Wednesday, 13 July 2022

 

गुरु



शिष्य रूपी गीली मिट्टी को गढ़ कर
बन जाते कुम्हार
गुरु की उसी दिव्यता को
याद करता है संसार......

ज्ञानरूपी भूख मिटाकर
बढ़ाते शिष्य का ज्ञान
अनुर्वर मन - मस्तिष्क को उर्वर
बना  बन जाते हैं किसान ....
गुरुरूपी उस शख़्स के आगे
नतमस्तक हो जाते हैं भगवान ....

 आप सभी को गुरु पूर्णिमा की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं .....
🙏🙏💐💐💐

डॉ निशा महाराणा





Friday, 27 November 2020

यही चाहता मन है

धरती पर नीला समंदर 

ऊपर नील गगन है

सच्चे साथी की खोज में
धुँआ - धुँआ सा मन है।

इठलाता पवन, झूमे तरु 
रत्नाकर हो रहा मगन है
बैठे रहें प्रिय के संग 
यही चाहता मन है।

दृश्यों की मनमोहक झाँकी
आत्ममुग्ध नयन है
 पलकों में सबको समा लूँ 
यही चाहता मन है।


जितना गहरा उतना विहंगम
उतना ही निर्मल है
संग लहरों के विचरण करूँ 
यही चाहता मन है।

अठखेलियां कर रहा सागर
गगन हो रहा मगन है
तारों भरी निशा में इन्हें निहारूँ 
यही चाहता मन है।

पारदर्शी है रत्नाकर 
सुखकर उसका घर है
कोने -कोने का दर्शन कर लूँ 
यही चाहता मन है ।


हरियाली मन मोह रही है
सागर कर रहा गर्जन
सुध-बुध खुद का बिसरा दूँ 
यही चाहता है मन।

जलधि के सानिध्य में 
चहक रहा वन- उपवन
ऐसे चहकूँ प्रिय संग 
यही चाहता मन है।

बहुत दिनों के बाद ब्लॉग में वापस आ रही हूँ... 😊😊

Monday, 3 July 2017

डोलिया में उठाये के कहार

डोलिया में उठाये के कहार 
ले चल किसी विधि मुझे उस पार 
जहाँ निराशा की ओट में 
आशा का सबेरा हो 
तम संग मचलता उजालों का घेरा हो 
जहाँ मतलबी नहीं अपनों का बसेरा हो 
साझा हो हर गम न तेरा न मेरा हो 
जहाँ बचपन की मस्ती लेती हो अंगराई 
उत्साह-उमंगों संग बहे पुरवाई 
जहाँ अपने ही दम पे जुगनी झिलमिलाती 
छोटी छोटी बातों पे निशा खिलखिलाती 
मुँह -मांगी दूँगी तुमको उतराई 
तहेदिल से दूंगी तुम्हे जीत की बधाई 
खुशियों से दमकेगा प्यारा वो संसार 
ले चल किसी विधि मुझे उस पार----
ब्लॉगर साथियों एक बार फिर --नयी शुरुआत 
आप के ब्लॉग पर भी आती हूँ ---आप भी समय निकल कर आएं --
मेरे सपनों की  अगली कड़ी के रूप  निकले मेरे दिल के --- उदगार इस रूप में।   

Sunday, 3 July 2016

तेरी पहचान

व्यर्थ समय गँवाया मैंने
जी को किया यूँ हीं हलकान
देख के तेरी मित्र-मण्डली
हो गई मुझको तेरी पहचान ----


Sunday, 25 October 2015

तुझे मालूम नहीं --मगर ---

अस्त-वयस्त गेह( जिंदगी )
सजा-संवरा देह
दिल में भावनाओं का ज्वार नहीं
न - हीं दिमाग में रवानी है
तुझे मालूम नहीं --मगर ---
ऐ --कठपुतली यही तुम्हारी निशानी है।
    समर्पित है उन सभी औरतों को जो भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो अपने स्त्रीत्व और ममत्व को भूल चुकी है और दौलत की चमक में अंधी हो दूसरों के इशारों पर नाचने के सिवा कुछ नहीं कर सकती।
जब दिल  की अभिवयक्ति को कागज पर उतार देती हूँ तो ऐसा लगता है की जी लेती हूँ। 

