झूठ मैं कह नहीं सकती
सच्चाई तुम सुन नही सकते
विश्वास से भरे सतरंगी सपने
बुन नही सकते।
गलती है तुम्हारी या फिर ?
दिल तुम्हारा किसी अपनों ने ही
भरमाया है
आश औ विश्वास से बुने
संबंधों को
बार-बार चटकाया है ?
शायद यही वजह है कि
तुम्हें किसी का एतबार नहीं
तुम्हारे अपनों ने शायद
तुम्हे बहुत सताया है
दुःख है कि तुमने
ये कभी नहीं बताया है।
पता चल गया है मुझे कि
तुम्हारी सोच के पीछे
तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नकारात्मक प्रतिच्छाया है।
सच्चाई तुम सुन नही सकते
विश्वास से भरे सतरंगी सपने
बुन नही सकते।
गलती है तुम्हारी या फिर ?
दिल तुम्हारा किसी अपनों ने ही
भरमाया है
आश औ विश्वास से बुने
संबंधों को
बार-बार चटकाया है ?
शायद यही वजह है कि
तुम्हें किसी का एतबार नहीं
तुम्हारे अपनों ने शायद
तुम्हे बहुत सताया है
दुःख है कि तुमने
ये कभी नहीं बताया है।
पता चल गया है मुझे कि
तुम्हारी सोच के पीछे
तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नकारात्मक प्रतिच्छाया है।
बहुत सुन्दर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ...सुन्दर अभिव्यक्ति.. विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeletehttp://batenkuchhdilkee.blogspot.com/
thanks sharma ji.
ReplyDeleteसुन्दर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को आज हमने पहली बार देखा और यहां आकर अच्छा लगा।
शुक्रिया !
oh, deep thoughts.
ReplyDeletethanks to both of you.
ReplyDeleteखुबसूरत भाव भरी कविता
ReplyDeleteविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
पता चल गया है मुझे कि
ReplyDeleteतुम्हारे सोच के पीछे
तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नाकारात्मक प्रतिछाया है।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । धन्यवाद ।
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
मेरे यहाँ आने के लिए शुक्रिया। प्रतिच्छाया भी पसन्द आई…
ReplyDeletebahut badhiya rachnaye hai aapki kuchh sujhav ho to mere blog par bhi de aabhari rahu ga
ReplyDeletehttp://jeetrohann1.blogspot.com/
bahut hi badhiya likha hai aapne.....
ReplyDeletejai hind jai bharat
पता चल गया है मुझे कि
ReplyDeleteतुम्हारे सोच के पीछे
तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नाकारात्मक प्रतिछाया है।
भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...
निशा जी बहुत ही सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeletethanks to both of you.
ReplyDeleteतुम्हारी सोच के पीछे
ReplyDeleteतुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नकारात्मक प्रतिच्छाया है.
सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं.
bahut sundar kavita..
ReplyDeleteतुम्हारी सोच के पीछे
ReplyDeleteतुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नकारात्मक प्रतिच्छाया है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है,निशा जी.
अंग्रेजी की एक पुस्तक पढ़ी थी
I am ok you are ok.
आपकी सोच और विचार बहुत कुछ ऐसे ही लगे.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत अच्छा लगता है जब आप मेरी पिछली
पोस्टों का अवलोकन कर प्रेरक टिपण्णी करतीं हैं.
thanks rakesh ji.
ReplyDeleteवैचारिक विश्लेषण लिए सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteGahri soch
ReplyDeletebahut hi sundar
हताश मगर सफल अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
thanks rachana ji .avni ji. dr.monika ji n suresh ji.
ReplyDeletethanks satish ji.
ReplyDeleteनिशा जी नमस्कार, सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना आभार
ReplyDeletethanks suman ji n sunil ji.
ReplyDeleteइतने जन्मों के बाद मिले मानव जीवन को गंवाता आदमी.......संबंधों के निर्वाह में मानवीयता को तलाशता आदमी........!
ReplyDeletebahut sunder.......
ReplyDeletethanks both of you.
ReplyDelete♥
ReplyDeleteआदरणीया निशा महाराणा जी
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए आभार !
तुम्हारी सोच के पीछे
तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तू उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नकारात्मक प्रतिच्छाया है
सबके साथ लगभग यही होता है …
सुंदर !
आपको सपरिवार त्यौंहारों के इस सीजन सहित दीपावली की अग्रिम बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
thanks rajendra ji .
ReplyDeleteनकारात्मक सोच जीवन को कैसे हताशा के सागर में डूबोती है, इसकी सफल अभिव्यक्ति हुई है।
ReplyDeleteआह! कितनी गह्नाभिव्यक्ति है....
ReplyDeleteसादर बधाई....
thanks devendra ji n mishra ji.
ReplyDeleteतुम्हें किसी का एतबार नहीं
ReplyDeleteतुम्हारे अपनों ने शायद
तुम्हे बहुत सताया है
मानव मन के उधेरबुन की कुशल अभिव्यक्ति. हम जो कुछ भी होते है, उसमे हमारे अतीत, संस्कार और आस-पास के माहौल की प्रतिक्रिया का असर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल होता है.
धन्यवाद. मेरे ब्लॉग पर भी आयें, आपका स्वागत है.
www,belovedlife-santosh.blogspot.com
www.santoshspeaks.blogspot.com
andhakar se prakash ki aur .....nakartmkta se sakaratmakta ki aur ....ek rah ek path hai aapki pangtiya bahut hi prabhaviiii
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeletesundar abhivyakyi
badhai.
सोच कभी कभी कितनी प्रभावी होती है ... अतीत पीछा नहीं छोड़ता पर बाहर तो आना ही होता है ...
ReplyDeleteशानदार रचना बहुत सुन्दर प्रस्तुति है.....निशा जी
ReplyDeleteकुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
ReplyDeleteदेरी से पहुच पाया हूँ
जरूरी कार्यो के कारण करीब 15 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,