सुबह का समय था
दिवाकर सात घोडों के रथ पे
होके सवार
अपनी प्रिया से मिलकर
आ रहा था
पवन हौले-हौले पेड की डालियों औ
पत्तों को प्यार से सहला रहा था
समाँ मनभावन था अचानक-
मेरी आँखें उसकी आँखों से मिली
उसने मुझको देखा
मैनें उसको देखा
मैं आगे बढी
उसने पीछे से मारा झपट्टा
औ पकड लिया मेरा दुपट्टा
मैं पीछे मुडी उसे डाँटा
वो भागा पर-------
पुनः आगे आकर
मेरे रास्ते को रोका
औ मेरी आँखों में झाँका
उसकी आँखों में झाँकते हुये
महसुस हुआ
उसका प्यार बडा ही सच्चा था क्योंकि वो---------
आदमी नहीं बंदर का बच्चा था।
bahut hi achcha laga padhkar,, lekin usse jyada achcha ye photo laga......
ReplyDeletejai hind jai bharat
सही कहा आपने आदमी और बन्दर में फर्क है ........
ReplyDeleteउसका प्यार बडा ही सच्चा था क्योंकि वो---------
ReplyDeleteआदमी नहीं बंदर का बच्चा था।
Bahut Badhiya....
Ab to insaano ke pyaar me bhi swaarth hota hai... Behtareen rachna...
ReplyDeleteसही कहा आपने जानवरों की अच्छाई व् बुरे हम रेखांकित कर सकते है ,हमें पता होता है ये कहा तक हमारा बुरा कर सकते है पर इन्सान की अच्छाइयों की हदें तो हो सकती है बुराइयों की कोई हद नहीं रह गई
ReplyDeletehttp://ekprayasbetiyanbachaneka.blogspot.com/
एक प्रयास "बेटियां बचने का "
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bahut khoob ..vastav me aaj kal bas janvaron ke pyaar me hi sachchai rah gai hai.bahut achchi rachna.
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ... वो बन्दर का बच्चा था ... याद आया कभी इंसान भी तो बन्दर का बच्चा ही था ... आज उसे क्या हो गया ..
ReplyDeleteवाह ! निशा जी वाह!
ReplyDeleteआप भी न बस कमाल करतीं हैं
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.
मै इन सुन्दर और सार्थक रचनाओ पर टिपण्णी करने के काबिल नहीं हूँ ! पर फिर भी अद्भुत भावनावों के समावेस में फलित इन कविताओ को पद कर दिल को शुकून मिला और उससे भी ज्यादा सीखने ,तो आप सभी मेरा धन्यवाद् स्वीकार करे !
ReplyDeleteआप काव्याकाश में राज करने वाले हंसों के सम्मुख आया हूँ, इसी आकाश की परिधि की छुने कामना रखने वाले इस छोटे पंछी को आशीष देने जरुर पधारे !
Nisha ji aaj kal insaan to aadam khor ho rahe hain. Jaanvar fir bhi unse achhe hain.
ReplyDeleteनिर्दोष प्यार हमेशा सच्चा होता है, ये कभी जोड़-घटाव नहीं करता.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
हास्य की इस शानदार प्रस्तुति ने मन मोह लिया।
ReplyDeleteऐसी बन्दरों की जात तो इंसानों में भी पाई जाती है।
बेहतरीन रचना.....बधाई स्वीकारें ||
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...बधाई
ReplyDeleteउसका प्यार बडा ही सच्चा था क्योंकि वो---------
ReplyDeleteआदमी नहीं बंदर का बच्चा था।
बहुत खूब ! बहुत सच कहा है..हम अपने पूर्वजों के संस्कारों से कितने दूर जा चुके हैं..
नया अंदाज़ ...बहुत खूब !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
bahut bhawpoorn......
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है,निशा जी.
ReplyDeletenice post..
ReplyDeleteयह भी बेहतरीन है।
ReplyDeleteनमस्कार निशा जी आपकी एक रचना ...एक मुलाकात ... को मैंने हमारे कमुनिटी ब्लॉग हमारा हरयाणा पर शेयर की है
ReplyDeletehttp://bloggersofharyana.blogspot.in