आज अपनी गलतियों से

गलत नही हूँ
सही होने से शर्मिदा हूँ
यादों को भूलाने में
दर्द बहुत होता है
ज़ख्मों में मरहम
लगाने में जैसा होता है
दिल भारी है
मन भारी है
यादों के किसी को
मिटाने की जबसे
मन ही मन तैयारी है
मरे हुये बच्चे को कब तक?
सीने से लगाये हुये
रहेगी बंदरिया ?
सबको पता है
गाडी तभी तक चलती है
जब तक कार्य करता है
गाडी का सभी पहिया
तभी मुसाफिर अपने
मंज़िल तक पहुँच पाता है
एक पहिया लाख कोशिश करे
अकेले कुछ नही कर पाता है
सटीक लिखा है ...सारे पहिये सही हों तभी संतुलन बना रहता है ..सार्थक रचना
ReplyDeletethanks sangeeta gee.
ReplyDeleteकविता के भाव बहुत सुन्दर है
ReplyDeleteधन्यवाद अमरेन्द्र जी
ReplyDeleteसचमुच यादों को भूलाना आसान नही होता।
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति।
थैंक्स
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