दर्दों को
अपनी त्याग-तपस्या से
नहीं डरूँगी-नही हारुँगी
ऐसी हूँ स्वाभिमानी
पा लूँगी उन खुशियों को भगवन
जैसी तुम से है माँगी।

तीनों पागल है


ये घटना १९८७ या १९८८ की है।लगातार बारिश हो रही थी।
मेरे गाँव रसलपुर,नौगछिया,भागलपुर के लोग आश्वत थे कि
इस बार बाढ नही आयेगी क्योंकि सामान्यतः बाढ तब
आती थी जब नेपाल के किसी बाँध का फाटक खोला
जाता था, ऐसा ही हमारे बडे-बुजुर्ग कहते थै। पर उस
समय शायद कुछ नये बाँध और बनाये गये थे। अतः
सभी निश्चित थै।उनमें मेरे पिताजी स्वर्गिय श्री रघुवीर यादव
एवं मेरे जीजाजी श्री रणविजय कुमार भी शामिल थै।
जिन्हे विश्वास था कि बाढ नही आयेगी।
पर मैं, मेरी माँ स्वर्गिय तिलेश्वरी देवी एवं मेरी दीदी
श्रीमति शांति सिन्हा ने उनके मना करने के बाबजूद
घर का सामान व्यवस्थित करना शुरु कर दिया था।
हम तीनों रात भर जग सामान जमाते रहे।पलंग,चौकी,
अलमारी,टेबल सभी को पाँच ईटों पर रखा क्योंकि
खिडकी के आर-पार बहता था।घर का सामान जमाने के
बाद हमने भूसा घर की ओर रूख किया
तब सुबह के पाँच बज गये थै। मैंने सुना-जीजाजी, पिताजी
से कह रहे थै-ये तीनों रात भर से जग कर सामान जमा
रही हैं।पिताजी बोले-एक पागल हो तो उसे समझाया
जा सकता है।यहाँ तो तीनों पागल है।अचानक पानी गिरने
की आवाज आई और देखते-देखते खेतों से बहता हुआ हमारे
घर मै घुस गया।अब हमारे होंठों पर विजयी मुस्कान खेल
रही थी।पिताजी और जीजाजी भी मुस्कुराते हुये बोल
रहे थे कि अच्छा हुआ जो तुमने हमारी बात नही मानी।
बाढ आने बाद हम अंबिका चाचा के यहाँ रहने चले जाते थै।
बडा मजा आता था। सभी मिलजुल कर रहते थै।
तकरीबन बारह परिवार होते थै।आज भी वो सारी
बातें मेरे मानस पटल पर अंकित है।पर अब न तो वे लोग
रहे न हीं पहलेवाला वो अपनत्व।इस बात का दु;ख अवश्य है।

Wednesday, 31 August 2011

एक पहिया


आज अपनी गलतियों से
शर्मिंदा हूँ
गलत नही हूँ
सही होने से शर्मिदा हूँ
यादों को भूलाने में
दर्द बहुत होता है
ज़ख्मों में मरहम
लगाने में जैसा होता है
दिल भारी है
मन भारी है
यादों के किसी को
मिटाने की जबसे
मन ही मन तैयारी है
मरे हुये बच्चे को कब तक?
सीने से लगाये हुये
रहेगी बंदरिया ?
सबको पता है
गाडी तभी तक चलती है
जब तक कार्य करता है
गाडी का सभी पहिया
तभी मुसाफिर अपने
मंज़िल तक पहुँच पाता है
एक पहिया लाख कोशिश करे
अकेले कुछ नही कर पाता है

Tuesday, 30 August 2011

पहचान ?


जीवन के सफर में
एक हमराह मिल गया
दिल था पगला अनायास
खिल गया
पर-------समय का चक्र ?
एक ऐसा वक्त लेकर आया
खिलते हुये दिल को
बेदर्दी से बिलखाया
जिसे हमदर्द समझा था
वो छलिया निकला
पक्षी को जाल में फँसानेवाला
बहेलिया निकला
दिल अपनी नादानी पर
जब पछताता है
मन उसे धीरे-धीरे
प्यार से समझाता है
जो बीत गया उसे भूल जा
कहना मेरा तूँ मान
ठोकर खाकर ही होती है
इंसान की पहचान।

