Thursday 4 October 2012

एक झलक


                                                                                                                       
चौराहे पर एक व्यक्ति जार -बेजार रो रहा है .
वहां से गुजरने वाले लोग उससके रोने का  कारण  नहीं पूछ
रहे हैं बल्कि अपनी-अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त  रहे हैं ..आइये उनकी
प्रतिक्रिया के बारे में जाने ......किसी का दिल दुखाना मेरा इरादा नहीं है ..क्षमायाचना सहित ....

इंजीनिअर ----न खड़े रहे चौराहे पे
                     पोल मेरी खुल जाएगी
                     पोलिश इस जगह की
                    जब तेरे जूते से चिपक जायेगी .......

पुलिस वाला ----साला...शराब के नशे में
                         धुत  पड़ा हुआ है
                         बीवी के डर से
                        चौराहे पे खड़ा हुआ है ......

  डोक्टर -----इसने तन की नहीं
                     मन की चोट खाई है
                     इसके रुदन में मुझे
                     इसकी प्रेमिका की छवि
                     नज़र आई है .....
                    जिसने बेदर्दी से इसके साथ
                    की बेवफाई है .........

प्रोफेसर ----अरे भाई ! रोते क्यों हो ?
                  कौन है इसका जिम्मेदार ?
                  चाहे जो कोई भी है ...
                  है वही तुम्हारी बधाई का हक़दार ...
                  वजह से जिसकी  तुम रो रहे हो ....
                 " रोनेवाला ही गाता है "
                  इसे क्यों भूल गए हो ???
                  जाओ तुम  घर अपने ..
                 चौराहे पे क्यों पड़े हुए हो ??

           
            इसके बाद वहां एक और

 शख्स आया ---क्या पता है ये कोई
                        मुसीबत का मारा या...
                       किसी वजह से खुद को
                       साबित कर रहा है
                      लाचार और बेसहारा .....
                      पता चले मुझको तो ?
                      इसके गम सारे हर लूं
                      घर का रास्ता बता दे कोई तो ?
                      घर इसके पहुंचा दूं ......
                      भावनाओं के सागर में वो
                     यूँ गोते लगा रहा था जैसे
                     बदली के साथ आँख -मिचौनी 
                     करता है रवि  
                    हाँ ...वो था ----
                   शहर का एक ....
                  जाना-माना कवि....

32 comments:

  1. kavi ki kalpna ki tarif k liye to har shabd kam hain...

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  2. बहुत बढ़िया निशा जी......
    मज़ा आ गया...
    :-)
    कवि मन का मान भी रख लिया आपने..
    सादर
    अनु

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  3. वाह निशा जी आप ने साबित कर दिया की कवि का हृदय कोमल होता है !बाकी सब तो .........
    बहुत ही प्यारी पोस्ट है !

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    1. baki sabse hi to dar lag raha tha .....dhanyavad suresh jee ...

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  4. हर नज़रिए में कवि का नज़रिया मरहम है ...

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  5. सबने अपने अपने ढंग से सराहा .
    बस जाकी रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखहिं तिन तैसी ....

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  7. कल्पनाओं की सुंदर प्रस्तुति,,,,

    RECECNT POST: हम देख न सके,,,

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  8. बहुत फ़ॉर्म मे हो मैडम.... कहर ही ढा रही हो!!

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  9. सबने अपनी अपनी तरह से कहा और व्यक्त किया
    पर वही जो आपने उनसे चाहा.

    आप चाहती तो उनसे कुछ और भी कहलवा सकती थीं.
    पर जो भी आपने कहलवाया अच्छा लगा.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा,निशा जी.

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    1. दिल को ठेस तो नहीं लगी इंजीनिअर साहब .....मैंने पहले ही माफ़ी मांग ली थी ....आपको तो मैं कवि और साहित्यकार समझती हूँ ....:D

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  10. बहुत ही अच्छी कविता |

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    1. बहुत -बहुत धन्यवाद एवम आभार तुषार जी ...

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  11. बहुत ही सुन्दर रचना बेहतरीन भाव क्या बात है

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  12. वाह बहुत सुन्दर रचना

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  13. बहुत ही रोचक और मजेदार ढंग से की प्रस्तुति बेमिशाल है निशा जी |

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  14. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  15. वाह खूबसूरत ...मज़ा आ गया

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  16. बहुत खूब एक से बढ़िया एक बिम्ब मानव मनोविज्ञान को दर्शाती पोस्ट -

    पुलिस वाला ----साला...शराब के नशे में
    धूत पड़ा हुआ है.........धुत .............
    बीवी के डर से
    चौराहे पे खड़ा हुआ है .......

    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai http://veerubhai1947.blogspot.com/ रविवार, 7 अक्तूबर 2012 कांग्रेसी कुतर्क

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  17. हास्य-व्यंग्य के साथ सुंदर चरित्र-चित्रण.........

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  18. कहीं वो कवि को देख कर तो नहीं रो रहा था ? :)

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