Monday, 30 January 2012

तुम्हारी बारी

तेरे गम को साझा किया मैने,
अब तक न हिम्मत हारी है
आज अभी अब दुखी हूँ मैं भी
अब तुम्हारी बारी है।


          १

मेरे उर ने पढे हैं
 तेरे नैनों की की सब भाषा
सागर तेरे पास है फिर भी
तुम क्यों बैठे प्यासा ?
मीठा पानी,खारा पानी
या सब एक जैसा ?
साल नही महीना नही
एक पल मुझ पर भारी है
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।



         २

मानव के इस जंगल में
इंसां ढूँढना मुश्किल है
वो मानव जो दिल नही
दिमाग के वश में रहता है
संबंध नही समझते जो सिर्फ
अपना मकसद साधता है
मंजिल तेरी यहीं कही है ?
या कही और की तैयारी है ?
मैने तेरा साथ निभाया
अब तुम्हारी बारी है।

20 comments:

  1. मंजिल तेरी यहीं कही है ?
    या कही और की तैयारी है ?
    मैने तेरा साथ निभाया
    अब तुम्हारी बारी है।....बहुत सुंदर पंक्तियाँ,...

    बहुत सुंदर रचना, प्रस्तुति अच्छी लगी.,
    welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

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  2. मैने तेरा साथ निभाया
    अब तुम्हारी बारी है।
    सुन्दर भाव....

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  3. jo maanle samajh le sirf uskee baari hai
    nice

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  4. अच्छी प्रस्तुति ... अपना फ़र्ज़ निभाया पर अब उम्मीद मत लगाइए .. उम्मीदें ही निराशा को जन्म देती हैं

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  5. बहुत सुंदर ...गहन अभिव्यक्ति.....

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  6. मेरे उर ने पढे हैं
    तेरे नैनों की सब भाषा
    सागर तेरे पास है फिर भी
    तुम क्यों बैठे प्यासा ?
    sundar....

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  7. वाह! एहसासों की बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  8. बहुत ही खूबसूरत एहसास!


    सादर

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  9. अच्छे आहसास हैं...परन्तु..

    मानव के इस जंगल में
    इंसां ढूँढना मुश्किल है..

    --मानव व इन्सां में क्या फ़र्ख है ? अस्पष्ट भाव होजाते है....यदि अन्तर नहीं तो मानव के जन्गल हैं फ़िर मानव तो हैं ही.. फ़िर कथ्य क्या है...यदि अन्तर है तो क्या है...सिर्फ़ भाषा का अन्तर है....

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    1. gupt ji yhan insan aur manv me thora sa antar hai aage ki pankti pr gaur kren to pta chal jayega .manv sirf apna maksad chahta hai pr maine insan se apeksha ki hai ki wo auro ka bhi hit dekhe aur samjhe.

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  10. मैंने अपनी बारी को नभा दिया मोहतरमा

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  11. सच कहा मानव तो बहुत हैं पर मानवता का अकाल है॥ अच्छी कविताएं निशा जी॥

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  12. मानव के इस जंगल में
    इंसां ढूँढना मुश्किल है
    वो मानव जो दिल नही
    दिमाग के वश में रहता है..
    very nice..

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  13. इस पथ पर बारी-बारी से सबकी बारी आती है। जो जितना जल्दी समझ ले उतना ही उसके लिए अच्छा है।

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  14. मानव के इस जंगल में
    इंसां ढूँढना मुश्किल है... bahut hi mushkil

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  15. कोमल, मृदुल भावों से परिपूर्ण सुंदर प्रस्तुति. आभार.
    सादर

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  16. कोमल अहसास..बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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  17. खूबसूरत भावों की सुन्दर शब्दों से रची हुई लजवाब कविता......
    कृपया इसे भी पढ़े
    नेता,कुत्ता और वेश्या

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