Friday 9 September 2011

उसकी यादें



मेरी बिखरी-बिखरी सी यादें
मुझे छोडकर तुम
कहीं और चली जाओ
मेरे लौहखंड से बने
इरादों को यूँ कमजोर न बनाओ
दुनियाँ से जाने के पहले
बहुत कार्य है निबटाने को
क्या मैं हीं हूँ इकलौती ?
अपना अस्तित्व मिटाने को ?
जब कोई मेरी परवाह नहीं करता ?
तो ? मैं क्यों करुँ किसी की परवाह ?
क्यों निकालूँ किसी के लिये
दिल से कोई आह ?
अच्छा होगा


बेदर्दों से दूर रहकर
मैं अकेली ही चलती चली जाऊँ
अपनी मर्जी से रोऊँ या गाऊँ
तुमको तो पता है ?
आत्मा तक पहुँचने का
दिल है एकमात्र रास्ता
पर ? जो दिल से नहीं जुडा है
उसका मुझसे क्या वास्ता ?
अच्छा यही होगा
तुम मुझे उसकी याद न दिलाओ
जैसे उसने भूला दिया मुझे
वैसे मुझसे उसकी यादें भी ले जाओ ।


18 comments:

  1. अच्छा होगा बे

    लगता है आप इस लाईन में कुछ और भी कहना चाह रही हैं.

    वर्ना 'बे' का मतलब समझ नहीं आया.

    आपकी प्रस्तुति अच्छी आक्रोशपूर्ण लगती है.

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  2. अंतिम पंक्ति कुछ अधूरेपन का अहसास देती है. सुन्दर प्रयास..शुभकामनाएं !

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  3. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता ....

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  4. thanks to all n now my poem is complete .

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  5. पूरी कविता पढ़ कर बहुत अच्छी लगी. भावों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  6. वाह! अब आनंद आया आपकी सुन्दर भावपूर्ण
    प्रस्तुति पढकर.
    बहुत बहुत शुक्रिया निशा जी पूरी कविता पढवाने के
    लिए और मेरे ब्लॉग पर भी आपके आने के लिए.

    आपने सीता जन्म के बारे में ठीक ही कहा है
    कि पौराणिक कहानी अनुसार ऋषि मुनियों
    ने कर के रूप में अपना रक्त रावण और दानवों
    को दिया था, जिसे घड़े में भरकर जनकपुरी के
    पास की भूमि में गाड दिया गया था.जिस से
    कालांतर में 'सीता'जी प्रकटी.

    आध्यात्मिक चिंतन के अनुसार इसको ऐसे माना
    जा सकता है कि रावण अहंकार का प्रतीक है,
    दानव कुविचारों और कुभावों के, जिस कारण
    ऋषि मुनियों को खुद अपने से ही संघर्ष और
    तप करना पड़ता था ,'प्रेम' और 'भक्ति' के
    अन्वेषण के लिए.क्यूंकि शुष्क ज्ञान मार्ग में अहंकार
    और कुविचार बाधक होते थे.यह संघर्ष और तप ही रक्त
    का द्योतक है जो अन्वेषण के 'कालपात्र' के रूप
    में घड़े में डालकर भूमि में गाड दिया गया.
    यह 'कालपात्र' जब निकला तब ऋषि मुनियों
    का 'प्रेम' और 'भक्ति' पर किया हुआ अन्वेषण
    ही सीता रूप में प्रकट माना जा सकता है.

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  7. thanku very much for reading my poem n to satisfied my curiosity.thanks again.

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  8. भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई...

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  9. एक टूटे हुए दिल से निकली रचना, टूटना अच्छी बात नहीं है | धाराप्रवाह लेखन के लिए बधाई

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  10. सुझाव के लिये धन्यवाद सुनील जी पर मेरा
    मानना है कि दिल को ठेस पहूँचती है तभी तो
    कविता बनती है।

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  11. बेदर्दों से दूर रहकर
    मैं अकेली ही चलती चली जाऊँ
    अपनी मर्जी से रोऊँ या गाऊँ
    तुमको तो पता है ?
    आत्मा तक पहुँचने का
    दिल है एकमात्र रास्ता
    पर ? जो दिल से नहीं जुडा है
    उसका मुझसे क्या वास्ता ?

    Behtreen Panktiyan....

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  12. वर्षा जी एवं मोनिका जी आप दोनों को भी धन्यवाद

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  13. मन में उठ रही भावों की तरंगों को
    आपने बहुत सुन्दर ढंग से अपनी रचना में पिरोया है!
    बढ़िया रचना!

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  14. निशा जी आपकी कविता अच्छी है बधाई और शुभकामनाएं

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