Thursday 6 October 2011

प्रतिच्छाया

झूठ मैं कह नहीं सकती
सच्चाई तुम सुन नही सकते
विश्वास से भरे सतरंगी सपने
बुन नही सकते।
गलती है तुम्हारी या फिर ?
दिल तुम्हारा किसी अपनों ने ही
भरमाया है
आश औ विश्वास से बुने
संबंधों को
बार-बार चटकाया है ?
शायद यही वजह है कि
तुम्हें किसी का एतबार नहीं
तुम्हारे अपनों ने शायद
तुम्हे बहुत सताया है
दुःख है कि तुमने
ये कभी नहीं बताया है।
पता चल गया है मुझे कि
तुम्हारी  सोच के पीछे
तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नकारात्मक  प्रतिच्छाया  है।

41 comments:

  1. बहुत सुन्दर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ...सुन्दर अभिव्यक्ति.. विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

    http://batenkuchhdilkee.blogspot.com/

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  2. सुन्दर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ...

    आपके ब्लॉग को आज हमने पहली बार देखा और यहां आकर अच्छा लगा।

    शुक्रिया !

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  3. खुबसूरत भाव भरी कविता
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. पता चल गया है मुझे कि
    तुम्हारे सोच के पीछे
    तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
    तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
    नाकारात्मक प्रतिछाया है।
    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । धन्यवाद ।

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  5. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने!
    आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  6. मेरे यहाँ आने के लिए शुक्रिया। प्रतिच्छाया भी पसन्द आई…

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  7. bahut badhiya rachnaye hai aapki kuchh sujhav ho to mere blog par bhi de aabhari rahu ga
    http://jeetrohann1.blogspot.com/

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  8. bahut hi badhiya likha hai aapne.....
    jai hind jai bharat

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  9. पता चल गया है मुझे कि
    तुम्हारे सोच के पीछे
    तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
    तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
    नाकारात्मक प्रतिछाया है।

    भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...

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  10. निशा जी बहुत ही सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं |

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  11. तुम्हारी सोच के पीछे
    तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
    तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
    नकारात्मक प्रतिच्छाया है.

    सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं.

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  12. bahut sundar kavita..

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  13. तुम्हारी सोच के पीछे
    तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
    तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
    नकारात्मक प्रतिच्छाया है.


    बहुत सुन्दर प्रस्तुति है,निशा जी.
    अंग्रेजी की एक पुस्तक पढ़ी थी
    I am ok you are ok.

    आपकी सोच और विचार बहुत कुछ ऐसे ही लगे.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    बहुत अच्छा लगता है जब आप मेरी पिछली
    पोस्टों का अवलोकन कर प्रेरक टिपण्णी करतीं हैं.

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  14. वैचारिक विश्लेषण लिए सुंदर अभिव्यक्ति...

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  15. हताश मगर सफल अभिव्यक्ति ....
    शुभकामनायें !

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  16. thanks rachana ji .avni ji. dr.monika ji n suresh ji.

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  17. निशा जी नमस्कार, सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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  18. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना आभार

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  19. इतने जन्मों के बाद मिले मानव जीवन को गंवाता आदमी.......संबंधों के निर्वाह में मानवीयता को तलाशता आदमी........!

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  20. आदरणीया निशा महाराणा जी
    सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए आभार !

    तुम्हारी सोच के पीछे
    तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
    तू उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
    नकारात्मक प्रतिच्छाया है

    सबके साथ लगभग यही होता है …
    सुंदर !

    आपको सपरिवार त्यौंहारों के इस सीजन सहित दीपावली की अग्रिम बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  21. नकारात्मक सोच जीवन को कैसे हताशा के सागर में डूबोती है, इसकी सफल अभिव्यक्ति हुई है।

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  22. आह! कितनी गह्नाभिव्यक्ति है....
    सादर बधाई....

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  23. तुम्हें किसी का एतबार नहीं
    तुम्हारे अपनों ने शायद
    तुम्हे बहुत सताया है

    मानव मन के उधेरबुन की कुशल अभिव्यक्ति. हम जो कुछ भी होते है, उसमे हमारे अतीत, संस्कार और आस-पास के माहौल की प्रतिक्रिया का असर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल होता है.

    धन्यवाद. मेरे ब्लॉग पर भी आयें, आपका स्वागत है.
    www,belovedlife-santosh.blogspot.com
    www.santoshspeaks.blogspot.com

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  24. andhakar se prakash ki aur .....nakartmkta se sakaratmakta ki aur ....ek rah ek path hai aapki pangtiya bahut hi prabhaviiii

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  25. सोच कभी कभी कितनी प्रभावी होती है ... अतीत पीछा नहीं छोड़ता पर बाहर तो आना ही होता है ...

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  26. शानदार रचना बहुत सुन्दर प्रस्तुति है.....निशा जी

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  27. कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
    देरी से पहुच पाया हूँ

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  28. जरूरी कार्यो के कारण करीब 15 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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