Tuesday, 18 October 2011

एक मुलाकात


सुबह का समय था
दिवाकर सात घोडों के रथ पे
होके सवार
अपनी प्रिया से मिलकर
आ रहा था
पवन हौले-हौले पेड की डालियों औ
पत्तों को प्यार से सहला रहा था
समाँ मनभावन था अचानक-
मेरी आँखें उसकी आँखों से मिली
उसने मुझको देखा
मैनें उसको देखा
मैं आगे बढी
उसने पीछे से  मारा झपट्टा
औ पकड लिया मेरा दुपट्टा
मैं पीछे मुडी उसे डाँटा
वो भागा पर-------
पुनः आगे आकर
मेरे रास्ते को रोका
औ मेरी आँखों में झाँका
उसकी आँखों में झाँकते हुये
महसुस हुआ
उसका प्यार बडा ही सच्चा था क्योंकि वो---------
आदमी नहीं बंदर का बच्चा था।

21 comments:

  1. bahut hi achcha laga padhkar,, lekin usse jyada achcha ye photo laga......
    jai hind jai bharat

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  2. सही कहा आपने आदमी और बन्दर में फर्क है ........

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  3. उसका प्यार बडा ही सच्चा था क्योंकि वो---------
    आदमी नहीं बंदर का बच्चा था।

    Bahut Badhiya....

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  4. Ab to insaano ke pyaar me bhi swaarth hota hai... Behtareen rachna...

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  5. सही कहा आपने जानवरों की अच्छाई व् बुरे हम रेखांकित कर सकते है ,हमें पता होता है ये कहा तक हमारा बुरा कर सकते है पर इन्सान की अच्छाइयों की हदें तो हो सकती है बुराइयों की कोई हद नहीं रह गई
    http://ekprayasbetiyanbachaneka.blogspot.com/
    एक प्रयास "बेटियां बचने का "
    इस ब्लॉग पर लड़के लडकियों के अनुपात में आते अंतर को रेखांकित करती कहानिया ,लेख ,समाचार ,या सुझाव ,चित्र आदि आमंत्रित है ब्लॉग में सहयोगी की भूमिका में भी आपका स्वागत है जिसके लिए टिपण्णी में जाकर अपनी प्रतिक्रिया के साथ अपना इ मेल आई दी भी छोड़े इस यज्ञ में आपके सहयोग रूपी आहुतियां अति आवश्यक हैं मलकीत सिंह जीत

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  6. bahut khoob ..vastav me aaj kal bas janvaron ke pyaar me hi sachchai rah gai hai.bahut achchi rachna.

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  7. वाह बहुत खूब ... वो बन्दर का बच्चा था ... याद आया कभी इंसान भी तो बन्दर का बच्चा ही था ... आज उसे क्या हो गया ..

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  8. वाह ! निशा जी वाह!
    आप भी न बस कमाल करतीं हैं
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.

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  9. मै इन सुन्दर और सार्थक रचनाओ पर टिपण्णी करने के काबिल नहीं हूँ ! पर फिर भी अद्भुत भावनावों के समावेस में फलित इन कविताओ को पद कर दिल को शुकून मिला और उससे भी ज्यादा सीखने ,तो आप सभी मेरा धन्यवाद् स्वीकार करे !

    आप काव्याकाश में राज करने वाले हंसों के सम्मुख आया हूँ, इसी आकाश की परिधि की छुने कामना रखने वाले इस छोटे पंछी को आशीष देने जरुर पधारे !

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  10. Nisha ji aaj kal insaan to aadam khor ho rahe hain. Jaanvar fir bhi unse achhe hain.

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  11. निर्दोष प्यार हमेशा सच्चा होता है, ये कभी जोड़-घटाव नहीं करता.

    सुन्दर रचना.

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  12. हास्य की इस शानदार प्रस्तुति ने मन मोह लिया।
    ऐसी बन्दरों की जात तो इंसानों में भी पाई जाती है।

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  13. बेहतरीन रचना.....बधाई स्वीकारें ||

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...बधाई

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  15. उसका प्यार बडा ही सच्चा था क्योंकि वो---------
    आदमी नहीं बंदर का बच्चा था।

    बहुत खूब ! बहुत सच कहा है..हम अपने पूर्वजों के संस्कारों से कितने दूर जा चुके हैं..

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  16. नया अंदाज़ ...बहुत खूब !
    शुभकामनायें आपको !

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  17. मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है,निशा जी.

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  18. नमस्कार निशा जी आपकी एक रचना ...एक मुलाकात ... को मैंने हमारे कमुनिटी ब्लॉग हमारा हरयाणा पर शेयर की है
    http://bloggersofharyana.blogspot.in

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