आदर्श,मर्यादा,समर्पण,ईमानदारी औ
नित नये-नये प्रयोग की ज़मीं पे
मन मेरा है जीता
यही मेरा जीवन है औ
यही है गीता।
इन मूल्यों को अपनाकर
क्या-क्या मैने पाया
पाने के क्रम में
कैसे कहूँ ?
क्या-क्या मैने खोया।
खोने के गहरे ज़ख्मों को
कैसे ? किसको ? दिखलाऊँ
इन रिस्ते ज़ख्मों पर कैसे?
मरहम मैं लगवाऊँ ?
नैनों को हँसते सबने देखा
दिल की पीडा किसने जानी ?
सदियों से चली आ रही
खोने औ पाने की ये करुण कहानी।
छोटी-छोटी इन बातों से
अमावस की काली रातों से
ना घबराना प्यारे तुम
हमेशा याद रखना
दुःख के गहन अंधेरों में
द्विविधा की बोझिल पहरों में
हर इंसान हमेशा अकेला हीं
खडा रहता है
इन बाधाओं को पार कर जो
अपना परचम लहराता है
आनेवाले पल का वही
सिकन्दर कहलाता है
वही सिकन्दर कहलाता है।
जीवन में जो बाधाओं से लड़ता है, सफलता भी उसे ही मिलती है। जो बौरा डूबन डरा रहा किनारे बैठ।
ReplyDeleteइन मूल्यों को अपनाकर
ReplyDeleteक्या-क्या मैने पाया
पाने के क्रम में
कैसे कहूँ ?
क्या-क्या मैने खोया।
पर बाधाओं से लड़ जो जीता वही सिकंदर है ..अच्छी प्रस्तुति
दुःख के अँधेरे में प्रेरणा के बीज छुपे होते हैं!
ReplyDeleteप्रेरित करती और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteसच है बाधाओं का सामना करके ही सफलता और जीत पाई जा सकती है..... सकारात्मक सन्देश देती रचना
ReplyDeleteआदर्श,मर्यादा,समर्पण,ईमानदारी औ
ReplyDeleteनित नये-नये प्रयोग की ज़मीं पे
मन मेरा है जीता
यही मेरा जीवन है औ
यही है गीता।
इन मूल्यों को अपनाकर
क्या-क्या मैने पाया
पाने के क्रम में
कैसे कहूँ ?
क्या-क्या मैने खोया।
खोने के गहरे ज़ख्मों को
कैसे ? किसको ? दिखलाऊँ....bahut kuch kahte shabd
thanks to all.
ReplyDeletejo jita hai wahi sikandar hai...
ReplyDeletebehtreen rschna..
padhane ke liye dhanywaad.
jai hind jai bharat
आदर्श,मर्यादा,समर्पण,ईमानदारी औ
ReplyDeleteनित नये-नये प्रयोग की ज़मीं पे
मन मेरा है जीता
यही मेरा जीवन है औ
यही है गीता।
....बहुत सच कहा है...इन आदर्शों का पालन करने वाले को सिकंदर बनने से कौन रोक सकता है...मन को छूते गहरे अहसास..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
sach kaha
ReplyDeleteaaj bhi jo jeeta wahi sikander.....
सच कहा है आपने ... जो बाधाओं को पार पाता है सिकंदर तो वही होता है ... लाजवाब लिखा है ...
ReplyDeleteहमेशा याद रखना
ReplyDeleteदुःख के गहन अंधेरों में
द्विविधा की बोझिल पहरों में
हर इंसान हमेशा अकेला हीं
खडा रहता है
इन बाधाओं को पार कर जो
अपना परचम लहराता है
आनेवाले पल का वही
सिकन्दर कहलाता है
prerak prastuti.
इन मूल्यों को अपनाकर
ReplyDeleteक्या-क्या मैने पाया
पाने के क्रम में
कैसे कहूँ ?
