Wednesday 21 September 2011

पूँजी


धन चला जाये तो जाने दो
दुःख का कडवा घूँट नही पीना
स्वास्थ्य जरुरी है सीखो
मुस्कुरा के जीना
चरित्र जीवन की पूँजी है
इसे कभी नही गँवाना
पहले गलती करके
पीछे पड ना जाये पछताना
मृगतृष्णा के जाल में फँसकर
अपने सम्मान को नही खोना
आज-अभी-क्षणिक -सुख के लिये
आनेवाले कल को दाँव ? पर
नही लगाना
रोते हुये जग में आये हैं
हँसते हुये जग से जाना।

26 comments:

  1. खुबसूरत ||
    बधाई ||

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  2. सत्य वचन जीवन में अपनाने योग्य , आभार

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  3. सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !

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  4. Meri rachanaa ekkiswa basant ko aapbe aashirwaad diya.
    Dhanyawaad
    kadachit usi ek chan ko lekar likhi gayi aapki uprokat panktiya laajawaab hai.
    Ek sarthak seekh ke liye aabhar.

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  5. सबसे पहले निशा जी मैं आपको हार्दिक धन्यवाद देना चाहूगी की आप मेरे ब्लॉग पर आई ओर अपनी टिपण्णी दी जिसके माध्यम से आपके ब्लॉग का पता चला !आपकी कविता अच्छी लगी !आपकी श्रंखला से जुड़ रही हूँ !फिर मिलेंगे !

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  6. अशोक जी एवं राजेश जी आप दोनों को मेरा धन्यवाद।

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  7. बहुत ही सुन्दर कविता बधाई प्रोफेसर निशा जी ब्लॉग पर आने के लिए आभार

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  8. बहुत ही सुन्दर कविता बधाई|

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  9. धन चला जाये तो जाने दो
    दुःख का कडवा घूँट नही पीना
    स्वास्थ्य जरुरी है सीखो
    मुस्कुरा के जीना...

    Great philosophy hidden in the above beautiful lines...

    .

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  10. आदरणीया निशा महाराणा जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    बहुत सहजता से जीवन-दर्शन समझा दिया आपने -
    चरित्र जीवन की पूंजी है
    इसे कभी नही गंवाना
    … … …
    मृगतृष्णा के जाल में फंसकर
    अपने सम्मान को नही खोना


    कामना है , अनवरत चलती रहे लेखनी …

    हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  11. सच्चाई कहती अच्छी प्रस्तुति

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  12. अपने सम्मान को नही खोना
    आज-अभी-क्षणिक -सुख के लिये
    आनेवाले कल को दाँव ? पर
    नही लगाना
    रोते हुये जग में आये हैं
    हँसते हुये जग से जाना......

    बहुत सार्थक सन्देश !

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  13. सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना

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  14. सार्थक सन्देशयुक्त रचना...हार्दिक बधाई.

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  15. सीख देती सचेत करती नीतिपरक रचना .आभार !

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  16. सार्थक सन्देश देती हुई रचना , कोई समझे तब ना ..

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  17. सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार,निशा जी.

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