जीना-मरना एक समान हो
रोने-गाने में भेद नही हो
जीवन का मँझधार जहाँ हो
डुबी नाव पतवार नही हो
माँझी भी अड-अडकर जहाँ पर
बनते हों अभिमानी
सच बता दो मुझको भगवन
ऐसी खुशियाँ कब माँगी थी ?
जीवन का अस्तित्व मिटाया
अरमानों का गला दबाया
बनी समर्पण की ही छाया
तब सुख का दिन था ये आया
सुखमय भरे दिनों मे भला
बन बैठा कौन वरदानी ?
वर देने के बदले डँस रहा सुख को
ऐसी खुशियाँ कब माँगी थी ?
पीर बन गया पर्वत अब तो
बरगद सी व्याथायें
सिसक- सिसक कर मन भी
अब तो ,कहता करुण कथायें
भूलना चाहूँ भूल न पाऊँ
किसकी है ? मनमानी
एक पल अब तो एक युग लगता
ऐसी खुशियाँ कब माँगी थी ?
दुख के दिन हैं कट जायेंगे
गम के बादल छँट जायेंगे
दूर करुँगी दुःख-दर्दों को
अपनी त्याग-तपस्या से
नहीं डरूँगी-नही हारुँगी
ऐसी हूँ स्वाभिमानी
पा लूँगी उन खुशियों को भगवन
जैसी तुम से है माँगी।
दुख के दिन हैं कट जायेंगे
ReplyDeleteगम के बादल छँट जायेंगे
दूर करुँगी दुःख-दर्दों को
अपनी त्याग-तपस्या से
नहीं डरूँगी-नही हारुँगी
ऐसी हूँ स्वाभिमानी
पा लूँगी उन खुशियों को भगवन
जैसी तुम से है माँगी।
कविता के भाव बहुत सुन्दर है दिल को छू गई पंक्तियाँ! बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! बधाई!..आभार
निरंतर प्रयासरत रहने की प्रेरणा देती सार्थक रचना ...
ReplyDeleteइस रचना की सकारात्मक सोच एक नई ऊर्जा से जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
ReplyDeleteनिशा जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
नहीं डरूँगी-नही हारुँगी
ReplyDeleteऐसी हूँ स्वाभिमानी
पा लूँगी उन खुशियों को भगवन
जैसी तुम से है माँगी।
जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग की कुछ कविताएँ पढ़ीं। यह अधिक मार्मिक है..प्रभावित करती है। इस कविता का सबसे सुंदर पक्ष अंत में इसका सकारात्मक होना है।..बहुत बधाई।
ReplyDeletethanks devendra jee.
ReplyDeleteऐसी हूँ स्वाभिमानी
ReplyDeleteपा लूँगी उन खुशियों को भगवन
जैसी तुम से है माँगी।
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....