Thursday 10 September 2015

मैंने मौत को देखा है

 ब्लोगर्स साथियों,,,,, आज मैं २ -०९ -२०१५  टाटा मेमोरियल --जहाँ की मैं साल में एक बार चेकउप करवाने जाती हूँ का अनुभव  बाँटना चाहती हूँ। सामान्यतः सीनियर डॉ  ही चेकउप करते हैं पर इस बार पता नहीं क्यों जूनियर डॉ ही सभी को देख रहे थे। मेरा चेकउप करते ही वो घबरा से गए और बोले --ये root nodule कब से हो गया आपको ? जहाँ तक मेरा सवाल है मै  हमेशा खुद ही चेक करती हूँ , मुझे कभी मेरे breast में असामन्यता महसूस नहीं हुआ था पर मुझे भी घबराहट हो गई। हालाँकि 
डॉ साहब ने मुझे सामान्य करने की कोशिश की और मैमोग्राफी के लिए भेजा ये कहते हुए की आप बिलकुल ठीक हैं पर साल भर से ज्यादा हो गया अतः मैमोग्राफी करा लीजिये। मैमोग्राफी हो गया पर शायद डॉ साहब को पूर्णतः विश्वास नहीं था उन्होंने कंप्यूटर में मुझे रिपोर्ट भी दिखाया और कहा देखिये ये cyst ----पर चूँकि मैंने कैंसर वाला cyst bhi dekh rakha tha दोनों में अंतर था और इतना मुझे  समझ में आ गया था की ये कैंसर वाली cyst तो नहीं है --  हाँ  ना के बीच झूलते झूलते आख़िरकार शाम चार बजे के करीब मुझे बताया गया की --you are ok .पर करीब चार घंटे मेरे सिर पर तलवार तंगी रही। ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ। अधिकांशतः सीनियर डॉ--ही रहते हैं पर इस बार पता नहीं क्यों व्यवस्था कुछ गड़बड़ सी लगी।  पर इन चार घंटों में एक बार फिर से जीवन की नश्वरता का एहसास गहराई से महसूस किया।  दो चार औरतों से भी मिली, उनके रिपोर्ट भी देखे जो स्थिति की गंभीरता से बेखबर अपनी बारी का इन्तजार कर रही थी। सच -- कभी कभी अज्ञानता  वरदान बनकर हमें तनावरहित कर देती है। बीमारी की गंभीरता को देखते हुए हमेशा सीनियर डॉ की मौजूदगी अनिवार्य कर देना चाहिए --ऐसा मुझे लगा।  आइये एक बार फिर मेरी उन भावनाओं से मैं आपको मिलाऊँ।  मेरी बहुत पुरानी रचना है। 






ब्लोगर्स साथियों  आप सबको नव वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामना....
आइये आज मै आप सबको अपने जीवन का वो अनुभव बताउं जिसे पूरा हुए सात साल हो गये |
२९ दिसंबर २००४ को मेरे ब्रेस्ट केंसर का आपरेशन हुआ था ........उस अनुभव को आप सबसे शेयर
करने का आज मौका मिला है | वैसे भगवान की कृपा से मै  स्वस्थ्य हूँ और आगे भी भगवान की ही
मर्जी |

 


आज भी मेरे मन मस्तिष्क पर
आश्चर्य एवम भय मिश्रित रेखा है 
जबसे मैंने अपने आसपास 
मंडराते मौत को देखा है !

मरने से नही डरती हूँ 
खुद के गम को हरती हूँ 
लम्बी आहें भरती हूँ
झरनों जैसी झरती हूँ 
पल पल खुद से लडती हूँ
खुद को देती रहरहकर
विश्वास भरा दिलासा
नही है मकडजाल मेरा
न ही है कोई धोखा
जीना कुछ कुछ सीख गई हूँ
जबसे मौत को देखा है |

मौत को सामने देख कर मै ...........
ठिठक गई थी..... मेरी सांसे ........
मेरी जिन्दगी...... थम सी गई थी 
मुझे यूँ घबराया देख 
वो मेरे सामने आई ........
मेरे सहमे हुए दिल को
प्यार से सहलाया औ ...समझाया ...
जीवन औ मौत तो
जन्म -जन्मों के मीत हैं 
समझ लूँगी इन बातों को
सचमुच जिस दिन 
उस दिन होगी मेरी जीत
जन्म औ मृत्यु है ऐसे
जैसे पी संग प्रीत |

