कहते हैं कि सुबह का भूला शाम को
लौट के जब घर आना ही है
तो फिर ? वो ....घर से बाहर
जाता ही क्यों है ?
बार -बार ये सवाल मेरे....
दिमाग से टकराता है .....
शायद उसकी आँखों में मगरमच्छी नमी होगी या…. फिर .....
उसके घर में जगह की कमी होगी ....इसीलिए
दिनभर समय बिताकर ...शाम को लौट आता है
घरवालों की जली -कटी सुनकर रात में ....
चुपचाप सो जाता है ...
जब-तक उसकी जान में जान होती है
ये क्रम अनवरत चलता रहता है
जिस दिन से उसकी जान बेजान होती है
वो भूलना बंद कर देता है .....
उसकी हार या फिर खुद की जीत पर
घर का हर कोना गुनगुनाये
दाल नहीं गली बराबर
लौट के बुद्धू घर को आये ......
कैसी जीत या कैसी ये हार है ?
मेरी समझ में ये हमेशा
घाटे का व्यापार है .....
बाहर जाने के लिए
दिमाग से सौ तरकीब भिड़ाते हैं ..
पर ...आखिर में .. बुद्धू ही कहलाते हैं .....
behatareen rachna
ReplyDeleteपर आखिर में बुद्धू ही कहलाते हैं .,,,,
ReplyDeleteबहुत उम्दा,लाजबाब प्रस्तुति,,
Recent post: ओ प्यारी लली,
ReplyDeleteलौट के जब घर आना ही है
तो फिर ? वो ....घर से बाहर
जाता ही क्यों है ?
बार -बार ये सवाल मेरे....
दिमाग से टकराता है .....
सीधा सच्चा शाश्वत सवाल
सीधा
वाह बहुत सार्थक,सुंदर रचना
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (29-05-2013) बुधवारीय चर्चा ---- 1259 सभी की अपने अपने रंग रूमानियत के संग .....! में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
dhanayavad shashtri jee ....
Deleteकैसी जीत या कैसी ये हार है ?
ReplyDeleteमेरी समझ में ये हमेशा
घाटे का व्यापार है ....
आपने लाख टके की एक बात कह दी
बहुत सही कहा
ReplyDeleteबिल्कुल सही ...
ReplyDeleteआपने दो मुहावरों को मिला कर कविता रची है .... दोनों मुहावरे अलग अलग अर्थ रखते हैं
ReplyDeleteEndless affection brought back .Nice.
ReplyDeletesacchi bat ....sare dukh aur kushi ko khud me sametta hai ghar aur gharwaalo ka pyaar ..isliye ....unka vishwas nahi todna chahiye ....jo cheese ham dusron se chahte hain wo unhe pahle dena padta hai ,....
Deleteकैसी जीत या कैसी ये हार है ? हमारी जिंदगी में तो ऐसा अक्सर होता ही रहता है,बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, उत्क़ष्ठ, बेहतरीन रचना बहुत बहुत आभार
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बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteकैसी जीत या कैसी ये हार है ?
ReplyDeleteमेरी समझ में ये हमेशा
घाटे का व्यापार है ....,
बहुत सुंदर,शुभकामनाये
बाहर जाने के लिए
ReplyDeleteदिमाग से सौ तरकीब भिड़ाते हैं ..
पर ...आखिर में .. बुद्धू ही कहलाते हैं ...
............बहुत सार्थक