Friday 25 November 2011

फुरसत के लम्हे


सोचा था मैंने-------
सच्चाई को शब्दों की
जरुरत नहीं होती-----
पता नही था----
चुप रहनेवालों को
दुनिया चोर समझती है।




गम इस बात का नहीं------
बिना किसी गुनाह के
उसने इलज़ाम लगाया मुझपे-----
गम इस बात का है
मेंने झूठ को सच के साये में
पलने दिया।


वो नहीं समझ पायेंगे कभी-------
मेंने ऐसा क्यों किया ?
सदियों चल सकती थी सायेमें   उसके----
फिर भी कुछ लम्हों को  क्यों जिया ?????????


58 comments:

  1. आपके 'expressions'गजब के हैं निशा जी.
    आपकी प्रस्तुति का निराला अंदाज बहुत अच्छा लगता है.

    देरी से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    नई पोस्ट आज ही जारी की है.

    ReplyDelete
  2. बहुत ही बढ़िया मैम!

    ----
    कल 27/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. हर किसी में इस उन्मुक्ति की छटपटाहट होने चाहिए।
    खुद के लिए जितना भी जी सके जीना चाहिए।

    ReplyDelete
  4. वो नहीं समझ पायेंगे कभी-------
    मेंने ऐसा क्यों किया ?
    सदियों चल सकती थी सायेमें उसके----
    फिर भी कुछ लम्हों को क्यों जिया ?????????
    बेहतरीन ।

    ReplyDelete
  5. बहुत भावपूर्ण कविता....

    ReplyDelete
  6. बेहद गहन भावाव्यक्ति।

    ReplyDelete
  7. गम इस बात का है
    मेंने झूठ को सच के साये में
    पलने दिया।
    वो नहीं समझ पायेंगे कभी-------
    मेंने ऐसा क्यों किया ?
    सदियों चल सकती थी सायेमें उसके----
    फिर भी कुछ लम्हों को क्यों जिया

    बहुत ही खूब.
    खूबसूरत प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  8. वो नहीं समझ पायेंगे कभी-------
    मेंने ऐसा क्यों किया ?
    सदियों चल सकती थी सायेमें उसके----
    फिर भी कुछ लम्हों को क्यों जिया ?????????bahut badhiyaa

    ReplyDelete
  9. बहुत खूब ||
    सुन्दर रचनाओं में से एक ||

    आभार ||

    ReplyDelete
  10. निशा जी आपने तो अपने भवो को कविता में पीरो दिया
    बहुत ही सुंदर..बधाई....
    नई पोस्ट में आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  11. सदियों चल सकती थी सायेमें उसके----
    फिर भी कुछ लम्हों को क्यों जिया ?????????

    ....बहुत गहरी सोच समाये सुंदर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  12. Hi I had a little issue looking at your site but other then that it’s a really awesome site

    From everything is canvas

    ReplyDelete
  13. कभी-कभी सच को झूठ के साए में जीना होता है. एक कलिष्ट जीवन स्थिति का वर्णन करती सुंदर कविता.

    ReplyDelete
  14. आपके ब्लॉग को मैंने अपनी चुनिंदा सूची में रख लिया है.

    ReplyDelete
  15. बेहतरीन शब्द समायोजन..... भावपूर्ण अभिवयक्ति....

    ReplyDelete
  16. दुराचार जीतता तब सदाचार चुप रहता जब ........अच्छी रचना .

    ReplyDelete
  17. बहुत अच्छी कविता निशा जी |ब्लॉग पर आने के लिए आभार |

    ReplyDelete
  18. निशा जी खूबसूरत रचना के लिए बधाई

    ReplyDelete
  19. बेहतरीन कविता, सुंदर भाव !

    ReplyDelete
  20. गहन अभिव्यक्ति... सुंदर रचना

    ReplyDelete
  21. वो नहीं समझ पायेंगे कभी-------
    मेंने ऐसा क्यों किया ?

    ReplyDelete
  22. सदियों चल सकती थी सायेमें उसके----
    फिर भी कुछ लम्हों को क्यों जिया ?????????

    गहन अभिव्यक्ति .........

    ReplyDelete
  23. बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर (हरिवंश राय बच्चन) आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  24. पश्चाताप की अग्नि अधिक दुखदायी होती है।

    ReplyDelete
  25. गम इस बात का है
    मेंने झूठ को सच के साये में
    पलने दिया।

    sunder abhivyakti!

    ReplyDelete
  26. सुंदर भावो से सजी रचना,
    मेरे पोस्ट 'शब्द'में स्वागत है

    ReplyDelete
  27. बहुत सुन्दर रचना ...! भाव का अनूठा मिश्रण !

    ReplyDelete
  28. वाह! बहुत खूब लिखा है आपने ! ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना!

    ReplyDelete
  29. सुन्दर भाव रचना मन भाई .

    ReplyDelete
  30. बहत सुन्दर रचना ..आभार

    ReplyDelete
  31. निशा जी,...
    मेरे नए पोस्ट "प्रतिस्पर्धा"में है इंतजार...
    पछली पोस्ट में आने दिल से आभार ...

    ReplyDelete
  32. अरे वाह - :)
    सच को सच ही में किसी शब्द की आवश्यकता नहीं होती - हाँ झूठ को expose करने के लिए कभी कभी सच का मुखर होना आवश्यक हो जाता है |

    ReplyDelete
  33. सच को पलने को कुछ और समय तो दीजिये...सच बलवान है इसलिए सदा ही विजयी है.
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया...आते रहिये यही गुजारिश :)

    ReplyDelete
  34. आप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
    इतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
    आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद्
    दिनेश पारीक
    http://dineshpareek19.blogspot.com/
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

    ReplyDelete
  35. सुन्दर अगीत हैं आपके ...

    ReplyDelete
  36. बहुत सुंदर रचना निशा जी,
    आभार ब्लॉग पर आने का !

    ReplyDelete
  37. बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    बेहद खूबसूरत ...पोस्ट
    शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!

    ReplyDelete
  38. सुन्दर प्रस्तुति | मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  39. ""♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
    भय से मुक्ति प्राप्त करोगे, तभी साहसी बन सकते हो!
    अछल साहसी ही बनने से, सत्य वचन पे ठन सकते हो!
    भय की माला जपने से तो, केवल हार मिलेगी तुमको,
    कर्म की युक्ति प्राप्त करोगे, तभी सफलता जन सकते हो!"

    निशा जी, बहुत ही प्यारी रचना है जो सच को प्रदर्शित करती है! नमन आपकी लेखनी को!

    ReplyDelete
  40. वो नहीं समझ पायेंगे कभी-------
    मेंने ऐसा क्यों किया ?
    सदियों चल सकती थी सायेमें उसके----
    फिर भी कुछ लम्हों को क्यों जिया ?????????
    sunder bhav
    rachana

    ReplyDelete
  41. very nice post, i certainly love this website, keep on it

    From Great talent

    ReplyDelete
  42. इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।

    ReplyDelete
  43. औरों की ग़लत सोच का ग़म सत्कर्मी को क्यों? अपनी नेकी के आत्मसंतोष से बड़ा नहीं हो सकता उनका ज़बरिया क्लेश।

    ReplyDelete
  44. "मेंने झूठ को सच के साये में
    पलने दिया"...kafi gambheer soch hai..bahut khub!
    http://isangam.blogspot.com/
    http://sangamkarmyogi.blogspot.com/

    ReplyDelete
  45. अक्सर चुप रहने वाले पे इलज़ाम ही लगते हैं ...

    ReplyDelete
  46. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा ।

    ReplyDelete