मैंने मौत की आँखों में झांकते हुए कहा .......
महानुभाव! मै आपको अच्छी तरह जानती हूँ
आपके आने के कारणों को
अच्छी तरह पहचानती हूँ
आपकी वजह से मैंने बड़े से बड़ा .....
दुःख सहा है पर ........
याद करें क्या  मैंने  ?
कभी आपको उलाहना दिया है ?
अपनों के मौत की पीड़ा
क्या होती है ......
मौत होने के कारण
क्या आपने इसे कभी सहा है ?
मै मौत से नही डरती
आपको देखकर लम्बी आहें 
नही भरती ......
डरती हूँ तो सिर्फ औ सिर्फ .....
अपनों से बिछुड़ने  की पीड़ा से
ये सोचकर की मेरे बाद
मेरे बच्चो का क्या होगा ?
जो सपने मैंने उनके लिए बुने हैं
उन सपनों का क्या होगा ?
मौत बड़े प्यार से मेरे पास आई
आँसू भरे दो नैनों को
आँसुओ से मुक्त कराया औ कहा...........
मै भी इतनी निर्दय नही हूँ ....
दुःख तो मुझे भी होता है
जब साथ किसी अपनों का छूटता है
पर !मै अपने दिल का दर्द
किसे बताउं ........
अपनी जिम्मेदारियों से कैसे
भाग जाऊ?
मै जानती हूँ
माया मोह के  बंधन को तोड़ने में
वक्त तो लगता है .....
अधूरे सपनों को मंझधार में छोड़ने में
दर्द तो होता है |

मैने मौत से आग्रह किया ........
गर आप मेरे दुःख से दुखी हैं
तो  .......मेरे ऊपर एक  एहसान  कीजिये
ज्यादा नही पर इतना वक्त दीजिये
जिससे मै अपने अधूरे काम निबटा सकूँ
उसके बाद आप जब भी आयें मै .....
ख़ुशी-ख़ुशी आपके साथ जा सकूँ
पलक भर के लिए उसने मुझे देखा
फिर मन ही मन कुछ बोली औ कहा .......
जिजीविषा  औ विजिगीषा की पहचान हो तुम निशा ......
आशा औ विश्वास की खान हो तुम निशा
मै तुम्हारी नही तुम्हारे विश्वास की कद्र करती हूँ
अपने आधे अधूरे कार्य को पूरा कर सको
मै तुम्हे इतना वक्त देती हूँ ......
मौत से मिले इस उधार  वक्त की
कीमत मै जान गई हूँ 
जीना किसको कहते हैं
इसको कुछ -कुछ जान गई हूँ |

11 comments:

  1. निशा जी आपकी जीवटता को सलाम है ...........ये सही है हर गाँठ कैंसर की नहीं होती कई बार फाइब्रो एडिनियोसिस होते हैं वो दवाइयों से ही ख़त्म हो जाते हैं मुझे दो बार हो चुके हैं लेकिन आपके साथ पहले ये बीमारी हो चुकी है तो आपको ज्यादा सावधानी की जरूरत है समय समय पर चेकअप करवाती रहिये

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    1. मनोबल बढ़ने के लिए धन्यवाद वंदना जी ..

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    2. वास्तव में मै लिखती ही इसलिए हूँ की जो दुःख मैंने झेले हैं वो कोई और न झेले शायद इसी बहाने मै किसी को मार्ग दिखा सकूँ वो मेरे लिए एक उपलब्धि होगी वंदना जी ...

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  2. मैं आपकी भावनाओं को गहराई से समझ सकता हूँ. मेरी पत्नी को भी आज से १० साल पहले ओवरिओन कैंसर का ऑपरेशन हुआ था. उनकी आँखों का दर्द, जो उन्होंने कभी मेरे सामने प्रगट नहीं किया,मैंने महीनों तक सहा और अस्पताल का आसपास का वातावरण और भी विचलित कर देता था. अब भी जब भी चेक अप को जाते हैं रिपोर्ट आने तक मन बेचैन बना रहता है. नमन है आपकी जीवटता को और प्रार्थना है की आप सदैव स्वस्थ रहें...

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    1. धन्यवाद शर्मा जी आपकी हरेक बात से सहमत हूँ .

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-09-2015) को "हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने से परहेज क्यों?" (चर्चा अंक-2096) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. धन्यवाद शास्त्री जी ....

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  4. प्रेरक पोस्ट

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