जब सीखने की परम चाहत होती है और समर्पण की भावना ,तो ही गुरू प्रकट होते हैं. क्यूंकि परमात्मा ही हृदय की आवाज को सुनकर गुरू रूप में प्रकट होते हैं.अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम तत् पदम दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: आपने मेरे ब्लॉग पर दर्शन देकर मुझे कृतार्थ कर दिया है निशा जी.बहुत बहुत आभार.
bahut sunder bhav ...badhai..
आप दोनों को बहुत-बहुत धन्यवाद।
जब सीखने की परम चाहत होती है और समर्पण की भावना ,तो ही गुरू प्रकट होते हैं. क्यूंकि परमात्मा ही हृदय की आवाज को सुनकर गुरू रूप में प्रकट होते हैं.
ReplyDeleteअखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम
तत् पदम दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नम:
आपने मेरे ब्लॉग पर दर्शन देकर मुझे कृतार्थ कर दिया है निशा जी.
बहुत बहुत आभार.
bahut sunder bhav ...badhai..
ReplyDeleteआप दोनों को बहुत-बहुत धन्यवाद।
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