बरसों से मिलने की आस लिये बैठा हूँ
इंतजार की आग में पल-पल जला करता हूँ
ख्वाबों से तेरे,दिल को बहलाये रहता हूँ
सागर हू फिर भी, मैं प्यास लिये बैठा हूँ ।
इठलाती नदियाँ औ बलखाती तालें हैं
सतरंगी सपनों का संसार लिये फिरता हूँ
तेरे दरश को पलक बिछाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ।
विरह में मैं पागल, दिवाना मैं घायल
सीने में अपने हलचल दबाये रखता हूँ
मौन की अनुगूँज में खुद को डूबाये रखता हूँ
सागर हूँ फिर भी, मैं प्यास लिये फिरता हूँ।
खुद का सुधबुध औ चैन गँवाये बैठा हूँ
लहरों की तरंगों में गम को छिपाये बैठा हूँ
नैंनों से अपने मैं,नींद भगाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ
बरसों से मिलने की आस लिये बैठा हूँ
ReplyDeleteइंतजार की आग में पल-पल जला करता हूँ
ख्वाबों से तेरे,दिल को बहलाये रहता हूँ
सागर हू फिर भी, मैं प्यास लिये बैठा हूँ ।
....... बहुत ही गहरे भाव ... सागर की तरह
din raat machaltaa hoon
ReplyDeletetere intzaar mein rahtaa hoon
deep thoughts
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
ReplyDeleteसागर हूँ..फिर भी प्यासा हूँ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..
खुद का सुधबुध औ चैन गँवाये बैठा हूँ
ReplyDeleteलहरों की तरंगों में गम को छिपाये बैठा हूँ
beautiful creation with deep thought.
सागर की प्यास है कि बुझती ही नहीं .. नदियाँ उसमें मिल कर सागर ही बन जाती हैं ..सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण अच्छी रचना,..प्यारी पंक्तियाँ
ReplyDeleteWELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
खुद का सुधबुध औ चैन गँवाये बैठा हूँ
ReplyDeleteलहरों की तरंगों में गम को छिपाये बैठा हूँ
नैंनों से अपने मैं,नींद भगाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ
गहन ....सुंदर पंक्तियाँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ....
ReplyDeleteसागर से गहरे भाव... बहुत सुन्दर...
विरह में मैं पागल, दिवाना मैं घायल
ReplyDeleteसीने में अपने हलचल दबाये रखता हूँ
मौन की अनुगूँज में खुद को डूबाये रखता हूँ
सागर हूँ फिर भी, मैं प्यास लिये फिरता हूँ...
विरह की वेदना में घायल लोगों की प्यास कभी नहीं बुझती ... बहुत खूब ..
सागर की वेदना को सुन्दर शब्द दिए हैं आपने.सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहोत सुंदर प्रस्तुती ।
ReplyDeleteआपका हमारे ब्लॉग पर स्वागत है ।
हिंदी दुनिया
बरसों से मिलने की आस लिये बैठा हूँ
ReplyDeleteइंतजार की आग में पल-पल जला करता हूँ
ख्वाबों से तेरे,दिल को बहलाये रहता हूँ
सागर हू फिर भी, मैं प्यास लिये बैठा हूँ ।.......सागर के दर्द को बखूबी शब्दों में उतारा है आपने.........
thanks to all.
ReplyDeleteइसकी .उसकी सबकी कशिश लिए यह रचना
ReplyDeleteबहूत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ती ..
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ।
ReplyDeleteसागर से गहरे भाव......वाह !!!!
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
कल 27/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
खुद का सुधबुध औ चैन गँवाये बैठा हूँ
ReplyDeleteलहरों की तरंगों में गम को छिपाये बैठा हूँ
नैंनों से अपने मैं,नींद भगाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ
वाह .......लाजवाब प्रस्तुति
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........
सुंदर रचना!गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
ख्वाबों से तेरे,दिल को बहलाये रहता हूँ
ReplyDeleteसागर हू फिर भी, मैं प्यास लिये बैठा हूँ ।
सागर की वेदना को सुन्दर शब्द दिए हैं आपने
निशा जी इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
शनिवार के चर्चा मंच पर
Deleteआपकी रचना का संकेत है |
आइये जरा ढूंढ़ निकालिए तो
यह संकेत ||
beautiful creation with deep thought.
ReplyDeleteकुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !
ReplyDelete"मौन की अनुगूँज में खुद को डूबाये रखता हूँ
ReplyDeleteसागर हूँ फिर भी, मैं प्यास लिये फिरता हूँ।"
वाह ! बहुत सुंदर निशा जी
इठलाती नदियाँ औ बलखाती तालें हैं
ReplyDeleteसतरंगी सपनों का संसार लिये फिरता हूँ
तेरे दरश को पलक बिछाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ।
बहुत खूब।
अति सुंदर रचना।
बताइए,अब अगर सागर ही प्यासा हो,तो नदियां और ताल क्या करें!
ReplyDeleteइठलाती नदियाँ औ बलखाती तालें हैं
ReplyDeleteसतरंगी सपनों का संसार लिये फिरता हूँ
तेरे दरश को पलक बिछाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ।
बहुत सुंदर रचना बेहद खूबसूरत भाव लिये.
बधाई.
thanks to both of you.
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