सही बातों का गलत मतलब लगा लेते हैं लोग
गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं लोग
अपने हिस्से की खुशी लेकर भी संतुष्ट नहीं
दूसरों के हिस्से की खुशी झपट लेते हैं लोग
संबंध नही निभाना हो गर तो ?
संबंधों पे प्रश्नचिन्ह लगा देते है लोग
खुद को आका साबित करने के लिये
बेगुनाहों और मासुमों का कत्ल करवा देते हैं लोग ।
सार्थक चिंतन ..
ReplyDeleteवाह अच्छे तेवर है बनाये रखिये और कविता साहित्य को ऊचाईयां दीजिये शुभकामनाये
ReplyDeleteसच कहा है ... अपने आप को सच्चा साबित करने के लिए कुछ भी कर जाते अहिं आज लोग ... लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteसंबंधों पे प्रश्नचिन्ह लगा देते है लोग???
ReplyDeletesahi disha men sonch rahi hai aaap sraja jari rahe badhai
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना...
ReplyDeleteखुद को आका साबित करने के लिये
ReplyDeleteबेगुनाहों और मासुमों का कत्ल करवा देते हैं लोग ।
........सही लिखा है आपने
आप सभी को धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...प्रभावित करती पंक्तियाँ
ReplyDeleteप्रभावशाली एवं सत्य को परिभाषित करती पंक्तियाँ . आभार
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ||
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने|
ReplyDelete...आपको बहुत -बहुत बधाई .....
सभी लोग एक से तो नहीं होते,निशा जी.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति यथार्थ की कड़वाहट को उजागर
करती है.
thanks rakesh ji.
ReplyDeleteलोग ऐसे होते हैं, समाज ऐसा होता है…
ReplyDeletevery true and nice expression....
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