Thursday 14 March 2013

सोचो जरा


मनु के वंशज आओ 
जख्म जो तुमने दिए हैं ..
उसको तुम्हें बतलाऊँ ....

तुम यायावर और असहाय थे 
जंगली जानवरों जैसे तुम्हारा  जीवन और ..
उसके जैसे व्यवहार थे .....

मैंने दिया तुम्हें रहने को ...
प्यारा सा गेह 
जीने के लिए प्राणवायु 
पहनने के लिए वस्त्र 
खाने के लिए कंद -मूल 
ये था तुम्हारे प्रति मेरा स्नेह ....

पर बदले में तुमने हर लिए 
मेरे हिस्से के सुख-चैन 
कैसे काटूँ दिन को और कैसे काटूँ रैन ?


अपनी शाखाओं ,पत्तियों .फूलों और फलों से 
विहीन होकर कैसे मै जी पाऊँगा 
जो जरुरी है तेरे लिए उसे तुम  तक ..
कैसे  पहुँचाऊगा ?

उतना ही लो मुझसे 
जो जीने के लिए जरुरी है 
अति संग्रह करने की आदत 
कैसी तेरी मजबूरी है ?

लोलुपता से प्रेरित तेरे कई चेहरे हैं 
कैसे बताऊं शाख दर शाख 
जखम मेरे गहरे हैं 

पंचतत्व है तेरे जीवन का आधार 
जो आदिकाल से था तेरे पूर्वजों से पूजित 
अपने नादाँ कृत्यों से तूने उसे कर दिया प्रदूषित 
सोचो जरा ......मै  कैसे ?
तुम्हें भोजन,आश्रय  और प्राणवायु दे पाऊंगा 
जो मुझे तुम दे रहे हो ..
वही तो लौटाऊँगा ...

मै तो खाक होकर भी कुछ न कुछ दे जाऊँगा ...

चेतो मानव अब भी चेतो 
खुद में चेतनता का भाव भरो 
क्रूर नहीं बनाओ खुद को 
संवेदनाओं का श्रृंगार करो 
मेरे अस्तित्व को सुरक्षित कर 
अपने ऊपर उपकार करो 
अपने ऊपर उपकार करो ....




24 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना...
    सार्थक अभिव्यक्ति.

    सादर
    अनु

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  2. सुन्दर सार्थक रचना ...!!
    शुभकामनायें .

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  3. बहुत अच्छी और सार्थक रचना...

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
    --
    अपनी गलती से मिले, हमें घाव पर घाव।
    चन्दन पेड़ कटा दिया, मिले कहाँ अब छाँव।।
    --
    आपकी इस पोस्ट का लिंक कल 15-03-2013 के चर्चा मंच पर लगाया गया है!
    सूचनार्थ...सादर!

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  5. जीवनदायिनी वृक्ष का जीवन ही खतरे में डाल रहें हैं हम ....
    सार्थक रचना !

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  6. सुन्दर प्रस्तुति है आदरेया-

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  7. बहुत उम्दा प्रेरक प्रस्तुति,,,

    बीबी बैठी मायके , होरी नही सुहाय
    साजन मोरे है नही,रंग न मोको भाय..
    .
    उपरोक्त शीर्षक पर आप सभी लोगो की रचनाए आमंत्रित है,,,,,
    जानकारी हेतु ये लिंक देखे : होरी नही सुहाय,

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  8. मेरे अस्तित्व को सुरक्षित कर
    अपने ऊपर उपकार करो

    कितनी सही बात..... सार्थक सन्देश देती आपकी रचना

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  9. मनुष्य के स्वार्थ ने अस्तित्व से सिर्फ लेना ही सिख लिया है
    वापिस लौटाना नहीं सिखा इसके भयंकर परिणाम भी भोगने पड़ेंगे ...
    सुन्दर रचना सटीक लगी !

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  10. बढ़िया प्रस्तुति .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .पर्यावरण का मानवीकरण करती खबरदार करती प्रस्तुती है -पर्यावरण से स्वस्थ पर्यावरण से ही हमारा अस्तित्व बरकरार रह सकता है वरना विनाश अवश्यं भावी है .करम गति टारे न टरे।।।।।।।

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  11. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (16-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति .पर्यावरण है तो हम हैं .

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति .पर्यावरण है तो हम हैं .मैं के बड़ी टिपण्णी स्पेम में गई है कृपया निकालें .

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  14. पर्यावरण के प्रति सचेत करती सार्थक रचना..........

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  15. सार्थक संदेश देती बेहतरीन रचना.

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  16. बहुत सुन्दर सार्थक रचना...

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  17. आज के लिए बहुत सार्थक और उपयोगी संदेश समाहित कर दिया है आपने !

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  18. सार्थक अभिव्यक्ति.....संदेश देती बेहतरीन रचना !!!

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  19. प्राकृति की उपकार को मानव भूल चुका है आज ...
    स्वार्थी ओर अंधा हो गया है ...
    संदेशप्रद रचना ...

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