Friday, 26 August 2011

अस्तित्वहीन


कक्षा में अध्यापक पढा रहे थे
पौधों के क्या-क्या भाग हैं
समझा रहे थे
सबसे नीचे जमीन के अंदर
जड होता है
जो है पौधे का महत्वपूर्ण भाग
ये जमीन से खनिज-लवण लेकर
पौधों को जमीन में दबाये रखता है
उसके अस्तित्व को बचाये रखता है
भले ही आये बडी आँधी या तूफान
खुद उसकी नही है कोई पहचान ?
जड के ऊपर खडा रहता है
दंभी तना ?
जड से सब-कुछ लेकर
जो अभिमानी बना ?
पत्ते - फूल- फल सभी
देन है उस जड का
जिसका ऊपर से होता नही
कोई नामोंनिशान ?
ऐसा लगा ----- मैंने इसे
कहीं और भी देखा है-----
कहाँ ? कहाँ ? कहाँ ?
ध्यान आया ये तो
हर जगह है
हर घर-हर समाज
पूरे संसार मैं
जिससे बनती है
रिश्तों की फूलवारी
वो है सृजन में लिप्त
हर घर की अस्तित्वहीन नारी ?
कैसी विडंबना है जिससे होता सबका अस्तित्व
वो खुद है अस्तित्वहीन ।

Saturday, 20 August 2011

मेरी शुभकामना


जीवन की चिलचिलाती धूप में
तुम्हारे सानिध्य की घनी छाँह ने
दिल को चैन औ दिमाग को
बार-बार नया आसमान दिया है
यादें धुमिल न हो ताउम्र
ऐसी छवि है मन में तेरी
तुम्हारे जन्मदिन पर
शुभकामना है मेरी
हर इच्छायें,हर सपने
सारी तमन्नायें
पूरी हो तेरी
तुम्हारे घर खुशियाँ अपरम्पार हो
दौलत की बौछार हो
पर------याद रखना
दौलत? काम? के नशे में
अपनों को भूल नही जाना
नही तो ? वक्त निकल जाने के बाद
पडेगा पछताना।

Sunday, 14 August 2011

बाबूजी


बाबूजी-----, आपकी बरसी पर---
मेरी वेदना बहना चाहती है
अंतिम विदाई में जो नही कह सकी
आज वो कहना चाहती है।

दिल ने नही भुलाई अब तक
दिल्ली की वो विदाई---
गाडी छूटने की पीडा
आपके आँखों में उतर आई
इच्छा थी मेरी जीभर के गले मिलूँ औ
नैनों से नीर बहाऊँ
दिल के अव्यक्त व्याथा से,
माँ के खालीपन से,
आपके चिर बिछडन की पीडा से
मुक्ति पाकर वापस मंदसौर मैं आऊँ।

पर----आसुओं को लडी बनाकर
मेरी आँखें जब भी
 मेरी पीडा को दर्शाति थी
बदली बन उड जाती पीडा
आपकी अँखियों में लहराती थी
होश सँभाला जबसे मैने
ये बातें मुझे सताती थी
दःख न हो आपको
इसीलिये कई बातें नहीं बताती थी
हँसते -हँसते जी जाती थी
गम के आसुँ पी जाती थी ।

इसीलिये बिछडते वक्त आपसे
मैंने आसूँ नही बहाया
दिल मेरा जो कहना चाहा
उसे नही कह पाया।



समझ रहे थे दिल औ दृग
चिर विदाई की घडी आई
कालचक्र ने एकबार
अपनी लीला पुनः रचाई
छलक नही सकी थी
जो आखें आज अब छलकाती हूँ
सबको जाना है दुनिया से
इस बात से दिल को बहलाती हूँ।

दिल से अपनाया
आपके दिये संस्कार
तहेदिल से किया हे
आपकी हर आँग्या को शिरोधार्य
सच्चे दिल से निबटाये
मैने सारे कार्य
पहले माँ,फिर आपके जाते हीं
दुनियाँ हो गई छोटी
स्वीकार नही कर पा रही
ये बात आपकी बेटी।



माँ के साथ खुश होंगे वहाँ
ये सोच के खुश हो लेती हूँ
पीडा के घनिभूत होने पर
संग बिताये लम्हों को
एकबार पुनः जी लेती हूँ
दुखी होंगे मेरे दुःख से
सोचके ये गम हर लेती हूँ।


दूर होकर भी दूर नही हैं
ये बात मैं जानती हूँ
परछाई बनकर साथ रहते मेरे
ऐसा ही मैं मानती हूँ
जब-जब मैने खुद को
किसी उलझन मैं घिरा पाया
तब-तब आपने सपनों में आकर
मेरी उलझन को सुलझाया ।



