जीवन की एकरसता से गर
मुक्ति पाना हो
उत्साह और उमंग को
जीवन का अंग बनाना हो
जोश किसको कहते है औ
कैसा है गंगा का बंधनयुक्त
उन्मुक्त मस्त विहार
देखना चाहते हो तो
घूम आओ हरिद्वार।
गंगा की इठलाती,लहराती औ बलखाती
जल की तरंगें हमें
जीने का राह दिखाती है
जीना किसको कहते हैं
बिना बोले सिखलाती है
दिल औ दिमाग दोनों को
ठंढक पहुँचाये ऐसी
करिश्माई है इसकी फुहार
महसुस करना चाहते हो तो,
घूम आओ हरिद्वार।
उच्श्रंखलता को दूर करने के लिये
जीवन को एक दिशा देने के लिये
थोडा बंधन जरूरी है
अपनी सीमाओं में रहने की
आदत कमजोरी नही
मजबूती की निशानी है
थोडी सी चंचलता
बहुत सारा प्यार समेटे रहती हरपल
खुद में पवित्र गंगा की धार
पाना है इसे तो।
घूम आओ हरिद्वार।
गंत्वय के प्रति ललक
मंजिल को पाने का अरमान
राह की बाधाओं को नकार
सागर से मिलने को बेकरार
हर सुख-दु;ख,मान-अपमान को
अपनाने के लिये तैयार
देखना है निर्भय विचरती गंगा का निखार तो,
घूम आओ हरिद्वार।
सुन्दर सीख़युक्त कविता.
ReplyDeletesach prakriti se judkar kitna kuch khoobsurat anubhav man kee tamam mushkilon mein tarotaajagi de jaata hai..
ReplyDeletebahut sundar tasveeren aur sundar chitran...
बिलकुल...जल्द से जल्द...
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
ज़िंदगी की नीरसता को भंग करने का खूबसूरत नुस्खा ...
ReplyDeleteअपनी सीमाओं में रहने की
ReplyDeleteआदत कमजोरी नही
मजबूती की निशानी है
bahut hi prabhavshli rachana ....badhai rana ji .
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 16-02-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज...हम भी गुजरे जमाने हुये .
बहुत सुन्दर रचना,खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका सवाई सिंह राजपुरोहित
एक ब्लॉग सबका
आज का आगरा
नयनाभिराम छवियों के मध्य आपकी कविता किसी तीर्थ से कम नहीं निशा जी! बहुत अच्छी महिमा बताई है आपने हरिद्वार की और सीख ज़िंदगी की!!
ReplyDeletebahut achchi lagi.....
ReplyDeleteहरी की पोडी, लक्ष्मण झूला वाह, बात ही अलग है...
ReplyDeleteबड़ी सुन्दर रचना...
सादर बधाई...
thanks to all.
ReplyDeleteडगमगाते कदमों से
ReplyDeleteशाम को घर कैसे लौटता है
सुबह का भुला
देखना है तो जाओ
देख आओ लक्ष्मणझूला
श्रृंगार किसे कहते हैं और
कैसे हैं प्रकृति के विविध वेश...
बहुत ही सुन्दर कविता.. मैं ऋषिकेश हर सप्ताह जाता हूँ .. पर आपकी कविता ने एक नया रूप दिखाया है यहाँ का...
आभार !
गंगा दर्शन और महिमा के साथ साथ सुंदर चित्रों ने मन मोह लिया
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteगंगा,हरिद्वार,ऋषिकेश शब्द पढते या सुनते ही पावनता
का संचार हो जाता है मन में.
सन१९७५ से १९७७-७८ तक हरिद्वार बी.एच.ई.एल.में रहा.
लगभग हर हफ्ते हर की पैडी,मनसा देवी मंदिर,दुर्गा देवी मंदिर
हो आता था.महीने में एक बार ऋषिकेश भी चला जाता था.
सर्वत्र प्राकृतिक आनंद ही आनंद का एहसास होता था.
शानदार प्रस्तुति के लिए और मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका
हार्दिक आभार,निशा जी.
bahut achcha varnan :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसचमुच इस पावन देव भूमि पर जीवन की उर्जा मिलती है.सुंदर रचना.
ReplyDeleteअपनी सीमाओं में रहने की
ReplyDeleteआदत कमजोरी नही
मजबूती की निशानी है Bahut khoob.
हरिद्वार और लक्ष्मणझुले के सुंदर वर्णन के लिए बधाई॥
ReplyDeleteसुन्दर शब्दावली में
ReplyDeleteहरिद्वार महिमा
बेहतर ... !!
चित्र के साथ , बहुत ही सुन्दर गंगा और हरिद्वार की विशेषता -को चित्रित किया है आप ने ! अब हरिद्वार के लिए समय और यात्रा को कार्यान्वित करना पड़ेगा !बधाई
ReplyDeleteप्रस्तुति अच्छी लगी ।.मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, खूबसूरत प्रस्तुति. गंगा और हरिद्वार की महिमा मन को प्रसन्न करती है. बधाई इस प्रस्तुति के लिये.
ReplyDeleteवाह!!!!!बहुत खूब निशा जी,अच्छी प्रस्तुति, सुंदर हरिद्वार महिमा,...
ReplyDeleteMY NEW POST ...सम्बोधन...
वाह , बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहरि का द्वार और ऋषिकेश,
ReplyDeleteपल पल प्रकृति बदलती वेश।
बहुत सुंदर कविता।
गंगा जी के मनोरम दृश्य को देख के जैसे जीवन सफल हो गया ... बेहतरीन रचना है ...
ReplyDeleteसत्य शोधकों और मनीषियों का अनुभव है कि प्रकृति के रास्ते इन्सान सुगमता से परमेश्वर से साक्षात्कार कर सकता है! गंगा कहीं पर भी बहे, गंगा के साथ-साथ जीवन है! क्योंकि चलने और लहलहाने के प्राकृतिक स्वभाव को अंगीकार करके मनुष्य-जीवन, सच में और पूर्णता में जिन्दा हो उठता है! अन्यथा तो हम अपने ही कन्धों पर, अपनी लाश को ही तो ढो रहे हैं! गंगा, यमुना या चम्बल किसी भी नदी के किनारे, ओर से छोर तक कहीं भी बैठ जाओ केवल जीवन ही नहीं दिखेगा, बल्कि जीवन के हजारों नये-रंग किलकारियां करते और इठलाते दिखेंगे! देहरादून के धार्मिक तटों के कोलाहल से दूर, बहुत दूर निर्जन गंगा तट का अवलोकन जो अनुभूति देगा वो ही सच्ची और निर्विकार अनुभव होगा!
ReplyDeleteउच्श्रंखलता को दूर करने के लिये
ReplyDeleteजीवन को एक दिशा देने के लिये
थोडा बंधन जरूरी है
अपनी सीमाओं में रहने की
आदत कमजोरी नही
मजबूती की निशानी है
....बिलकुल सच...बहुत सुंदर रचना...
घूम आओ हरिद्वार।
ReplyDeleteकैसे हैं प्रकृति के विविध वेश
देखना ही है तो जाओ
घूम आओ ऋषिकेश।
gajab likha hai aapne बहुत खूब
thanks to all.
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