Sunday 24 July 2011

अंतर


मैंने हमेशा चाहा कि
तुमको कुछ अच्छा दे सकूँ
कभी तुम्हारा दिल न दुखाऊँ
जितना हो सके तुम्हारे गम को कमकर
तुम्हरे जीवन मे खुशियाँ बिखराऊँ
पर,पता नहीं क्यों ?कब ? कैसे ?
समय करवट बदल लेता है
तुम वो नही समझते
जो मैं तुम्हे समझाना चाहती हूँ
तुम वो नहीं सुनते जो मैं सुनाना चाहती हूँ

जब दिल उदास होता है
मैं उसे दिलासा देती हूँ
आज नही तो कल आयेंगे वो पल
जब तुम मेरी बातों के
सकारात्मक पक्ष को समझोगे
करोगे मुझपर विश्वास
क्योकि आशा औ विश्वास ही
इंसान की पहचान है औ
जीवन का दूसरा नाम ही महासंग्राम है
मैं बस इतना ही चाहती थी
कि जीवन की राह में न लगे
तुम्हे कोई ठोकर पर
मैं अब समझ गई
कि तुम्हारी समझ में
सारी बातें आ जायेंगी
इक दिन मुझे खोकर

उस दिन तुम कोई
अपराधबोध मत पालना
न रोना , रोना किसी अभाव का
क्योंकि न तुम गलत थे
न मैं गलत थी
अंतर था सिर्फ मनोभाव का ।

3 comments:

  1. again....vry butiful poem....i find it vry close to my heart....

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  2. Mera prayas saphal raha....bitiya rani.accha laga ye jankar....

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  3. Mera prayas saphal raha....bitiya rani.accha laga ye jankar....

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