भूल कर सारे गिले शिकवे
तेरी गलती मेरी गलती
वादा का नया रस्म निभाना है
पुराने संबंधों को खत्म करें
अब संबंध नया बनाना है।
एक मोड पर क्यों खडे रहें
हरेक मोड से गुजर कर जाना है
किसी मोड पर मिले कभी थे
किसी मोड पर बिछड जाना हे
चेहरे पर दर्द को पढा नही
पढनेवाला अंधा था
सुनानेवाले का सुना नही
सुननेवाला बहरा था
अपनी-अपनी सबको पडी है
भौतिकता का ये गोरखधंधा है
संकीर्ण सीमाओं की मानसिकता से
हरेक प्राणी बँधा है
कितना भी शिकवा करं
ये दर्द न होगा कम
अनचाहे संबंधों को ढोने से
अच्छा है कि पुनः
अजनबी बन जायें हम।
तेरी गलती मेरी गलती
वादा का नया रस्म निभाना है
पुराने संबंधों को खत्म करें
अब संबंध नया बनाना है।
एक मोड पर क्यों खडे रहें
हरेक मोड से गुजर कर जाना है
किसी मोड पर मिले कभी थे
किसी मोड पर बिछड जाना हे
चेहरे पर दर्द को पढा नही
पढनेवाला अंधा था
सुनानेवाले का सुना नही
सुननेवाला बहरा था
अपनी-अपनी सबको पडी है
भौतिकता का ये गोरखधंधा है
संकीर्ण सीमाओं की मानसिकता से
हरेक प्राणी बँधा है
कितना भी शिकवा करं
ये दर्द न होगा कम
अनचाहे संबंधों को ढोने से
अच्छा है कि पुनः
अजनबी बन जायें हम।
ये दर्द न होगा कम
ReplyDeleteअनचाहे संबंधों को ढोने से
अच्छा है कि पुनः
अजनबी बन जायें हम।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...
आगे बढ़ाने के लिए काफी कुछ पिछला छोडना पड़ता है .... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
क्या बात है!! चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों!!
ReplyDeleteताल्लुक बोझ बन जाये तो उनको तोडना अच्छा........
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना निशा जी..
बहुत ही सुन्दर कविता निशा जी |
ReplyDeleteनिशा जी
ReplyDeleteनमस्कार !
अनचाहे संबंधों को ढोने से
अच्छा है कि पुनः
अजनबी बन जायें हम।
...........बहुत खूब
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
अनचाहे संबंधों को ढोने से
ReplyDeleteअच्छा है कि पुनः
अजनबी बन जायें हम।
karein koshish dooriyaan mitaane kaa
वाह ... बेहतरीन ...
ReplyDeleteवो अफसाना जिसे अंजाम पे लाना न हो मुमकिन ... उसे इक खूब्सूत्रत मोड दे के छोड़ना अच्छा ...
रचना जीवन की अभिव्यक्ति है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावोक्ति!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआये हैं सो जायेंगे राजा रंक फ़कीर, एक सिंहासन चढि चलै एक बन्धे जंजीर ... बन्धन टूटना ही बेहतर है!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना !
ReplyDeleteअनचाहे संबंधों को ढोने से
ReplyDeleteअच्छा है कि पुनः
अजनबी बन जायें हम।...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
अन -चाहे संबंधों को ढ़ोना जीवन से असम्पृक्त ही होना है .पानी में मीन प्यासी रे ....
ReplyDeleteवाकई .......
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बहुत खूब लिखा है इस रचना के लिए आभार
ReplyDeletethanks to all.
ReplyDeleteदो इंसान फिर से अजनबी बन कर नए संबंधों को शुरू करते आए हैं. सुंदर रचना.
ReplyDeleteसुन्दर भावमय प्रस्तुति.
ReplyDeleteपुराने एक गाने की याद दिलाती हुई.
'चलो... एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों...'