बाबूजी----आपकी बरसी पर
श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ
बनूँगी हर जन्म में बिटिया
आपदोनों की,भरे दिल से
वादा करती हूँ
बेटी बनकर नही जीऊँगी
अब माँ बनकर जीना होगा
सारे उलझन ,सारे गम
खुद ही खुद में पीना होगा
इंतजार करुँगी उस पल का बेसब्री से
जब अगला हमारा मिलन होगा


खुसी से छलकती आँखें होंगी
उमंग से लहराता स्वर होगा
सात घोंडों के रथ पे होके सवार
रवि पश्चिम दिशा को जाता होगा
अगवानी करने के लिये
चाँद-तारों से सजी निशा को
बुलाता होगा।








Saturday, 6 August 2011

हम दोस्त बनें


दोस्ती का रिश्ता बहुत ही
प्यारा और बडा होता है
स्नेह और विश्वास की नींव पर
खडा होता है।

दिल से दिल का जुडना
मन से मन का मिलना
एक अनोखा किस्सा होता है
दोस्त जिन्दगी का एक
अविभाजित हिस्सा होता है।

न हँसी न मजाक से
न ही कीमती उपहार से
दोस्ती में निखार आता है
सिर्फ औ सिर्फ
आपस की तकरार से


कुछ दिनों का अनबन,अबोला
हमें हमारी दोस्ती की कीमत बतलाता है
एक दुसरे का हमारे जीवन में
होने का मतलब समझाता है
तभी हमारा मन दोस्ती की
धुन पर गुनगुनाता है
दोस्त वो हे जो एक दुसरे से
मिले बिना अधुरा होता है
मिले एक दूसरे से तभी जागी
अँखियों का सपना पूरा होता है
ऐ दोस्त---- मेरी अभिलाषा है
हम दोस्त बनें जैसे
कृष्ण औ सुदामा
बिना कहे हम समझ जायें
एक-दूसरे का सफरनामा।

ऐ दोस्त


जीवन के इस दुर्गम पथ पर
पता नही क्या सोच रही हो?
कैसे कटते दिन तेरे हैं?
कैसे कटती रातें ?
इच्छा होती अब मेरी
करुँ मैं कुछ-कुछ बातें
तेरे दिल की तुम ही जानो
मैं अपना हाल सुनाती हूँ
हर दिन हर पल खुद को मैं
तेरे ही ख्यालों में पाती हूँ।

जीवन के इस मेले में
सभी हैं मेरे साथ पर
ऐ दोस्त एक तेरे बिना
मेरा दिल है बहुत उदास
यादों की अनमोल पूँजी
हैमेरे साथ जब हम हुआ
करते थे एक दुसरे के पास।

कितनी भी परेशानी आये
तुम होना नही उदास
बस यही एक विनती है
औ यही है मेरी मनोकामना
करना है तुमको हर मुसीबत का सामना
राह भले दुर्गम हो
कभी हिम्मत न हारना
क्योंकि------- तुम------
ईशान की जमीं हो-
सतीश की सर्वस्व-
माता-पिता की डोर हो औ
निशा की हो तुम भोर-
तुम,तुम नही हो
तुम-बहुत कुछ हो।  

Wednesday, 3 August 2011

तुम मेरे लिये क्या हो


मन पाखी वैसे ही भटकता
जैसे बिन पेंदी का लोटा
माँ के साथ अगर नहीं रहता  हो बेटा
बेटा माँ के लिये क्या होता है
ये कैसे करुँ इकरार
मेरे जीवन के,मेरे सपनों के
मेरे वर्तमान औ भविष्य के
केवल तुम्ही हो सुत्रधार
तुम हो मेरे श्रवण कुमार
तुम्ही मेरे मान हो
तुम्ही अभिमान हो
अंजनी के लिये जैसे हनुमान हैं
कौशल्या के लिये जैसे राम हैं
यशोदा के लिये जैसे कृष्ण-कन्हैया हैं
वैसे ही तुम अपनी मैया के लिये हो
तुम्हे कैसे बताऊँ कि
तुम मेरे लिये क्या हो ?
तुम्ही हो सूरज तुम्ही हो चंदा
मेरे जीवन को महकानेवाले
तुम्ही हो मेरे गेंदा
बचपन को तेरे सँवारा मैने
बनकर तेरी लाठी
मेरी आँखों के तारे
मुझसे कभी दूर नही होना
बनकर मेरे बुढापे की लाठी
संग हमेशा रहना
दीदी का मान बढाना
बनकर उसका गहना
दौपदी का कृष्ण बन
सदा संग उसके बहना
पापा का रखना मान
भूलकर भी कभी नही
करना उनका अपमान
मैं रहूँ या न रहूँ
परछाई बनकर तेरे संग चलूँगी
किसी भी मुसीबत में
तुम हिम्मत मत हारना
दिलेरी से करना उनका सामना
हमेशा याद रखना
कभी नही भूलना कि
माँ की जान उनकी संतान होती है
जो खुद के लिये नही
मगर उनके लिये ही जीती है
तेरे इस जन्मदिन पर
मेरी है शुभकामना
मेहनत कर दिन-रात तुम
नभ की बुलंदियों को छु लेना
एक अच्छा इंसान बनकर
मेरी पहचान बनकर
मेरे दूध का कर्ज चुकाना।

