Wednesday 23 January 2013

ना .....री ..

दर्द की सीमाओं के बाहर जा 
 हँसना चाहती है ......
अपने गम को सहगामी बना 
जख्मों  को सहलाती है  ...
 सहलाने के दर्दमय  क्रम में 
सांस लेना भूल जाती है ...
किस गम को हल्का समझे  ..
कभी समझ न पाती है  ...
खुद से लड़े  या दुनिया से 
करती रहती ये तैयारी 
हार नहीं माना जिसने ....
कहलाती वही  ना .....री .....

14 comments:

  1. जीवन सफर का अनथक सहयात्री है जो -

    चलाए रखता है जो जीवन नाव बनके खिवैया वही ना .....री .

    ReplyDelete
  2. खुद से लड़े या दुनिया से
    करती रहती ये तैयारी
    हार नहीं माना जिसने ....
    कहलाती वही ना .....री .....
    sunder abhivyakti
    rachana

    ReplyDelete
  3. खुद से लड़े या दुनिया से
    करती रहती ये तैयारी
    हार नहीं माना जिसने ....
    कहलाती वही नारी ......बेहतरीन पंक्तियाँ ,,,

    recent post: गुलामी का असर,,,

    ReplyDelete
  4. हार नहीं माना जिसने ....
    कहलाती वही ना .....री .....

    बहुत ही अच्छी संज्ञा दी है आपने।
    नारी के इस यज्ञ को नमन।

    ReplyDelete
  5. सटीक |
    आभार आदरेया ||

    ReplyDelete

  6. दिनांक 25/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  7. खुद से लड़े या दुनिया से
    करती रहती ये तैयारी
    हार नहीं माना जिसने ....
    कहलाती वही ना .....री .....

    निःशब्द करती भावनाएं

    ReplyDelete
  8. भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
  9. सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  10. हार नहीं माना जिसने .
    कहलाती वही ना .....री ..
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।

    ReplyDelete
  11. नारी साहस ओर शक्ति है ... हार क्यों माने ...
    अच्छी रचना ...

    ReplyDelete