ज़िंदगी को हक़ीक़त से
नज़रों को नज़ारों से
किसी की यादों को खुद से
अलग कर सको तो ----कर लेना
लालच की बंज़र जमीं पे
कुत्सित इरादों की आड़ में
बीज खुशियों के
बो सको तो----- बो लेना
झूठ के दलदल पर खड़ी
अहंकार की दीवार को
सच्चाई के साबुन से
धो सको तो ---- धो लेना
निश्छल निर्मल हँसी के लिए
झूठे दम्भ को दरकिनार कर
खुद की गलतियों पर पश्चाताप कर
हो सके तो ----रो लेना
नज़रों को नज़ारों से
किसी की यादों को खुद से
अलग कर सको तो ----कर लेना
लालच की बंज़र जमीं पे
कुत्सित इरादों की आड़ में
बीज खुशियों के
बो सको तो----- बो लेना
झूठ के दलदल पर खड़ी
अहंकार की दीवार को
सच्चाई के साबुन से
धो सको तो ---- धो लेना
निश्छल निर्मल हँसी के लिए
झूठे दम्भ को दरकिनार कर
खुद की गलतियों पर पश्चाताप कर
हो सके तो ----रो लेना
आपने तो दृक दृश्य विवेक चूड़ामणि ही पेश कर दी
ReplyDeletethanks for motivation sir ....
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, फ़िल्मी गीत और बीमारियां - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeletedhanyavad n aabhar ....
Deleteसुंदर !
ReplyDeletethank you ...
Deletebahut saarthak
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16 - 07 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2038 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्यवाद ....
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबो सको तो----- बो लेना
झूठ के दलदल पर खड़ी
अहंकार की दीवार को
सच्चाई के साबुन से
धो सको तो ---- धो लेना
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत !!
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteनए अंदाज में ---
ReplyDeleteबहुत सुंदर तरीके से कही गई..
भावनाओं की कविता...
प्रशंसनीय.
सभी को तहेदिल से धन्यवाद ....
ReplyDeleteबहुत सटीक चेतावनी परक आवाहन ,
ReplyDeleteसुंदर mashvira
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