Tuesday 28 June 2011

बहुत मुश्किल है


मरते को बचाना
गिरते को उठाना
जलते को बुझाना
बहुत  मुश्किल है।

यादों को भूलाना
वादों को निभाना
रिसते हुये जख्म पर
मरहम लगाना
बहुत मुश्किल है।

टूटे हुये दिलों को जोडना
नदियों के प्रवाह को मोडना
सपनों को हकीकत में बदलना
बहुत मुशि्कल है।

अपमानित पल को भुलाना
जिद्दी मन को समझाना
अपनेपन की भावना से
पीछा छुडाना
बहुत मुश्किल है।

अपनी बारी को निभाना
बिगडी को बनाना
स्वार्थ भरे रिश्ते को चलाना
बहुत मुश्किल है।

क्रोधी को हँसाना
लोभी को मनाना
शक्की को विश्वास दिलाना
बहुत मुश्किल है।

 

No comments:

Post a Comment