ऊपर नील गगन है
सच्चे साथी की खोज में
धुँआ - धुँआ सा मन है।
इठलाता पवन, झूमे तरु
रत्नाकर हो रहा मगन है
बैठे रहें प्रिय के संग
यही चाहता मन है।
दृश्यों की मनमोहक झाँकी
आत्ममुग्ध नयन है
पलकों में सबको समा लूँ
यही चाहता मन है।
जितना गहरा उतना विहंगम
उतना ही निर्मल है
संग लहरों के विचरण करूँ
यही चाहता मन है।
अठखेलियां कर रहा सागर
गगन हो रहा मगन है
तारों भरी निशा में इन्हें निहारूँ
यही चाहता मन है।
पारदर्शी है रत्नाकर
सुखकर उसका घर है
कोने -कोने का दर्शन कर लूँ
यही चाहता मन है ।
हरियाली मन मोह रही है
सागर कर रहा गर्जन
सुध-बुध खुद का बिसरा दूँ
यही चाहता है मन।
जलधि के सानिध्य में
चहक रहा वन- उपवन
ऐसे चहकूँ प्रिय संग
यही चाहता मन है।
बहुत दिनों के बाद ब्लॉग में वापस आ रही हूँ...
धन्यवाद सर ..
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 30 नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर रचना - - नमन सह।
ReplyDeleteहरियाली मन मोह रही है
ReplyDeleteसागर कर रहा गर्जन
सुध-बुध खुद का बिसरा दूँ
यही चाहता है मन।
–बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह! बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteवाह!सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसभी का तहेदिल से आभार
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत वापसी बहुत बहुत स्वागत आपका।
ReplyDeleteशानदार सृजन ।
Dhnyvad
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteवाह , बेहतरीन अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteदृश्यों की मनमोहक झाँकी
ReplyDeleteआत्ममुग्ध नयन है
पलकों में सबको समा लूँ
यही चाहता मन है।
बहुत ही सुन्दर लिखा है ! धन्यवाद। Visit Our Blog Zee Talwara
beautiful lines, thanks for sharing
ReplyDeleteZee Talwara
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