पत्ते झड़ते शाखों से
सुख-दुःख की आँख-मिचौनी
और उनका ये दीवानापन
साथ लिए अपने आता है
अल्हड सा मस्तानापन,……
पथ पर जब थक जाओगे
लिए अपना नश्वर यह धन
पथिक तभी समझ पाओगे
साँसों का ये महँगापन,……
पत्ते झड़ते शाखों से
फूलों बिन सूना उपवन
कब-कौन -कहाँ चल देता है
कैसा ये बेगानापन,…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार - 11/10/2013 को माँ तुम हमेशा याद आती हो .... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः33 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
ReplyDeleteधन्यवाद दर्शन जी ...
Deleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteसाँसों का महँगापन....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव..
सस्नेह
अनु
सुंदर ढंग से चित्रित भाव.....
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (11-10-2013) चिट़ठी मेरे नाम की (चर्चा -1395) में "मयंक का कोना" पर भी है!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी .....
ReplyDeleteपत्ते झड़ते शाखों से
ReplyDeleteफूलों बिन सूना उपवन
कब-कौन -कहाँ चल देता है
कैसा ये बेगानापन,…
क्या बात है जीवन की नश्वरता की ओर संकेत .
ज़िंदगी का फलसफा है .... बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : मंदारं शिखरं दृष्ट्वा
नई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
नवरात्रि की शुभकामनाएँ .
पथ पर जब थक जायोगे
ReplyDeleteलिए अपना नश्वर यह धन
पथिक तभी समझ पाओगे
साँसों का ये महँगापन,……
जिंदगी एक् छुपी रहस्य ! बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट नव दुर्गा
बहुत सुन्दर भावो की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत खूब ,भावों की बहुत सुंदर प्रस्तुति ...!
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
बहुत सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
कल 13/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
धन्यवाद यश जी .....
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteये बेगानापन तो प्राकृति दे देती है सहज ही .... मन के भाव से जोड़ कर सुन्दर रचना का सृजन ...
ReplyDeleteदशहरा की मंगल कामनाएं ...
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से आभार।
sunder bhav,
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ReplyDeleteपत्ते झड़ते शाखों से
फूलों बिन सूना उपवन
कब-कौन -कहाँ चल देता है
कैसा ये बेगानापन,…
कभी समझ न पाओगे ,
प्रिय साँसों का अपना पन
बहुत सुन्दर है भाव भी अर्थ भी समस्वरता है दोनों में .
ReplyDeleteसुख-दुःख की आँख-मिचौनी
और उनका ये दीवानापन
साथ लिए अपने आता है
अल्हड सा मस्तानापन,……
शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का इस सुन्दर रचना को सांझा करने का .
ReplyDeleteसुख-दुःख की आँख-मिचौनी
और उनका ये दीवानापन
साथ लिए अपने आता है
अल्हड सा मस्तानापन,…
बहुत सुंदर। चीजों की देह की क्षणभंगुरता बताती हुई बढिया कविता।
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