क्या-क्या मैने खोया।
इन बाधाओं को पार कर जो
अपना परचम लहराता है
आनेवाले पल का वही
सिकन्दर कहलाता है
very meaningful lines.
thaks to all.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर निशा जी....बेहतरीन पेशकश.
ReplyDeleteछोटी-छोटी इन बातों से
ReplyDeleteअमावस की काली रातों से
ना घबराना प्यारे तुम
हमेशा याद रखना
दुःख के गहन अंधेरों में
द्विविधा की बोझिल पहरों में
हर इंसान हमेशा अकेला हीं
खडा रहता है
इन बाधाओं को पार कर जो
अपना परचम लहराता है
आनेवाले पल का वही
सिकन्दर कहलाता है
वही सिकन्दर कहलाता है।
बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना. बांटने के लिए शुक्रिया.
बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना....
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा कविता निशा जी नमस्ते
ReplyDeleteआपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबात तो सच्ची है !
ReplyDeleteजीवन का कटु सत्य बखूबी व्यक्त किया है
ReplyDeleteसकारात्मक भावों को बहुत अच्छे से लिखा है आपने,बधाई !
ReplyDeleteअपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
बहुत अच्छा लिखा आपने !
ReplyDeleteइसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई !
अब आपके ब्लॉग पर आना होता रहगा
मेरे ब्लॉग पर आये
manojbijnori12 .blogspot .com
"पाने के क्रम में
ReplyDeleteकैसे कहूँ ?
क्या-क्या मैने खोया।
खोने के गहरे ज़ख्मों को
कैसे ? किसको ? दिखलाऊँ
इन रिस्ते ज़ख्मों पर कैसे?
मरहम मैं लगवाऊँ ?"
संवेदना से सराबोर अभिव्यक्ति !बस अपनी ही सी लगती कहानी ! बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिये ।
इन बाधाओं को पार कर जो
ReplyDeleteअपना परचम लहराता है
आनेवाले पल का वही
सिकन्दर कहलाता है
sach kaha aapne aur khoobsurat tareeke se
जीवन से न हार जीने वाले ... प्रेरक कविता।
ReplyDeleteअति सुन्दर अभिव्यक्ति, मानव मन
ReplyDeleteके धरातल पर लिखी हुई कविता.
अच्छा एवं सफल प्रयास.
धन्यवाद.
आनन्द विश्वास.
..सही है।
ReplyDeleteब्लॉग का नाम हिंदी में अनुदित कर दिया जाय तो अच्छा नहीं रहेगा..?
ReplyDeleteakele hi aage badhna hai ...himmat se...
ReplyDeletethanks to all.
ReplyDeleteदुःख के गहन अंधेरों में
ReplyDeleteद्विविधा की बोझिल पहरों में
हर इंसान हमेशा अकेला हीं
खडा रहता है
जीवन के एक बड़े यथार्थ को आपने बहुत सुंदर तरीके से शब्दबद्ध किया है।
नमस्कार
ReplyDeleteसम्मानित मित्र
आज आपके ब्लॉग पर गया हूँ! आपकी रचनायें पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, इसके लिए आपको ह्रदय से धन्यवाद!
अच्छी पोस्ट आभार ! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
Kitti sundar bat likhi apne..badhai.
ReplyDeleteइन बाधाओं को पार कर जो
ReplyDeleteअपना परचम लहराता है
आनेवाले पल का वही
सिकन्दर कहलाता है
वही सिकन्दर कहलाता है।
वाह! बहुत सुन्दर प्रेरणादायक प्रस्तुति है आपकी.
सिकंदर भी क्या खूब नाम है.
अमावस की काली रातों से
ReplyDeleteना घबराना प्यारे तुम
हमेशा याद रखना
दुःख के गहन अंधेरों में
द्विविधा की बोझिल पहरों में
हर इंसान हमेशा अकेला हीं
खडा रहता है
सुन्दर भाव रचना मन भाई इससे पहली रचना भी मन को बंधती है दोनों रचनाएं अति सुन्दर .