
धड़कते दिलों को तोड़ रहे हैं
सुन पा रहे नहीं
अपनों की चित्कार
ऐसे अपनों को
अपना समझने की
हसरत है बेकार ---
झूठा साक्षी बना है सत्य का
निशा उम्मीद की रश्मियाँ बो रही है
रावण -कंसों की दुनियाँ में
मानवीय संवेदनाएं खो रही है ----
महसुस नहीं हो पा रहे जहाँ
माँ-जाई को माँ-जाई के
कातरता भरे सिसकते अरमान
ऐसी निर्ममता तो है केवल
एक कसाई की पहचान ----
ऐसे कसाई के लिए रोना क्यों ?
उम्मीद की किरणें बोना क्यों ?
ऐ दिल.… तूँ चल
तूँ अकेला हीं चल
भीड़ में खोने से अच्छा है
निर्जन में खोना
बेफिक्री की दुनियाँ में
चैन से सोना----