द्रोपदी-अगर तुमने शुरु से ही
अन्याय का प्रतिरोध किया होता
तो जो-जो तुम्हारे साथ हुआ
वो न हुआ होता
नारी थीं तुम ममतामयी,स्नेहमयी औ-
त्यागमयी,कोई वस्तु नही
जो पाँच भागों में बाँट दी गयीं
क्यों-क्यों-क्यों ?
तुमने ऐसा क्यों सहा ?
भले ही गलत था,दुर्योधन पर-
ऐसा क्यों कहा कि "अंधे का बेटा अंधा ही होता है"
जो जैसा बोता है वो वैसा ही काटता है
प्रकृति के न्याय में ऐसा ही होता है
दुर्योधन अगर दोषी है तो दोष तुंम्हारा भी कम नही
बडों का अपमान करना ये हमारा धर्म नही
हाँ-दोषी को उनकी गलतियों का आईना दिखाना भी जरुरी है
पर बुरे के साथ बुरा बन जाना ये कैसी मजबूरी है
कौरव तो पर्याय था झूठ और फरेब का
पर क्या ? पाँडवों के हमेशा उचित व्यवहार थे
किसी के उकसाने पर जो मर्यादा को भूल जाता है
निर्जीव वस्तुओं के समान पत्नि की जुए में
बाजी लगाता है
माँ के वचन की आड ले जो
नारी की अस्मिता पर प्रश्न-चिन्ह लगाता है
वो क्या ? कौरव से अलग पंक्ति में खडा रह पाता है?
वो,तो कौरव से भी बडा अपराधी है
जो उसे अपराध करने के नये-नये तरीके
आजमाने का नुस्खा देता हैअपनी विन्रमता की आड ले जो
अपराधों को बढावा देता है
अन्याय करना और अन्याय सहना दोनों
ही अपराध है
कौरव अगर अपराधी है
तो पांडव भी दूध का धुला नही है
और सबसे बडी बात तो यह है कि
असली बात सबके समझ में आती है
कि पाँच पतियों की टुकडी भी
द्रोपदी को नही बचा पाती है
उसकी लाज बची उसकी
खुद की भक्ति और शक्ति से
काश-तुमने शुरु में ही लिया होता
इसका सहारा तो इतनी भरी सभा में
न रहती यूँ लाचार और बेसहारा।
मेरी बहुत पुरानी रचना है ,शायद आपको अच्छी लगे। धन्यवाद।
बहुत ही सही बात कही है आपने. कभी ऐसा सोचा न था , लेकिन यह कविता पढ़ के लगता है की कारवॉं के अलावा भी कई दोषी हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-11-2014) को "नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795 पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
dhanyavad shastri jee ......
ReplyDeleteद्रौपदी और पांडव भी गलत थे परन्तु मेरी दृष्टि में इस प्रकार की सामाजिक रचना करने वाले धर्मग्रन्थ और उनके रचयिता ज्यादा दोषी है !ऐसे नियमकानून तालिबानी कानून से अलग नहीं है |
ReplyDeleteप्रेम !
तुझे मना लूँ प्यार से !
vastvikta....wo pahle virodhi bani hoti to baat yahan tak na aati....sunder abhivyKti
ReplyDeleteHaan such hai ye...man me uthte hain ye sawal..bahut sundar
ReplyDeleteविचार और प्रश्न दर प्रश्न की मथानी से अतीत को मथती हुई श्रेष्ठ रचना। माँ का वचन धर्म होता तब।
ReplyDeleteसही और गलत की कशमकश में झूलती रचना ...
ReplyDeleteजब कोई अवांछित घटित होता है तो दानों पक्ष उत्तरदायी होते हैं।
ReplyDeleteविवेक और अविवेक को परिभाषित करती अच्छी कविता।
पांडव माँ की आज्ञा टाल नहीं सकते थे परन्तु द्रौपदी? वो क्यों चुप रही, क्यों खुद को बंटने दिया? सवाल तो बहुत आता है मन में... बहुत अच्छी रचना, बधाई.
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteDhanyavad ..kaushik jee..
ReplyDeleteDhanyavad ..kaushik jee..
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