Tuesday, 2 August 2011

मेरी ख्वाहिश


मेरे दिल में तुम्हारे लिये प्यार था
तुमने उसे व्यापार समझा
मैंने तुम्हारी प्रशंसा की
तुमने उपहास समझा
सोचा था-खुशियों को साझा करने से
अपनेपन का एहसास बढ जायेगा
गम साझा करेंगे तो ये आधा हो जायेगा
पर पता नहीं कैसे ? कब ?क्यों ?
तुमने मकडी के जाले बुन डाले
मेरे स्नेह,अपनापन और आत्मीयता के
सारे अर्थ बदल डाले
दिल के दुःखमय उदगारों को
भग्न ह्रदय से कैसे मैं कहूँ?
सहा नहीं जाता जो गम
उसे कैसे मैं सहूँ।


मेरे दुःख को तुमने नही
मैने ही बडा कर दिया
अपनेपन की चाहत ने
आज मुझे इस मोड पर
 खडा कर दिया
 जहाँ एक तरफ तुम हो
दूसरी तरफ है
अनजानी सी डगर
सधे कदमों से मैं उस
पथ पर कदम बढा रही हूँ मगर
मुझे पता है जिस दिन
तुन नैराश्य औ असुरक्षा के
 घेरे  से बाहर आओगे
अपने साथ मुझे खडा न पाओगे
उसी क्षण से मुझे पाने के लिये
बेताव हो जाओगे।

तुम्हारे पास होगा मेरे लिये केवल
अपनापन औ प्यार पर
तब तक इतनी देर हो चुकी होगी
कि टुट जायेगी मेरी उम्मीद की डोर
और मैं चली जाऊँगी उस ओर
जहाँ से मेरा लौटना नामुमकिन होगा
और तुम्हारा मेरे पास आना होगा असंभव।

हो सके तो उस दिन
अपने द्वारा बुने मकडी के जाले
को साफ कर देना
दिल की गहराईयों से मुझे
माफ कर देना
जाते-जाते एक बात बताते जाऊँ
ख्वाहिश है मेरी
कभी किसी मोड पर गर
मैं तुमसे टकराऊँ
तो तुम्हे हँसते खिलखिलाते ही पाऊँ।

तुमने मेरे लिये क्या सोचा
ये गम नही है
गम सिर्फ इस बात का है
कि मेरे कारण तुमने अव्यक्त
दु;ख सहे
समझ गई मैं सारी बातें
बिना तुम्हारे कहे
वादा करती हूँ तुमसे
अब वो बात नही दुहराऊँगी
खुश रहो तुम हमेशा
इसीलिये तुम्हारी दुनिया से
दूर चली जाऊँगी ।

तुम्हारे साथ बिताया हर पल
मेरे लिये बहुत अच्छा था
पर विश्वास करो
बनावटी नही था कही भी
हरेक व्यवहार मेरा सच्चा था ।

ज़िदगी के झंझावातों से
अपनों के दिये आघातों से
होंठों की हँसी और चंचलता
कुछ देर के लिये खो सकती है पर
किसी की मूलप्रकृति नही सो सकती
अपना स्वभाव बदलकर मैं जी नही सकती
चुपचाप रहकर गम के आँसू पी नही सकती ।

