Friday 29 July 2011

साथी


अमावस की रात थी
निशा बहुत उदास थी
न कोई संग न कोई सहारा
कैसे कटेगा ये सफर हमारा
बीते दिनों की यादें
उसके अकेलेपन को सहला रहा था
उसका मन उसके दिल को
भरोसे की लौ से बहला रहा था
तभी उम्मीद की एक
किरण चमकी
निशा ने उस दिशा को
गौर से निहारा
स्याह पगडंडियों के ऊपर उसे
दिखाई पडा आसमान में
चमकता एक तारा
नज़रों से नज़र मिलते हीं
नन्हा सा दिल खिल उठा
सुहाने सफर का साथी जो
उसको मिल गया।

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