उसके अनकहे जख्म को भरने
दीवाली दीपों की जोत को संग लेकर आई है
वैरी बन बैठा पवन पुरवाई है ......
पर दीये की जोत भी भला कभी
इन बाधाओं से घबराई है ?
करें हम इस मूलमंत्र को आत्मसात
होगी सर्वदा हमारे जीवन में
खुशियो की बरसात ........
ईर्ष्या , द्वेष ,अहंकार ,औ
बदले की भावना की आहुति देकर
हम नेह के दीप जलाएं
छोटे से इस जीवन में
आनंद का उजास फैलाएं
वैर-भाव को भूलकर
एक उन्मुक्त आकाश बनाएं
जितना संभव होता हमसे
उतना ही हम पर फैलाएं .........
दिल के अंतस में बोयें बीज
उमंग औ उल्लास का
स्नेह औ सहयोग का
श्रद्धा औ विश्वास का
अनुकूलन औ समायोजन का
उगेंगे जिससे हमेशा
पौध सदा नवीन
खिलखिलाएगी दिल के साथ
मन की भी जमीन ........
शुतुरमुर्ग बन
रेत में गर्दन छिपाने से
काम नही चलेगा .......
निर्दोष निष्प्पाप दिल को
ठेस पहुचाने का कर्ज चुकाना होगा
बनकर दिये की बाती
बन्धु तुमको आना होगा ......
गर बन्धु हो तो ?
आना ही होगा .....
कभी नही भूलें हम
श्रदा है तो संयम भी मिलेगा
दिल से पूजा है तो
दर्शन अवश्य ही होगा
भक्ति मन में प्रबल हो तो ?
आश्रय अवश्य मिलेगा .......
दीवाली में हर दिल का
दीया अवश्य जलेगा ...... अवश्य जलेगा .......