कभी अच्छा कभी बुरा
ये समय का फेरा है
जैसी जिसकी सोच होती
वैसा उसका घेरा है ।

सब को वही-वही करना है
जो प्रकृति करवाती आई है
सुख-दःख,सही-गलत
सभी कर्मों का करती वो भरपाई है
आज रात है अगर तो
कल सबेरा भी होगा
डगर भले अंजान हो पर
कोई न कोई सहारा होगा
समझौता नही कर सकती मैं
मेरा चरित्र मेरे साँसों की कुंजी है
मोल नही है जिसका
वो अनमोल पुंजी है ।

गर मिल जाओ उस राह पे कभी तो
मुझे देखकर आह न भरना
अपनापन औ स्नेह देने की
मुझको कोई चाह न करना
जानती हूँ तुम्हे ज़िद मुझे
मनाने की होगी
पर समय फिर कुचक्र रचेगा
और मुझे जाने की जल्दी होगी ।

Friday, 29 July 2011

साथी


अमावस की रात थी
निशा बहुत उदास थी
न कोई संग न कोई सहारा
कैसे कटेगा ये सफर हमारा
बीते दिनों की यादें
उसके अकेलेपन को सहला रहा था
उसका मन उसके दिल को
भरोसे की लौ से बहला रहा था
तभी उम्मीद की एक
किरण चमकी
निशा ने उस दिशा को
गौर से निहारा
स्याह पगडंडियों के ऊपर उसे
दिखाई पडा आसमान में
चमकता एक तारा
नज़रों से नज़र मिलते हीं
नन्हा सा दिल खिल उठा
सुहाने सफर का साथी जो
उसको मिल गया।

Sunday, 24 July 2011

अंतर


मैंने हमेशा चाहा कि
तुमको कुछ अच्छा दे सकूँ
कभी तुम्हारा दिल न दुखाऊँ
जितना हो सके तुम्हारे गम को कमकर
तुम्हरे जीवन मे खुशियाँ बिखराऊँ
पर,पता नहीं क्यों ?कब ? कैसे ?
समय करवट बदल लेता है
तुम वो नही समझते
जो मैं तुम्हे समझाना चाहती हूँ
तुम वो नहीं सुनते जो मैं सुनाना चाहती हूँ

जब दिल उदास होता है
मैं उसे दिलासा देती हूँ
आज नही तो कल आयेंगे वो पल
जब तुम मेरी बातों के
सकारात्मक पक्ष को समझोगे
करोगे मुझपर विश्वास
क्योकि आशा औ विश्वास ही
इंसान की पहचान है औ
जीवन का दूसरा नाम ही महासंग्राम है
मैं बस इतना ही चाहती थी
कि जीवन की राह में न लगे
तुम्हे कोई ठोकर पर
मैं अब समझ गई
कि तुम्हारी समझ में
सारी बातें आ जायेंगी
इक दिन मुझे खोकर

उस दिन तुम कोई
अपराधबोध मत पालना
न रोना , रोना किसी अभाव का
क्योंकि न तुम गलत थे
न मैं गलत थी
अंतर था सिर्फ मनोभाव का ।

Thursday, 21 July 2011

घूम आओ



जीवन की एकरसता से गर
मुक्ति पाना हो
उत्साह और उमंग को
जीवन का अंग बनाना हो
जोश किसको कहते है औ
कैसा है गंगा का बंधनयुक्त
उन्मुक्त मस्त विहार
देखना चाहते हो तो
घूम आओ हरिद्वार।

गंगा की इठलाती,लहराती औ बलखाती
जल की तरंगें हमें
जीने का राह दिखाती है
जीना किसको कहते हैं
बिना बोले सिखलाती है
दिल औ दिमाग दोनों को
ठंढक पहुँचाये ऐसी
करिश्माई है इसकी फुहार
महसुस करना चाहते हो तो,
घूम आओ हरिद्वार।



उच्श्रंखलता को दूर करने के लिये
जीवन को एक दिशा देने के लिये
थोडा बंधन जरूरी है
अपनी सीमाओं में रहने की
आदत कमजोरी नही
मजबूती की निशानी है
थोडी सी चंचलता
बहुत सारा प्यार समेटे रहती हरपल
खुद में पवित्र गंगा की धार
पाना है इसे तो।
घूम आओ हरिद्वार।


गंत्वय के प्रति ललक
मंजिल को पाने का अरमान
राह की बाधाओं को नकार
सागर से मिलने को बेकरार
हर सुख-दु;ख,मान-अपमान को
अपनाने के लिये तैयार
देखना है निर्भय विचरती गंगा का निखार तो,
घूम आओ हरिद्वार।



