Wednesday 6 July 2011

मातृत्व प्यार


बदल गई है दुनिया मेरी
सज गया मेरा घर द्वार
जब से आई तू मेरे आंगन
लेकर केवल प्यार ही प्यार
एक दिन नही एक साल नही
बरसों किया तेरा इंतजार
प्रकृति के अनूठे सृजन के
सपनों को किया तूने साकार
आँखों से नींद उडी है
कोई दुःख-दर्द नही है
दिल करता तूझे देखूँ बारम्बार
क्या यही है मातृत्व प्यार ?
छोटे-छोटे पाँव हैं तेरे
छोटी-छोटी बाहें हैं

जाते देख मुझे तूँ भरती
सचमुच ठंढी आहें है
न कोई छल-कपट है उसमें
न कोई होशियारी है




नन्हीं गुडिया सच कहती हूँ
तूँ मुझे जान से प्यारी है
सह लूँगी सभी दुःख अपने
जो भी मुझपर आयेंगे
देख तुम्हारी दुःख को बिटिया
मन ही मन कराहेंगे
सुखी रहो तुम हँसकर हर दिन
जीवन सफल बनाओ
कर्मरथ पर बैठकर एक दिन
दुनियाँ में छा जाओ ।    

2 comments:

  1. ye poem mere liye na....thnx mumma....luv u a lot :-)
    poori koshish karungi k aapke sabhi sapne saakar ho.....

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