Sunday, 13 September 2015

दम हो गर संबंधों में तो ---

दिल लगाने से दिल लगता है 
मन बहलाने से मन बहलता है 
दम हो गर बटुए में तो ----
मनचाहा सामान मिलता है पर 
दम हो गर संबंधों में तो -----
सपनों का जहां मिलता है 

Thursday, 10 September 2015

मैंने मौत को देखा है

 ब्लोगर्स साथियों,,,,, आज मैं २ -०९ -२०१५  टाटा मेमोरियल --जहाँ की मैं साल में एक बार चेकउप करवाने जाती हूँ का अनुभव  बाँटना चाहती हूँ। सामान्यतः सीनियर डॉ  ही चेकउप करते हैं पर इस बार पता नहीं क्यों जूनियर डॉ ही सभी को देख रहे थे। मेरा चेकउप करते ही वो घबरा से गए और बोले --ये root nodule कब से हो गया आपको ? जहाँ तक मेरा सवाल है मै  हमेशा खुद ही चेक करती हूँ , मुझे कभी मेरे breast में असामन्यता महसूस नहीं हुआ था पर मुझे भी घबराहट हो गई। हालाँकि 
डॉ साहब ने मुझे सामान्य करने की कोशिश की और मैमोग्राफी के लिए भेजा ये कहते हुए की आप बिलकुल ठीक हैं पर साल भर से ज्यादा हो गया अतः मैमोग्राफी करा लीजिये। मैमोग्राफी हो गया पर शायद डॉ साहब को पूर्णतः विश्वास नहीं था उन्होंने कंप्यूटर में मुझे रिपोर्ट भी दिखाया और कहा देखिये ये cyst ----पर चूँकि मैंने कैंसर वाला cyst bhi dekh rakha tha दोनों में अंतर था और इतना मुझे  समझ में आ गया था की ये कैंसर वाली cyst तो नहीं है --  हाँ  ना के बीच झूलते झूलते आख़िरकार शाम चार बजे के करीब मुझे बताया गया की --you are ok .पर करीब चार घंटे मेरे सिर पर तलवार तंगी रही। ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ। अधिकांशतः सीनियर डॉ--ही रहते हैं पर इस बार पता नहीं क्यों व्यवस्था कुछ गड़बड़ सी लगी।  पर इन चार घंटों में एक बार फिर से जीवन की नश्वरता का एहसास गहराई से महसूस किया।  दो चार औरतों से भी मिली, उनके रिपोर्ट भी देखे जो स्थिति की गंभीरता से बेखबर अपनी बारी का इन्तजार कर रही थी। सच -- कभी कभी अज्ञानता  वरदान बनकर हमें तनावरहित कर देती है। बीमारी की गंभीरता को देखते हुए हमेशा सीनियर डॉ की मौजूदगी अनिवार्य कर देना चाहिए --ऐसा मुझे लगा।  आइये एक बार फिर मेरी उन भावनाओं से मैं आपको मिलाऊँ।  मेरी बहुत पुरानी रचना है। 






ब्लोगर्स साथियों  आप सबको नव वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामना....
आइये आज मै आप सबको अपने जीवन का वो अनुभव बताउं जिसे पूरा हुए सात साल हो गये |
२९ दिसंबर २००४ को मेरे ब्रेस्ट केंसर का आपरेशन हुआ था ........उस अनुभव को आप सबसे शेयर
करने का आज मौका मिला है | वैसे भगवान की कृपा से मै  स्वस्थ्य हूँ और आगे भी भगवान की ही
मर्जी |

 


आज भी मेरे मन मस्तिष्क पर
आश्चर्य एवम भय मिश्रित रेखा है 
जबसे मैंने अपने आसपास 
मंडराते मौत को देखा है !