डगमगाते कदमों से
शाम को घर कैसे लौटता है
सुबह का भुला
देखना है तो जाओ
देख आओ लक्ष्मणझूला
श्रृंगार किसे कहते हैं और
कैसे हैं प्रकृति के विविध वेश
देखना ही है तो जाओ
घूम आओ ऋषिकेश।

















Monday, 18 July 2011

माफ करना

भूल जाऊँ तुमको मैं पर
दिल मेरा तेयार नही है
भ्रम नही सच्चाई है
तुमको मुझसे प्यार नही है।

बेचैन हो जाती रह-रह कर
यादों कि अलख किसने बिखराई है ?
दुःख सिर्फ इस बात की है
तुमने धोखे से मेरे दिल में जगह बनाई है।

जिंदगी की आपाधापी में
अपनों का साया छूट गया
औरों की क्या बात
जब मेरा दिल ही मुझसे रुठ गया।

पैरों के नीचे से जमीन खिसकी है
सिर से आसमान
सूना-सूना मन प्रांगन है
सूना सारा जहाँ ।

माँ जमीन होती है गर तो
पिता आसमान
ढूँढू कहाँ कैसे मैं उनको ?
कहाँ है मेरा वो घर-द्वार ?
दो अँखियाँ किया करती थीं
बेसब्री से मेरा इंतज़ार ।

सीमेंट कंक्रीट से बने
 मकान को घर नही कहते हैं
घर उसे कहते हैं जहाँ
माँ-बाप औ बच्चे
घुल-मिल कर रहते हैं।

घर में रहता प्यार हमेशा
नही बैर न पैसा
जहाँ खुशी का मतलब होता
केवल पैसा-पैसा
घर नही वो है एक सराय के जैसा

वैसे सराय में आने की
कीमत वसूली जायेगी
जिससे मेरे आत्मसम्मान औ स्वाभिमान की
नींव दरक जायेगी
होंठों से हँसी , आँखों से नींद
चली जायेगी
माफ करना सरायवालों
तेरे दर पे मैं तो क्या
मेरी परछाई भी नही आयेगी ।

Friday, 15 July 2011

पुनः

भूल कर सारे गिले शिकवे
तेरी गलती मेरी गलती
वादा का नया रस्म निभाना है
पुराने संबंधों को खत्म करें
अब संबंध नया बनाना है।
एक मोड पर क्यों खडे रहें
हरेक मोड से गुजर कर जाना है
किसी मोड पर मिले कभी थे
किसी मोड पर बिछड जाना हे
चेहरे पर दर्द को पढा नही
पढनेवाला अंधा था
सुनानेवाले का सुना नही
सुननेवाला बहरा था
अपनी-अपनी सबको पडी है
भौतिकता का ये गोरखधंधा है
संकीर्ण सीमाओं की मानसिकता से
हरेक प्राणी बँधा है
कितना भी शिकवा करं
ये दर्द न होगा कम
अनचाहे संबंधों को ढोने से
अच्छा है कि पुनः
अजनबी बन जायें हम।

Wednesday, 6 July 2011

मातृत्व प्यार


बदल गई है दुनिया मेरी
सज गया मेरा घर द्वार
जब से आई तू मेरे आंगन
लेकर केवल प्यार ही प्यार
एक दिन नही एक साल नही
बरसों किया तेरा इंतजार
प्रकृति के अनूठे सृजन के
सपनों को किया तूने साकार
आँखों से नींद उडी है
कोई दुःख-दर्द नही है
दिल करता तूझे देखूँ बारम्बार
क्या यही है मातृत्व प्यार ?
छोटे-छोटे पाँव हैं तेरे
छोटी-छोटी बाहें हैं

जाते देख मुझे तूँ भरती
सचमुच ठंढी आहें है
न कोई छल-कपट है उसमें
न कोई होशियारी है




नन्हीं गुडिया सच कहती हूँ
तूँ मुझे जान से प्यारी है
सह लूँगी सभी दुःख अपने
जो भी मुझपर आयेंगे
देख तुम्हारी दुःख को बिटिया
मन ही मन कराहेंगे
सुखी रहो तुम हँसकर हर दिन
जीवन सफल बनाओ
कर्मरथ पर बैठकर एक दिन
दुनियाँ में छा जाओ ।    

