Wednesday, 28 January 2015

लगाम

सीता अगर अपनी लालसा पर

लगाया होता लगाम 

तो तुमसे कभी न बिछुड़ते मर्यादा पुरुषोत्तम राम 

जो है अपने पास गर
उसी में किया होता संतोष 

तो जीवन के कठिन डगर पर कभी न होता अफ़सोस

अगर किया होता लक्ष्मण रेखा का सम्मान
तो दुष्ट रावण कभी न कर पाता
तुम्हारा अपमान

न हीं दुनियाँ के विषैले-व्यंग झेलने होते
तुमसे तुम्हारा घर,पति औ-
लव-कुश से उसके पिता न जुदा  होते।  
                                  मेरी बहुत पुरानी रचना। शायद आपको पसंद आये। 

11 comments:

  1. सीता की आकांक्षा इतनी तो बड़ी न थी जो उसपे ऐसा इल्जाम लग सके ...
    एक रानी की सहज लालसा ही थी ये ... समाज का कसूर है इसमें जो रावण के क्रूर व्यवहार में सीता पर प्रश्न उठाना चाहता है ...
    आपकी रचना आज के सन्दर्भ में चेतावनी जैसे है ...

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    1. बिल्कुल सही अंदाज लगाया आपने नासवा जी।

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  2. अनुपम रचना......उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
    मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन

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  3. रचना के भाव विचारणीय हैं

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  4. अच्छी कविता किन्तु मई सहमत नहीं निशा जी

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    1. कोई बात नहीं आरती जी ..सबके अपने-अपने विचार होते हैं
      मेरा मानना है की मृगतृष्णा के पीछे भागने से कभी किसी का भला नहीं हुआ है ..सीता जी तो एक प्रतीक मात्र हैं ...धन्यवाद ...

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  5. इस तरह तो कभी सोचा ही नहीं था हमने। सहमत असहमत से परे हटकर कह रहा हूं। सच में इस तरह सोचा नहीं।
    बड़े दिन बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर। लगता है आप भी कई दिनों बाद आती हैं।

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    1. जी ...आजकल समय नहीं दे पाती कभी नेट साथ नहीं देता तो कभी समय जल्द ही वापस आउंगी ...धन्यवाद

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  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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    1. धन्यवाद ...शांति जी ..

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