Friday 15 July 2011

पुनः

भूल कर सारे गिले शिकवे
तेरी गलती मेरी गलती
वादा का नया रस्म निभाना है
पुराने संबंधों को खत्म करें
अब संबंध नया बनाना है।
एक मोड पर क्यों खडे रहें
हरेक मोड से गुजर कर जाना है
किसी मोड पर मिले कभी थे
किसी मोड पर बिछड जाना हे
चेहरे पर दर्द को पढा नही
पढनेवाला अंधा था
सुनानेवाले का सुना नही
सुननेवाला बहरा था
अपनी-अपनी सबको पडी है
भौतिकता का ये गोरखधंधा है
संकीर्ण सीमाओं की मानसिकता से
हरेक प्राणी बँधा है
कितना भी शिकवा करं
ये दर्द न होगा कम
अनचाहे संबंधों को ढोने से
अच्छा है कि पुनः
अजनबी बन जायें हम।

3 comments:

  1. अनचाहे संबंधों को ढोने से
    अच्छा है कि पुनः
    अजनबी बन जायें हम।

    अजनबी बन कर ही शायद ज़िंदगी आसान हो जाये ...अच्छी प्रस्तुति ..

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  2. Dhanyavad sangeeta jee...sukhad anubhuti huye 5 sal pahle ki gai aapki is prerak protsahan se ....aur meri kavita ke udgaaron se..

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  3. Dhanyavad sangeeta jee...sukhad anubhuti huye 5 sal pahle ki gai aapki is prerak protsahan se ....aur meri kavita ke udgaaron se..

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