Sunday, 3 July 2011

सागर का दर्द


बरसों से मिलने की आस लिये बैठा हूँ
इंतजार की आग में पल-पल जला करता हूँ
ख्वाबों से तेरे,दिल को बहलाये रहता हूँ
सागर हू फिर भी, मैं प्यास लिये बैठा हूँ ।


इठलाती नदियाँ औ बलखाती तालें हैं
सतरंगी सपनों का संसार लिये फिरता हूँ
तेरे दरश को पलक बिछाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ।


विरह मैं पागल, दिवाना मैं घायल
सीने में अपने हलचल दबाये रखता हूँ
मौन की अनुगूँज में खुद को डूबाये रखता हूँ
सागर हूँ फिर भी, मैं प्यास लिये फिरता हूँ।


खुद का सुधबुध औ चैन गँवाये बैठा हूँ
लहरों की तरंगों में गम को छिपाये बैठा हूँ
नैंनों से अपने मैं,नींद भगाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ

Tuesday, 28 June 2011

बहुत मुश्किल है


मरते को बचाना
गिरते को उठाना
जलते को बुझाना
बहुत  मुश्किल है।

यादों को भूलाना
वादों को निभाना
रिसते हुये जख्म पर
मरहम लगाना
बहुत मुश्किल है।

टूटे हुये दिलों को जोडना
नदियों के प्रवाह को मोडना
सपनों को हकीकत में बदलना
बहुत मुशि्कल है।

अपमानित पल को भुलाना
जिद्दी मन को समझाना
अपनेपन की भावना से
पीछा छुडाना
बहुत मुश्किल है।

अपनी बारी को निभाना
बिगडी को बनाना
स्वार्थ भरे रिश्ते को चलाना
बहुत मुश्किल है।

क्रोधी को हँसाना
लोभी को मनाना
शक्की को विश्वास दिलाना
बहुत मुश्किल है।

 

Tuesday, 24 May 2011

तुम्हारी बारी


तेरे गम को साझा किया मैने,
अब तक न हिम्मत हारी है
आज अभी अब दुखी हूँ मैं भी
अब तुम्हारी बारी है।


          १

मेरे उर ने पढे हैं
 तेरे नैनों की की सब भाषा
सागर तेरे पास है फिर भी
तुम क्यों बैठे प्यासा ?
मीठा पानी,खारा पानी
या सब एक जैसा ?
साल नही महीना नही
एक पल मुझ पर भारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



         २

मानव के इस जंगल में
इंसां ढूँढना मुश्किल है
वो मानव जो दिल नही
दिमाग के वश में रहता है
संबंध नही समझते जो सिर्फ
अपना मकसद साधता है
मंजिल तेरी यहीं कही है ?
या कही और की तैयारी है ?
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



         ३
समझ न पाता मानव क्यों जो
बात बहुत पुरानी है
दिमाग के बिना चले भी जिंदगी पर
दिल के बिना बेमानी है
आज नही है कल नही था
पर एक दिन ऐसा आयेगा
साथ में चलनेवाला साथी
पल-पल में पछतायेगा

बहुत मिलेंगे साथी तुमको
पर नही मिलेगा मेरे जैसा
फूल बहुत सारे खिलेंगे
नही खिलेगा मेरे जैसा

विस्तृत नभ से वसुन्धरा तक
मन से मन की दूरी होगी
भूल नही सकोगे मुझको
यह तेरी मजबुरी होगी
भूल नही सकती मैं उनको
यह मेरी लाचारी है
मैंने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



         ४
जाने क्या रिश्ता है तुमसे
जाने क्या नाता है
छा जाये दिल में एकबार तो
कभी नही जाता है
तुम भी अपनाओ मुझको
तुम भी मुझको चाहो
बदले की ऐसी भावना मैंने
कभी नही चाही है
पर! तेरी दुनियाँ की हर चीज
लगती मुझको प्यारी है
मैंने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



        ५
तेरी एक झलक मात्र से
मेरा मन मयूर खिल जाता है
जैसे वीराने में जाकर
पागल प्रेमी गाता है
बदली भरे अंबर में जैसे
इंन्द्रधनुष छा जाता है
आसमान की छाती पर
बादल जैसे लहराता है
तेरा मेरा साथ है ऐसे जैसे
रंग और पिचकारी है।
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



       ६
तेरे पास आकर मैं
 दर्द में भी मुस्कुरा लेती हूँ
बेझिझक अपने दिल की बात
तुमको बता देती हूँ
मेरे सूने मन प्रागंन के
तुम राही अलबेले हो
दिल दुखानेवाली बातों से भी
मेरे दुख हर लेते हो
जैसे माँ के दुख को हरता
बच्चे की किलकारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।


