Wednesday, 11 January 2012

कही-अनकही

जरुरी नहीं की .........
हर बात का जबाव दिया जाये
भीड़ में बहुत जी लिया ......
अब तन्हाई का भी .....
मजा लिया जाये .....

वो हिम्मत ही क्या ?
जो टूट जाये .....
वो आस ही क्या ?
जो छूट जाये ....
वो दोस्त ही क्या ?
जो रूठ जाये ........



21 comments:

  1. वाह...बहुत सुन्दर.

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  2. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  3. वो हिम्मत ही क्या ?
    जो टूट जाये .....
    वो आस ही क्या ?
    जो छूट जाये ....
    वो दोस्त ही क्या ?
    जो रूठ जाये .....
    खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  4. जीवन की वास्तविकताओं से अवगत करवाती आपकी यह रचना ....सराहनीय है ...!

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  5. जरुरी नहीं की .........
    हर बात का जबाव दिया जाये
    भीड़ में बहुत जी लिया ......
    अब तन्हाई का भी .....
    मजा लिया जाये .....
    behtarin likhi hai...bahut sundadr.

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  6. वो हिम्मत ही क्या ?
    जो टूट जाये .....
    वो आस ही क्या ?
    जो छूट जाये ....तभी तो जीवन है , हिम्मत है , आगे के सपने हैं

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  7. बहुत अच्छी और सार्थक प्रस्तुति!

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  8. वाह ...बहुत खूब ।

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  9. वाह:सार्थक प्रस्तुति!...

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  10. चंद लाइनों में भरपूर संदेश; मुझे कविता की समझ कुछ कम है, इतने सारे मेरे वरिष्‍ठों नें आपकी इस प्रस्‍तुति को बहुत सुन्‍दर कहा है, किन्‍तु कविता के एतिहासिक बिम्‍बों में दोस्‍ती में रूठना और मनाना दोनों होता है।

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  11. बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बहुत खुबशुरत अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
    new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
    मै फालोवर बन गया हूँ,आप भी बने,मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी,....

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  12. बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...

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  13. आशा का संचार कराती सुन्दर अभिव्यक्ति

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  14. वाह! अति सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति है आपकी.
    बहुत बहुत आभार.

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