Monday, 23 January 2012

उपलब्धि


करती हूँ एक प्रश्न सखी ........
करना तुम मत शोर 
बेचैनी घिर आई है 
अंधेरा घनघोर .
किसने तुमको राह बताई 
किसने दिया सहारा ?
या खुद ही मंजिल को ढूंढा.....
सारा श्रेय तुम्हारा ?
आगे बढती धारा का जब कोई 
मार्ग अवरुद्ध करता होगा ......
सच बतलाना आली मुझको ......
क्या दिल तेरा चुपके -चुपके ......
रोता होगा ?????????
फिर भी तुमने हार  न मानी
वो स्वाभिमानिनी निर्भय तरंगणी....
 प्रगति औ प्रवाह अपना कर
स्वच्छ हमेशा रहता तेरा पानी .....
कभी ऊँचे से नीचे बहती 
कभी  नीचे से ऊँचे बहती 
रोते हँसते गाती गाना 
तेरे जीवन की उपलब्धि का ?
क्या है वही भेद पुराना ..........


ये कविता ८-१० साल पहले की  लिखी हुई है .




17 comments:

  1. नदी की तरह ही नारी को भी प्रवाहमयी बनना पड़ता है मार्ग के अवरोधों को हटाने के लिए .. अच्छी प्रस्तुति

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  2. खुद से खुद को पूछना .... व्यक्त करना बहुत अच्छा लगा

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  3. अपने आप से प्रश्न करती ... उमंग में जीती रचना ...

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  4. नदियां एक प्रतीक हैं- इस बात का कि धुन हो,तो सारी बाधाएं छोटी पड़ती हैं।

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जन्मदिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन!

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  6. नदी का मानवीकरण कर उसे सखी की संज्ञा देना बहुत अच्छा लगा। प्रवाह लिए सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  7. बहुत सार्थक अभिव्यक्ति सुंदर रचना,
    new post...वाह रे मंहगाई...

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति..
    शायद प्रबल इच्छाशक्ति है उसकी उपलब्धि का भेद...
    सस्नेह..

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  9. गहरी अभिव्‍यक्ति।

    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट्स पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  10. खुद ही किये सवालो का खुद उत्तर देना बहुत ही अच्छा लगा.....

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  11. नदी के प्रवाह के संग मन के उद़गार.....अच्‍छी रचना।

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  12. अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ..

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  13. धारा के दर्पण में अपनी भावनाओं को प्रतिबिंबित करके सुंदर सृजन किया है. सुंदर कविता. ऐसी कविताएँ कभी पुरानी नहीं होतीं.

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  14. सटीक अभिव्यक्ति कल भी और आज भी ।

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  15. बहुत अच्छी........सच्ची अभिव्यक्ति है।

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