सीता अगर अपनी लालसा पर
लगाया होता लगाम
तो तुमसे कभी न बिछुड़ते मर्यादा पुरुषोत्तम राम
जो है अपने पास गर
उसी में किया होता संतोष
तो जीवन के कठिन डगर पर कभी न होता अफ़सोस
अगर किया होता लक्ष्मण रेखा का सम्मान
तो दुष्ट रावण कभी न कर पाता
तुम्हारा अपमान
न हीं दुनियाँ के विषैले-व्यंग झेलने होते
तुमसे तुम्हारा घर,पति औ-
लव-कुश से उसके पिता न जुदा होते।
मेरी बहुत पुरानी रचना। शायद आपको पसंद आये।
लगाया होता लगाम
तो तुमसे कभी न बिछुड़ते मर्यादा पुरुषोत्तम राम
तो तुमसे कभी न बिछुड़ते मर्यादा पुरुषोत्तम राम
जो है अपने पास गर
उसी में किया होता संतोष
तो जीवन के कठिन डगर पर कभी न होता अफ़सोस
अगर किया होता लक्ष्मण रेखा का सम्मान
तो दुष्ट रावण कभी न कर पाता
तुम्हारा अपमान
अगर किया होता लक्ष्मण रेखा का सम्मान
तो दुष्ट रावण कभी न कर पाता
तुम्हारा अपमान
न हीं दुनियाँ के विषैले-व्यंग झेलने होते
तुमसे तुम्हारा घर,पति औ-
लव-कुश से उसके पिता न जुदा होते।
मेरी बहुत पुरानी रचना। शायद आपको पसंद आये।
सीता की आकांक्षा इतनी तो बड़ी न थी जो उसपे ऐसा इल्जाम लग सके ...
ReplyDeleteएक रानी की सहज लालसा ही थी ये ... समाज का कसूर है इसमें जो रावण के क्रूर व्यवहार में सीता पर प्रश्न उठाना चाहता है ...
आपकी रचना आज के सन्दर्भ में चेतावनी जैसे है ...
बिल्कुल सही अंदाज लगाया आपने नासवा जी।
Deleteअनुपम रचना......उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
धन्यवाद
Deleteरचना के भाव विचारणीय हैं
ReplyDeleteअच्छी कविता किन्तु मई सहमत नहीं निशा जी
ReplyDeleteकोई बात नहीं आरती जी ..सबके अपने-अपने विचार होते हैं
Deleteमेरा मानना है की मृगतृष्णा के पीछे भागने से कभी किसी का भला नहीं हुआ है ..सीता जी तो एक प्रतीक मात्र हैं ...धन्यवाद ...
इस तरह तो कभी सोचा ही नहीं था हमने। सहमत असहमत से परे हटकर कह रहा हूं। सच में इस तरह सोचा नहीं।
ReplyDeleteबड़े दिन बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर। लगता है आप भी कई दिनों बाद आती हैं।
जी ...आजकल समय नहीं दे पाती कभी नेट साथ नहीं देता तो कभी समय जल्द ही वापस आउंगी ...धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteधन्यवाद ...शांति जी ..
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