करती हूँ एक प्रश्न सखी ........
करना तुम मत शोर
बेचैनी घिर आई है
अंधेरा घनघोर .
किसने तुमको राह बताई
किसने दिया सहारा ?
या खुद ही मंजिल को ढूंढा.....
सारा श्रेय तुम्हारा ?
आगे बढती धारा का जब कोई
मार्ग अवरुद्ध करता होगा ......
सच बतलाना आली मुझको ......
क्या दिल तेरा चुपके -चुपके ......
रोता होगा ?????????
फिर भी तुमने हार न मानी
वो स्वाभिमानिनी निर्भय तरंगणी....
प्रगति औ प्रवाह अपना कर
स्वच्छ हमेशा रहता तेरा पानी .....
कभी ऊँचे से नीचे बहती
कभी नीचे से ऊँचे बहती
रोते हँसते गाती गाना
तेरे जीवन की उपलब्धि का ?
क्या है वही भेद पुराना ..........
ये कविता ८-१० साल पहले की लिखी हुई है .
नदी की तरह ही नारी को भी प्रवाहमयी बनना पड़ता है मार्ग के अवरोधों को हटाने के लिए .. अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteखुद से खुद को पूछना .... व्यक्त करना बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteअपने आप से प्रश्न करती ... उमंग में जीती रचना ...
ReplyDeletesundar bhaav ,badhiyaa
ReplyDeleteनदियां एक प्रतीक हैं- इस बात का कि धुन हो,तो सारी बाधाएं छोटी पड़ती हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteनेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जन्मदिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन!
नदी का मानवीकरण कर उसे सखी की संज्ञा देना बहुत अच्छा लगा। प्रवाह लिए सुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सार्थक अभिव्यक्ति सुंदर रचना,
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteशायद प्रबल इच्छाशक्ति है उसकी उपलब्धि का भेद...
सस्नेह..
गहरी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट्स पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
खुद ही किये सवालो का खुद उत्तर देना बहुत ही अच्छा लगा.....
ReplyDeleteनदी के प्रवाह के संग मन के उद़गार.....अच्छी रचना।
ReplyDeleteअर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteधारा के दर्पण में अपनी भावनाओं को प्रतिबिंबित करके सुंदर सृजन किया है. सुंदर कविता. ऐसी कविताएँ कभी पुरानी नहीं होतीं.
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति कल भी और आज भी ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी........सच्ची अभिव्यक्ति है।
ReplyDeleteयह कविता अच्छी लगी।
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