दिल को लगी ठेस
सामने आये तुम जब ????/
कुछ कह नही पाई.......
आघात दर आघात मैं
सहती चली गई
कह न सकी जो बोलकर
इक चुप्पी कह गई .......
उर के उजड़े उपवन में
कोयल गाती नहीं है ..
याद तुम्हारी चाह के भी
जाती नहीं है ........
इन्द्रधनुषी झूले हैं औ
झिलमिल सी डोरी
कैसे मिलूं प्रियतम से ..ये...
सोच रही गोरी .....
विरह भरे दिन बीत गये
बीत गई कितनी ही रातें
भींगा नही है तन मन अब तक .....
बीत गईं कितनी बरसातें .....
.
इंतज़ार की घड़ियाँ और विरह...बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDelete(१) वाह
ReplyDeleteगजब अभिव्यक्ति |
२) मौन की अभिव्यक्ति इकदम सटीक |
३) बिलकुल सही
४) बस प्रीत की डोर
५) विरह की पराकाष्ठा
बधाई महोदया |
आघात दर आघात मैं
ReplyDeleteसहती चली गई
कह न सकी जो बोलकर
इक चुप्पी कह गई .......
बहुत सुन्दर निशा जी.....
मन को छू गयी...
सस्नेह
विरह भरे दिन बीत गये
ReplyDeleteबीत गई कितनी ही रातें
भींगा नही है तन मन अब तक,
बीत गईं कितनी बरसातें .....
बहुत सुंदर भाव की पंक्तियाँ,...अच्छी प्रस्तुति
बहुत ही गहरी वेदना ...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ...!
thanks to all.....
ReplyDeleteविरह भरे दिन बीत गये
ReplyDeleteबीत गई कितनी ही रातें
भींगा नही है तन मन अब तक
बीत गईं कितनी बरसातें
सुन्दर अभिव्यक्ति!
विरह वेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteवेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteदर्द की दोनों अनुभूति है। एक वह जो गहरे तक भिंगोता है। दूसरा वह जो भींगते-भींगते सूख जाता है।
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति.....प्रशंसनीय प्रस्तुति....!
ReplyDeleteउर के उजड़े उपवन में
ReplyDeleteकोयल गाती नहीं है ..
याद तुम्हारी चाह के भी
जाती नहीं है ........
मन की अनुभूतियों का सुंदर चित्रण।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 02-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ
विरह भरे दिन बीत गये
ReplyDeleteबीत गई कितनी ही रातें
भींगा नही है तन मन अब तक .....
बीत गईं कितनी बरसातें .....
विरह की अग्नि कोई बूँद कोई नमी टिकने ही नहीं देती ... बहुत लाजवाब रचना ...
विरह की स्थिति ... और वही अवस्था ... गहरे ढंग से व्यक्त किया है
ReplyDeletethanks to all....
ReplyDeleteविरह का दर्द ..सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आभार .
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteकथ्यांश के मुताबिक भाव व शब्द चयन उत्कृष्ट हैं सफल सृजन ...बधाईयाँ जी /
ReplyDeleteइन्द्रधनुषी झूले हैं औ
ReplyDeleteझिलमिल सी डोरी
कैसे मिलूं प्रियतम से ..ये...
सोच रही गोरी .....
विरह वेदना की बहु विध अभिव्यक्ति ,नीड़ का निर्माण अब न हो सकेगा .
दिल को लगी ठेस
ReplyDeleteआँखें सह नही पाई
सामने आये तुम जब
कुछ कह नही पाई.......
बहुत सुन्दर !
क्या बात है,
ReplyDeleteबहुत सुंदर
उर के उजड़े उपवन में
ReplyDeleteकोयल गाती नहीं है ..
याद तुम्हारी चाह के भी
जाती नहीं है ........
भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
सादर।
thanks to all...
ReplyDeleteआघात दर आघात मैं
ReplyDeleteसहती चली गई
कह न सकी जो बोलकर
इक चुप्पी कह गई .......
wah bahut hi sundar ...bilkul lajabab rachana Nisha ji.
बहुत सुन्दर
ReplyDeletegujra jamana yaad aa gaya.
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ReplyDeleteमौन में वो शक्ति है , जो शव्द में नहीं ! विरह की अकुलाहट ! सुन्दर वेदना !
ReplyDeleteइन्द्रधनुषी झूले हैं औ
ReplyDeleteझिलमिल सी डोरी
कैसे मिलूं प्रियतम से ..ये...
सोच रही गोरी .....!
बेहतर ....!
वाह! बहुत बढिया शब्द चित्र खींचा है आपने……… आभार
ReplyDeletethanks to all...
ReplyDeleteमार्मिक रचना ...बहुत सुन्दर मन तक पहुची
ReplyDeleteMAN KO CHHOOTI RACHNA ...AABHAR
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हृदयस्पर्शी भावुक प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपकी हर प्रस्तुति भावनाओं के ज्वार
को शिखर पर ले जाती प्रतीत होती है.
आपके भावुक हृदय को नमन.
बहुत खुब...
ReplyDeleteविरह के भाव को पूरे दर्द के साथ कह-कह जाती कविता. बहुत खूब.
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