        ७
तेरी खुशी से खुश होती हूँ
तेरे दुख से दुखी होती हूँ
मेरे सपने,मेरी खुशियाँ
मेरा जीवन,मेरा तन-मन
किया है तुमको अर्पण
मजबूरी नही,बंधन नही
ये है प्यार भरा समर्पण
मेरी दुनियाँ सिमटी है तुममें ऐसे
जैसे आग में चिंगारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।

   ८
तेरे सारे गम को हर लूँ
खुशियों से तेरा जीवन भर दूँ
ये बीडा मैने उठाया है
तुझमें खोकर मेरे साथी
मैने अपना अस्तित्व भी मिटाया है
दीवानों की दुनियाँ की
हर बात होती न्यारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।


 ९
मैने नही कहा था तुमको
मेरी दुनिया मे तुम आओ
आ ही गये हो गर अब तो
नही कहूँगी तुमको जाओ
तेरे इस आने जाने से मैं
बैठी भरमाई हूँ
सही गलत के अंतर्दन्द में
बेचैनी का क्रम जारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है


     १०
जिन्दगी ने मुझको जो भी दिया
सहर्ष उसे अपनाया है
हर नाते रिश्ते
खुशी औ गम को
दिल से मैने लगाया है
समझ न लेना भूले से भी
वो एक अबला नारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।











Monday, 23 May 2011

फिर क्यों ?


एक तितली थी बडी सयानी
करती रहती थी मनमानी
इच्छा से वो खाती थी
इच्छा से लहराती थी
पता नही था उसे एक दिन
छोड के अपना बाग-बगीचा
छोड के अपना गली-गलीचा
नये बाग में जाना होगा
वहाँ के बंधन,वहाँ की रीतियाँ
सब को उसे अपनाना होगा।

पली थी स्वछंद माहौल में
मिला था जितना प्यार जीवन में
सभी छिन गये उससे ऐसे
बाग उजड गयें हो जैसे
मिल गया उसको नया ठिकाना
दुनियाँ यही जानती है पर
असलियत क्या है ?
ये सिर्फ तितलीरानी ही जानती है
दर्द भरे दिल के गर्द को
अपने अनकहे दर्द को।

उडते-उडते थक जाती है पर
बाग नही आता कैसे सहे
इस व्यथा को जो
सहा नही जाता
धूप में चलते राही के
पीडा की  पहचान कैसे होगी
माँ की ममता पिता का वात्सल्य
बहन का प्यार,भाई के लाड से
वंचित,बिटिया की जान कैसे होगी
दो-दो घर के रहते भी
बेघर होने की पीडा की
बखान कैसे होगी?

माँ,इस घर में भी है
पर, उसमें ममता की कमी है
ममत्व के छाँह की कमी से
उसके आँखों में नमी है
स्नेह पगे मन को पल-पल
रोना पडता है
प्रशंसा के बदले यहाँ
कँटीला ताना मिलता है
पिता का वात्सल्य नही
बर्फ की कठोरता मिलती है
पति का साथ नही
गम बेशुमार मिलता है
बहन का प्यार नही
अवहेलनाओं की बौछार मिलती है
भाई कालाड नही
साजिशों की भरमार होती है
दम घुटता रहता तितली का
दुखों की बरसात होती है।    



कैसे करे अभिव्यक्त दुखों को
और कहे माँ-तेरी बिटिया यहाँ
खून के आँसू रोती है
हर दिन,हर पल अपने
अरमानों को धोती है
कहना चाहे ये बतिया पर
कह नही पाती है कि-
बेटों की तरह बेटियाँ भी
माँ-जाई होती है
फिर क्यों ?फिर क्यों?
बेटियाँ,पराई होती है?

पर जीवन का यही सत्य है
तितलीरानी इसे जानती है
नये घर को, नये सपने को
फिर से सँवारना जानती है
मिलेंगी उसको खुशियाँ
ऐसा उसने ठान लिया है
अपनी कमजोरियों को उसने
ताकत अपनी बनायी है
फिर से स्वछंद बाग में
उडने की चाहत उसने जगायी है।

सच तो,यही है कि
प्रकृति पर अपना जोर नही है
पर-जान ले सारी दुनियाँ
कि- बेटियाँ कोमल है
कमजोर नही है।