मेरे साथ एक अजीब सी बात हो गई
कहीं जा रही थी कि ---अचानक----
मेरी----जिंदगी से मुलाक़ात हो गई
मेरी नज़रों में खुद के लिए बेगानापन देख
वो --तिलमिलाई
संयम को परे हटाकर
जोर से चिल्लाई --
अजीब अहमक इंसान हो तुम निशा
उसके दिल में मेरे लिए था
केवल और केवल गुस्सा
तुम्हारी विचित्र हरकतें कभी-कभी बन जाती है मेरे लिए
एक पहेली ----
क्यों बेगानापन दिखला रही हो जबकि
हम हैं एक-दूसरे की सहेली
सहेली और तुम ?
मैं भी कहाँ अपने पर नियंत्रण रख पाई औ --
मान-मनौवल को परे हटाकर
धीरे से गुर्राई
सहेली होने के नाते तुम
कब ?कहाँ?और कैसे ?
मेरे दुःख को बाँटती हो ?
बहुत हीं कमजोर इंसान हो तुम --जो--
विधाता के इशारे पे नाचती हो
दोस्त कहकर दुश्मनों सा व्यवहार करती हो
सँभलने का मौक़ा दिए बिना
पीछे से वार करती हो ?
जब से होश सम्भाला
रूप देखा तुम्हारा बड़ा अनोखा
एक पल विश्वास दिला
दूसरे हीं पल तुम दे देती हो धोखा
तुम्हारॆ इस व्यवहार से
आ गई मैं तंग
टूटे विश्वास के साथ बोलो
कैसे चलूँ मैं संग ?
खैर ! चलने का नाम हीं है जिंदगी
पर भूले से भी ना सोचना
करुँगी तेरी बंदगी
तुम अगर मजबूर हो तो
मैं भी मगरूर हूँ
तुझे औरों पे होगा पर मुझे--
खुद पे गुरुर है ---
तेरा काम तुम करो
मेरा मैं करुँगी
जब भी मौका आएगा मैं तुमसे क्या ?
खुद से भी लडूंगी---
वाह! बहुत प्रेरक और ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteआप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 25/11/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
ReplyDeleteसूचनार्थ।
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धन्यवाद् कुलदीप जी जैसे ही मौका मिलेगा.....जरुर आउंगी अभी थोड़ी सी व्यस्त हूँ ...........
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार को (24-11-2013) बुझ ना जाए आशाओं की डिभरी ........चर्चामंच के 1440 अंक में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद् शास्त्री जी जैसे ही मौका मिलेगा.....जरुर आउंगी अभी थोड़ी सी व्यस्त हूँ ...........
Deleteखुद पे गरूर जरूरी अहि फिर जिंदगी भी यही चाहती है ... प्रेरित करती रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...प्रेरणादायी भाव
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
MAUSI .......KAVITA KI KUCH PANKTIYA DILOO KO CHU GAE ......THANK U
ReplyDeleteMAUSI .......KAVITA KI KUCH PANKTIYA DILOO KO CHU GAE ......THANK U
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
ReplyDeleteवाह बहुत बढियां बहुत भावपूर्ण .. सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteभावपूर्ण ..बहुत सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत भावात्मक रचना .....
ReplyDeleteतेरा काम तुम करो
ReplyDeleteमेरा मैं करुँगी
जब भी मौका आएगा मैं तुमसे क्या ?
खुद से भी लडूंगी---
GAJAB KA WISHWAS BEHATARIN
सुंदर रचना...
ReplyDeletesunder prastuti
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteजुझारू तेवर की सशक्त कृति सृजन के लाज़वाब क्षण।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteखैर ! चलने का नाम हीं है जिंदगी
ReplyDeleteपर भूले से भी ना सोचना
करुँगी तेरी बंदगी
.................. खुबसूरत भावात्मक रचना !!