
नज़रों को नज़ारों से
किसी की यादों को खुद से
अलग कर सको तो ----कर लेना
लालच की बंज़र जमीं पे
कुत्सित इरादों की आड़ में
बीज खुशियों के
बो सको तो----- बो लेना
झूठ के दलदल पर खड़ी
अहंकार की दीवार को
सच्चाई के साबुन से
धो सको तो ---- धो लेना
निश्छल निर्मल हँसी के लिए
झूठे दम्भ को दरकिनार कर
खुद की गलतियों पर पश्चाताप कर
हो सके तो ----रो लेना