Sunday 25 October 2015

तुझे मालूम नहीं --मगर ---

अस्त-वयस्त गेह( जिंदगी )
सजा-संवरा देह
दिल में भावनाओं का ज्वार नहीं
न - हीं दिमाग में रवानी है
तुझे मालूम नहीं --मगर ---
ऐ --कठपुतली यही तुम्हारी निशानी है।
    समर्पित है उन सभी औरतों को जो भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो अपने स्त्रीत्व और ममत्व को भूल चुकी है और दौलत की चमक में अंधी हो दूसरों के इशारों पर नाचने के सिवा कुछ नहीं कर सकती।
जब दिल  की अभिवयक्ति को कागज पर उतार देती हूँ तो ऐसा लगता है की जी लेती हूँ। 

12 comments:

  1. Kya simile hai...bahut achche!

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  2. सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति

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  4. सही कहा आपने भौतिकता की अंधी दौड़ कठपुतली बना रहा है कई औरतों को....

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  5. very nicely written .... http://panchopoetry.blogspot.in/2016/04/blog-post_22.html

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  6. बहुत बहुत ही खूब लिखाहै आपने, सत्य को उजागर करने का सार्थक प्रयास है।

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  7. हृदय को छू लेने वालीसत्य

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