अस्त-वयस्त गेह( जिंदगी )
सजा-संवरा देह
दिल में भावनाओं का ज्वार नहीं
न - हीं दिमाग में रवानी है
तुझे मालूम नहीं --मगर ---
ऐ --कठपुतली यही तुम्हारी निशानी है।
समर्पित है उन सभी औरतों को जो भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो अपने स्त्रीत्व और ममत्व को भूल चुकी है और दौलत की चमक में अंधी हो दूसरों के इशारों पर नाचने के सिवा कुछ नहीं कर सकती।
जब दिल की अभिवयक्ति को कागज पर उतार देती हूँ तो ऐसा लगता है की जी लेती हूँ।
सजा-संवरा देह
दिल में भावनाओं का ज्वार नहीं
न - हीं दिमाग में रवानी है
तुझे मालूम नहीं --मगर ---
ऐ --कठपुतली यही तुम्हारी निशानी है।
समर्पित है उन सभी औरतों को जो भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो अपने स्त्रीत्व और ममत्व को भूल चुकी है और दौलत की चमक में अंधी हो दूसरों के इशारों पर नाचने के सिवा कुछ नहीं कर सकती।
जब दिल की अभिवयक्ति को कागज पर उतार देती हूँ तो ऐसा लगता है की जी लेती हूँ।
Kya simile hai...bahut achche!
ReplyDeletebahut bahut dhanyavad sir ...
Deletedhanyavad kuldeep jee ..
ReplyDeleteसार्थक और प्रेरक प्रस्तुति
ReplyDeletethanks ...rakesh jee
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसही कहा आपने भौतिकता की अंधी दौड़ कठपुतली बना रहा है कई औरतों को....
ReplyDeletevery nicely written .... http://panchopoetry.blogspot.in/2016/04/blog-post_22.html
ReplyDeleteबहुत बहुत ही खूब लिखाहै आपने, सत्य को उजागर करने का सार्थक प्रयास है।
ReplyDeleteसत्य को उजागर
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteहृदय को छू लेने वालीसत्य
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