मरने से नही डरती हूँ 
खुद के गम को हरती हूँ 
लम्बी आहें भरती हूँ
झरनों जैसी झरती हूँ 
पल पल खुद से लडती हूँ
खुद को देती रहरहकर
विश्वास भरा दिलासा
नही है मकडजाल मेरा
न ही है कोई धोखा
जीना कुछ कुछ सीख गई हूँ
जबसे मौत को देखा है |

मौत को सामने देख कर मै ...........
ठिठक गई थी..... मेरी सांसे ........
मेरी जिन्दगी...... थम सी गई थी 
मुझे यूँ घबराया देख 
वो मेरे सामने आई ........
मेरे सहमे हुए दिल को
प्यार से सहलाया औ ...समझाया ...
जीवन औ मौत तो
जन्म -जन्मों के मीत हैं 
समझ लूँगी इन बातों को
सचमुच जिस दिन 
उस दिन होगी मेरी जीत
जन्म औ मृत्यु है ऐसे
जैसे पी संग प्रीत |

मैंने मौत की आँखों में झांकते हुए कहा .......
महानुभाव! मै आपको अच्छी तरह जानती हूँ
आपके आने के कारणों को
अच्छी तरह पहचानती हूँ
आपकी वजह से मैंने बड़े से बड़ा .....
दुःख सहा है पर ........
याद करें क्या  मैंने  ?
कभी आपको उलाहना दिया है ?
अपनों के मौत की पीड़ा
क्या होती है ......
मौत होने के कारण
क्या आपने इसे कभी सहा है ?
मै मौत से नही डरती
आपको देखकर लम्बी आहें 
नही भरती ......
डरती हूँ तो सिर्फ औ सिर्फ .....
अपनों से बिछुड़ने  की पीड़ा से
ये सोचकर की मेरे बाद
मेरे बच्चो का क्या होगा ?
जो सपने मैंने उनके लिए बुने हैं
उन सपनों का क्या होगा ?
मौत बड़े प्यार से मेरे पास आई
आँसू भरे दो नैनों को
आँसुओ से मुक्त कराया औ कहा...........
मै भी इतनी निर्दय नही हूँ ....
दुःख तो मुझे भी होता है
जब साथ किसी अपनों का छूटता है
पर !मै अपने दिल का दर्द
किसे बताउं ........
अपनी जिम्मेदारियों से कैसे
भाग जाऊ?
मै जानती हूँ
माया मोह के  बंधन को तोड़ने में
वक्त तो लगता है .....
अधूरे सपनों को मंझधार में छोड़ने में
दर्द तो होता है |

मैने मौत से आग्रह किया ........
गर आप मेरे दुःख से दुखी हैं
तो  .......मेरे ऊपर एक  एहसान  कीजिये
ज्यादा नही पर इतना वक्त दीजिये
जिससे मै अपने अधूरे काम निबटा सकूँ
उसके बाद आप जब भी आयें मै .....
ख़ुशी-ख़ुशी आपके साथ जा सकूँ
पलक भर के लिए उसने मुझे देखा
फिर मन ही मन कुछ बोली औ कहा .......
जिजीविषा  औ विजिगीषा की पहचान हो तुम निशा ......
आशा औ विश्वास की खान हो तुम निशा
मै तुम्हारी नही तुम्हारे विश्वास की कद्र करती हूँ
अपने आधे अधूरे कार्य को पूरा कर सको
मै तुम्हे इतना वक्त देती हूँ ......
मौत से मिले इस उधार  वक्त की
कीमत मै जान गई हूँ 
जीना किसको कहते हैं
इसको कुछ -कुछ जान गई हूँ |