Monday, 13 October 2014

तब.… बता ओ

दौलत की खनक 
चेहरे की चमक 
शरीर का ताव 
दिल बेताब 
जब हो जाएगा 
निढ़ाल,,,,,,
 तब.……  बता ओ,,,,,,
स्वछन्द परिंदे 
कैसे,,,,, गीत ख़ुशी के गाओगे ?
अभिमान  के बुनियाद पे हो खड़े तुम 


चैन कहाँ से पाओगे ? 
अपने आसपास की झूठी महफिल को 
कैसे तुम सजाओगे ?
छिनोगे तो छिन  जायेगा 
छोटी सी इक गलती तुझको 
उम्र भर तड़पाएगी .... 
सत्य को अपनाओगे तो 
खुद को तुम पाओगे 
चैन तुम्हें चहुँ ओर मिलेगा 
जहाँ-जहाँ तुम जाओगे 
झूठा अहम् और मिथ्याभिमान 
के कवच को तोड़ तुम भागो 
समय के रहते समय को पकड़ो 
ओ नादान  परिंदो जागो ,,,,

16 comments:

  1. सच्ची बात .... खुबसूरत अभिव्यक्ति

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के - चर्चा मंच पर ।।

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    1. धन्यवाद रविकर जी ...

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  3. सच कहा है ... समय रहते ही समझ आना जरूरी है ...

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  4. सुन्दर सन्देश देती अति सुन्दर रचना.....

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  5. धन्यवाद यशोदा जी

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  6. समय रहते चेत जाए तो पछतावा ही काहे का!

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  7. गहरा सन्देश छुपाये रचना ...

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  8. सार्थक संदेशयुक्त रचना।

    दीपावली की अशेष शुभकामनाएं !

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  9. सुंदर संदेश

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