जाने कैसे ?
दिल की बातें
दिल में रह गई
कहना जिसे चाहा नहीं
जुबाँ से फिसल गई .........
रंजो -गम को
मुस्कान के पीछे छुपाया था
वियोग के उजड़े चमन को
काँटों से सजाया था .......
मालूम था इक दिन
बहार संग
कलियों को आना है !१११
पतझड़ तो केवल
वसंत के आने का बहाना था ...........
मालूम था इक दिन
ReplyDeleteबहार संग
कलियों को आना है !
पतझड़ तो केवल
वसंत के आने का बहाना था ...........
प्रतीकों ने कविता के भावों को बोधगम्य बना दिया !
सुन्दर!!!
ReplyDeleteआशाओं का दामन छूटे ना....
मालूम था इक दिन
ReplyDeleteबहार संग
कलियों को आना है !१११
पतझड़ तो केवल
वसंत के आने का बहाना था ........aashawadi rachna, bahut badhiya
आभार ।
ReplyDeletethanks to all......
ReplyDeleteजाने कैसे ?
ReplyDeleteदिल की बातें
दिल में रह गई
कहना जिसे चाहा नहीं
जुबाँ से फिसल गई .........
..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
मालूम था इक दिन
ReplyDeleteबहार संग
कलियों को आना है !१११
पतझड़ तो केवल
वसंत के आने का बहाना था ...........
वाह आशावाद को दर्शाती सुन्दर रचना
बहुत खूब ... सच है एक सा कभी भी नहीं रहता ... पतझड़ के बाद बसंत आती है ... ये चक्र घूमता रहता है ...
ReplyDeleteदिन तो फिरते ही हैं, बस पतझड़ के मौसम को संभलकर झेल जाने की बात है।
ReplyDeletethanks to all.
ReplyDeleteदूसरा पैरा पहले और तीसरे को कन्फ्यूज करता लगता है।
ReplyDeletewo to connecting link hai.
Deleteमालूम था इक दिन
ReplyDeleteबहार संग
कलियों को आना है !१११
पतझड़ तो केवल
वसंत के आने का बहाना था ...........
यही उम्मीद तो जीए जाने की ताक़त देती है .....सुन्दर !
बहुत ही सुंदर संदेश देती सकारात्मक रचना.....
ReplyDeleteचलिए कुछ दिनों का पतझड़ एक सुंदर सी कविता तो दे गया .....:))
ReplyDeleteसकारात्मक सोच लिये सुंदर रचना...
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeletethak.u......singh sahab....
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