Sunday 3 July 2011

सागर का दर्द


बरसों से मिलने की आस लिये बैठा हूँ
इंतजार की आग में पल-पल जला करता हूँ
ख्वाबों से तेरे,दिल को बहलाये रहता हूँ
सागर हू फिर भी, मैं प्यास लिये बैठा हूँ ।


इठलाती नदियाँ औ बलखाती तालें हैं
सतरंगी सपनों का संसार लिये फिरता हूँ
तेरे दरश को पलक बिछाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ।


विरह मैं पागल, दिवाना मैं घायल
सीने में अपने हलचल दबाये रखता हूँ
मौन की अनुगूँज में खुद को डूबाये रखता हूँ
सागर हूँ फिर भी, मैं प्यास लिये फिरता हूँ।


खुद का सुधबुध औ चैन गँवाये बैठा हूँ
लहरों की तरंगों में गम को छिपाये बैठा हूँ
नैंनों से अपने मैं,नींद भगाये रहता हूँ
सागर हूँ फिर भी,मैं प्यास लिये बैठा हूँ

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