चंचल चिड़ियाँ बहुत उदास और दुखी थी .
को दुखी देख पूछ बैठी .....मम्मी आप उदास
और दुखी क्यों हैं ?
मम्मी ने बताया ....बेटा ....अभी-अभी-मै
पूर्व दिशा से लौटी हूँ ...वहां मैंने एक बहेलिये
को देखा ...बड़ी मुश्किल से उससे बचकर आई हूँ ..पर,,,
पर,.... क्या मम्मी ?
मेरी दोस्त मेरे मना करने के बावजूद उधर
चली गई है .....मुझे उसके लिए दुःख हो रहा है .
नहीं मम्मी,... आप दुखी मत होइये ......आपने
अपना काम कर दिया है और .अपने हिस्से का दुःख भी
महसूस कर लिया अब उन्हें उनके हिस्से का दुःख
महसूस करने दीजिये ....चंचल चिड़िया बिटिया को
देखते हुए सोच रही थी,... मेरी बिटिया मुझसे ज्यादा समझदार हो गई है ...
उसका दुःख ख़त्म तो नहीं पर हल्का जरुर हो गया ....
ब्लोगर .....साथियों ..प्रथम प्रयास है लघुकथा लेखन का ...
बताइयेगा कैसी लगी मेरी ये कहानी ....धन्यवाद .....
बहुत खूब आपको बहुत बहुत बधाई पहली लघु कहानी लिखने पर
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
सबको अपने हिस्से का दुख भोगना ही पड़ता है,,,,
ReplyDeleteबहुत उम्दा सराहनीय प्रयास ,,,बधाई निशा जी
Recent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeletedhanyavad ravikar jee....
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteJara se shabd Jivan ki mushkil ko kam kar dete he
ReplyDeletesahi bat ......
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति.
ReplyDeleteरोता नहीं हैं कोई भी किसी और के लिए.
सब अपनी अपनी किस्मत को ले ले के खूब रोते हैं
पहली ही लघुकथा प्रेरक है।बधाई
ReplyDeleteप्रसंशनीय प्रेरक लघु कथा,,,,
ReplyDeleteRecent post: गरीबी रेखा की खोज
सुंदर प्रवाहमयी कहानी.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी कथा....
ReplyDeleteलिखते रहिये...हम पढ़ते रहेंगे.
आभार
अनु
अच्छी लघु कथा
ReplyDeleteअपने सन्देश में कामयाब है लघु -कथा .निष्कर्ष भी ,आपने ही निकाल दिया है जो पाठक के हिस्से का काम था .
ReplyDeleteअपने सन्देश में कामयाब है लघु -कथा .निष्कर्ष भी ,आपने ही निकाल दिया है जो पाठक के हिस्से का काम था .
ReplyDeleteउनके हिस्से का दुःख
Dr.NISHA MAHARANA
My Expression -
बहुत प्रेरक! बुद्धिमत्ता दुःख को समाप्त तो नहीं कभी कभी कम जरूर कर देती है.
ReplyDeleteबहुत ही जीवंत एवं प्रेरक लघु कथा ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteहमारे यहाँ एक कहावत है माँ और बेटी गौरी के मंदिर गए दोनों ने सुहाग की रक्षा हेतु वर माँगा [ अपने अपने हिस्से का ]
ReplyDeleteप्रेरक लघु कथा
अच्छी कहानी ... सच है की सबके अपने अपने हिस्से का दुःख है ओर उसे झेलना ही होता है ... इसलिए जो होता है होने दो ...
ReplyDeletesahi bat.....
Deleteशुक्रिया इस बढ़िया प्रस्तुति का आपकी टिपण्णी का .
ReplyDeleteसुन्दर कहानी
ReplyDeletedhanyavad yashwant jee......
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी के लिए इस बेहतरीन रचना के लिए .
ReplyDeleteShort and sweet ....and helpful too...!
ReplyDeleteअपने-अपने हिस्से का दुख ही जीना सिखाता है।
ReplyDeleteअच्छी रचना।
SUNDAR LAGHU KATHA
ReplyDeleteरोचक एवं सार्थक कथानक | आभार
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत प्रभावशाली कथा. अपने अपने हिस्से का दुःख... बहुत सुन्दर. शुभकामनाएँ.
ReplyDelete