ये घटना १९८७ या १९८८ की है।लगातार बारिश हो रही थी।
मेरे गाँव रसलपुर,नौगछिया,भागलपुर के लोग आश्वत थे कि
इस बार बाढ नही आयेगी क्योंकि सामान्यतः बाढ तब
आती थी जब नेपाल के किसी बाँध का फाटक खोला
जाता था, ऐसा ही हमारे बडे-बुजुर्ग कहते थै। पर उस
समय शायद कुछ नये बाँध और बनाये गये थे। अतः
सभी निश्चित थै।उनमें मेरे पिताजी स्वर्गिय श्री रघुवीर यादव
एवं मेरे जीजाजी श्री रणविजय कुमार भी शामिल थै।
जिन्हे विश्वास था कि बाढ नही आयेगी।
पर मैं, मेरी माँ स्वर्गिय तिलेश्वरी देवी एवं मेरी दीदी
श्रीमति शांति सिन्हा ने उनके मना करने के बाबजूद
घर का सामान व्यवस्थित करना शुरु कर दिया था।
हम तीनों रात भर जग सामान जमाते रहे।पलंग,चौकी,
अलमारी,टेबल सभी को पाँच ईटों पर रखा क्योंकि
खिडकी के आर-पार बहता था।घर का सामान जमाने के
बाद हमने भूसा घर की ओर रूख किया
तब सुबह के पाँच बज गये थै। मैंने सुना-जीजाजी, पिताजी
से कह रहे थै-ये तीनों रात भर से जग कर सामान जमा
रही हैं।पिताजी बोले-एक पागल हो तो उसे समझाया
जा सकता है।यहाँ तो तीनों पागल है।अचानक पानी गिरने
की आवाज आई और देखते-देखते खेतों से बहता हुआ हमारे
घर मै घुस गया।अब हमारे होंठों पर विजयी मुस्कान खेल
रही थी।पिताजी और जीजाजी भी मुस्कुराते हुये बोल
रहे थे कि अच्छा हुआ जो तुमने हमारी बात नही मानी।
बाढ आने बाद हम अंबिका चाचा के यहाँ रहने चले जाते थै।
बडा मजा आता था। सभी मिलजुल कर रहते थै।
तकरीबन बारह परिवार होते थै।आज भी वो सारी
बातें मेरे मानस पटल पर अंकित है।पर अब न तो वे लोग
रहे न हीं पहलेवाला वो अपनत्व।इस बात का दु;ख अवश्य है।
ये सही है कि प्राकृतिक विपदाओं को रोका नही जा सकता है
ReplyDeleteकिन्तु उससे बचने की तैयारी कर हम खुशी-खुशी उसका सामना कर
सकते हैं।आपका संस्मरण पढ कर अच्छा लगा।
अब पहले जैसे रिश्ते कहाँ ... रोचक संस्मरण
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने संगीता जी
ReplyDeleteपहले जैसे संबंध बनाने की कोशिश भी
करो तो लोग शंका करने लगते हैं।
वास्तव में भौतिकता का बोलबाला हो
गया है। बहुत-बहुत धन्यवाद।